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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवती गन्धर्व का नाम 11 भरोसा, प्रत्यय, निष्ठा, विश्वतस् (अव्य) [विश्व+तसील] सब ओर, सर्वत्र, | अधिक थी, उदाहरणतः उसने त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने, सब जगह भामि० 1130 / सम० मुख (वि.) इन्द्र के हाथ से शुनःशेपको रक्षा करने, तथा ब्रह्मा सब ओर मुख किये हुए--भग० 9 / 15 / की भांति पुनः सृष्टि की रचना करने में अत्यधिक विश्वथा (अव्य) [विश्व---थाल] सर्वत्र, सब जगह / / बल का प्रदर्शन किया। यह बालक राम का साथी विश्वंभर (वि.) [विश्वं बिति विश्व++खच्, और परामर्शदाता था, इसने राम को अनेक आश्चर्य मुम्] सब का भरणपोषण करने वाला, र: 1. सर्व जनक अस्त्र प्रदान किये)। व्यापक प्राणी, परमात्मा 2. विष्णु का विशेषण | विश्वावसुः [विश्व+वसुः, पूर्वपदस्थाकारस्य दीर्घः] एक 3. इन्द्र का विशेषण, - रा पृथ्वी -- विश्वंभरा भगवती भवतीमसूत --उतर० 119, विश्वंभराप्यतिलघुर्नरनाथ विश्वासः [वि+श्वस्+घञ] 1. भरोसा, प्रत्यय, निष्ठा, तवांतिके नियतम् - काव्य 0 10 / / विश्रम्भ,-दुर्जनः प्रियवादीति नैतद्विश्वासकारणम् --- विश्वसनीय (सं० कृ०) [ विश्वस-+-अनीयर] 1. विश्वास श० 1114, रघु० 1151, हि०४।१०३ 2. भेद, रहस्य, किये जाने के योग्य, विश्वासपात्र, जिस पर भरोसा गोपनीय समाचार / सम० घातः, मंगः विश्वास किया जा सके 2. विश्वास उत्पन्न करने के योग्य -- श० को तोड़ देना, धोखा देही, द्रोह, घातिन (50) 2, मालवि० 3 / 2 / धोखा देने वाला मनुष्य, द्रोही,... पात्रम्, - भूमिः, विश्वस्त (भू० क० कृ०) [ विश्वस्+क्त] 1. जिस पर - स्थानम् भरोसे की वस्तु. विश्वसनीय या भरोसे का विश्वास किया गया है, निष्ठ, जिस पर भरोसा किया मनुष्य, विश्वासी पुरुष / गया है 2. विश्वास करने वाला, भरोसा करने वाला विष i (जहो० उभ० वेवेष्टि, वेविष्टे, विष्ट) 1. घेरना 3. निडर, विश्रब्ध 4. विश्वास के योग्य, जिस पर 2. फैलाना, विस्तार करना, व्यापक होना 3. सामने भरोसा किया जा सके। जाना, मुकाबला करना (परिनिष्ठित संस्कृत में इसका विश्वाधायस (पुं०) [विश्वं दधाति पालयति-विश्व+धा प्रयोग बहुधा नहीं होता)। णि+असुन्, पूर्वदीर्घः] देव, सुर / Jii (क्रया पर० विष्णाति) वियुक्त करना, अलगविश्वानरः [विश्व+नरः, पूर्वपददीर्घः सविता का विशेषण।। अलग करना। विश्वामित्रः [विश्व+मित्रः, विश्वमेव मित्रं यस्य ब० स०, iii (म्वा० पर० वेषति) छिड़कना, उडेलना।। पूर्वपदस्याकारस्य दीर्घः] एक विख्यात ऋषि का नाम / ष् (स्त्री०) [विष्-+क्विप्] 1. मल, विष्ठा, लीद यह कान्यकुब्ज का राजा होने के कारण क्षत्रिय था, 2. फैलाना, प्रसारण 3. लड़की जैसा कि 'विट्पति' इसके पिता का नाम गााधि था। एक बार यह मृगया में। सम-कारिका (विट कारिका) एक प्रकार के लिए घूमता-धमता वसिष्ठ ऋषि के आश्रम में का पक्षी, प्रहः (विग्रहः) कोष्ठबद्धता, कब्ज, पहुँचा, वहाँ अनेक गौओं को देख कर उसने अनंत -चरः,-बराहः (विट्चरः, विड्वराहः) पालतू या धन राशि देकर भी उनको लेना चाहा और न मिलने गाँव का सूअर,-लवणम् (विड्लवणम्) एक प्रकार पर बलात् उनको छीनने का प्रयत्न किया / इस बात का औषधियों में प्रयुक्त होने वाला नमक, सङ्गः पर एक महान् संघर्ष हुआ, और राजा विश्वामित्र पूर्ण (बिट्सङ्गः) कोष्ठबद्धता, क़ब्ज,-सारिका (विटरूप से परास्त हो गया। इस पराजय से विश्वामित्र सारिका) एक प्रकार का पक्षी, मैना / अत्यंत क्षुब्ध हुआ और साथ ही वसिष्ठ के ब्राह्मणत्व विषम [विष+क] 1. जहर, हलाहल (इस अर्थ में 'पुं०' की शक्ति से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह भी कहा जाता है)-विषं भवतु मा भूता फटाटोपो ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करता भयङ्कर:-पंच० 1204 2. जल, विषं जलघरैः रहा। यहां तक कि बाद में उसे क्रमशः राजर्षि, पीतं मूछिता: पथिकाङ्गनाः- चन्द्रा० 5482, (यहाँ ऋषि, महर्षि और ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली, परन्तु दोनों अर्थ अभिप्रेत है) 3. कमलडण्डी के तन्तु या उसे सन्तोष न हुआ क्योंकि वसिष्ट ने अपने मुख से रेशे 4. लोबान, एक सुगन्धित द्रव्य का गोंद, रसउसे ब्रह्मर्षि नहीं कहा। विश्वामित्र हजारों वर्ष गन्ध / सम० अक्त,-दिग्ध (वि०) विषैला, जहरीला, तपस्या करता रहा, तब कहीं जाकर वसिष्ठ ने उसे ----- अंकुरः 1. बी 2. विष में वुझा तीर,-अंतक: ब्रह्मर्षि कहा। विश्वामित्र ने कई बार बसिष्ठ को शिव का विशेषण, अपह,-हन वि०) विषनाशक, उत्तेजित करने का प्रयत्न किया, उदाहरणत: वसिष्ठ विषनिवारक औषधि, आननः, --आयुषः, आस्यः, के सौ पुत्रों को विश्वामित्रने मौत के घाट उतार दिया, सांप,- आस्वाद (वि.) जहर चखने वाला, --कुम्भः परन्तु वशिष्ठ तब भी नहीं घबराया। अन्तिमरूप से जहर से भरा हुआ घड़ा, कृमि: जहर में पला हुआ ब्रह्मर्षि बनने से पहले विश्वामित्र की शक्ति बहत कीड़ा,न्याय दे० न्याय के अन्तर्गत, ज्वरः भैंसा, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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