________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 ( 1947 ) 6. शरीरगत कोई भी तरल पदार्थ जैसे कि वीर्य / | स्पन्दित (भू० क० कृ.) [स्पन्द्+क्त ] 1. थरथरीयुक्त, सम० ----अक्त तेल में भिगोया हुआ, चिकनाया हुआ, ठिठुरा हुआ 2. गया हुआ, तम् नाडी का स्फुरण, चर्बी में लिप्त, - अनुवृत्तिः (स्त्री०) स्निग्ध या मित्रों धड़कन, धकधक / जैसा मेल-जोल,-आशः दीपक, -छेदः, --भङ्गः | स्पर्ष (भ्वा० आ० स्पर्धते) 1. स्पृहा करना, होड़ लगाना, मित्रता का टूट जाना, --पूर्वम् (अव्य०) अनुराग मुकाबला करना, प्रतिद्वन्द्विता करना, प्रतियोगिता पूर्वक,- प्रवृत्तिः (स्त्री०) प्रेम प्रवाह---श०४।१६, करना, -- अस्पर्धिष्ट च रामेण-भट्टि० 15165 -----प्रिय (वि.) जिसे तेल अधिक प्यारा हो, (-यः) कस्तैस्सह स्पर्धते --भर्तृ० 2 / 16 2. ललकारना, दीपक, --- भूः श्लेष्मा, -रङ्गः तिल, ---वस्तिः (स्त्री०) चुनौती देना, उपेक्षा करना, प्रति-, घि--, चुनौती तेल की सुई लगाना, तेल का अनीमा करना, गुदा के देना, ललकारना। मार्ग से पिचकारी द्वारा तेल डालना,-विदित | स्पर्धा [ स्पर्ध +अ+टा] प्रतियोगिता, प्रतिद्वन्द्विता, (वि.) तेल से मालिश किया गया,---व्यक्तिः होड़-आत्मनस्तु बुधैः स्पर्धा शुद्धधीर्बह्वमन्यत 2. ईर्ष्या, (स्त्री०) प्रेम का प्रकटीकरण, मित्रता का प्रदर्शन, डाह 3. चुनौती 4. समानता। .... (भवति) स्नेहव्यक्तिश्चिरविरहजं मुञ्चतो बाष्प-स्पधिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ स्पर्धा+इनि ] 1. प्रतिमुष्णम् .-मेघ० 12 / द्वन्द्विता करने वाला, होड़ करने वाला, प्रतिस्नेहन् (पुं०) [ स्निह+कनिन्, नि०] 1. मित्र योगिता करने वाला, प्रतिस्पर्धाशील-तवाघरस्पर्धिषु 2. चन्द्रमा 3. एक प्रकार का रोग।। विद्रुमेषु-रघु० 13 / 13, 16 / 62 2. प्रतिस्पर्धी, स्नेहन (वि०) [ स्निह --णिच् + ल्युट] 1. मालिश ईल 3. घमंडी,--(पुं० ) प्रतियोगी, समकक्ष करने वाला, चिकनाने वाला 2. नष्ट करने वाला, व्यक्ति / ---नम् 1. तेल मालिश, चिकनाना, तेल या उबटना | स्पर्श ( चुरा० आ० स्पर्शयते) 1. लेना, पकड़ना, छूना मलना 2. चिकनाहट 3. उबटन, स्निग्धकारी। 2. मिलना, संयुक्त होना 3. आलिंगन करना, स्नेहित (भू० क० कृ) [ स्निह --णिच+क्त ] 1. प्रेम- आश्लेषण / पात्र 2. कृपालु, स्नेही 3. लिपा हुआ, चिकनाया हुआ, | स्पर्शः [स्पर्श (स्पृश् वा)+घञ्] 1. छूना, संपर्क --तः मित्र, प्यारा। (सभी अर्थों में तदिदं स्पर्शक्षम रत्नम-श०१।२८, स्नेहिन् (वि.) (स्त्री०--नी) [स्निह+णिनि ] 217 2. संयोग (ज्यो. में) 3, संघर्ष, मुठभेड़ 1. अनुरक्त, स्नेह करने वाला, मित्र सदश 2. तलाक्त, 4. भावना, संवेदना, छूने से होने वाला शान 5. स्वचा चिकना, चर्बी युक्त (0) 1. मित्र 2. मालिश करने का विषय, स्पर्शयोग्यता, स्पर्शगुण - स्पर्शगुणों वायुः वाला, लेप करने वाला 3. चित्रकार / --तर्क. 6. प्रभाव, रोग, बीमारी का दौरा 7. रोग, स्नेहुः [स्निह+उन्] 1. चन्द्रमा 2. एक प्रकार का रोग। व्याधि, विकृति, आदि या मनोव्यथा 8. (फ से म स्न (भ्वा० पर० स्नायति) पट्टी बांधना, लपेटना, सुडौल तक) पांचों वर्गों में कोई सा व्यंजन-कादयो मान्ताः करना, आवृत्त करना, परिवेष्टित करना। स्पर्शाः 1. उपहार, दान, भेंट 10. हवा, वायु स्नग्ध्यम् [ स्निग्ध+व्या ] 1. चिकनाहट, स्निग्धता, 11. आकाश 12, एक रतिबंध,-र्शा कुलटा, पुश्चली। फिसलन, चिक्कणता 2. सुकूमारता, प्रियता 3. चिक सम०-अज्ञ (वि०) स्पर्शज्ञान से रहित, संवेदनशन्य नापन, मृदुता। ---इन्द्रियम् स्पर्श का ज्ञान, या स्पर्शज्ञान प्राप्त करने स्पन्द (भ्वा० आ० स्पन्दते, स्पन्दित) 1. घड़कना, धकधक वाली इन्द्रिय, उदय (वि.) जिसके पीछे व्यंजन करना अस्पन्दिष्टाक्षि वामं च --भट्रि० 15 / 27, वर्ण हो, --उपलः,-मणिः पारस पत्थर-तन्मात्रम् 14183 2. हिलना, कांपना, ठिठरना 3. जाना, गति वह तत्त्व जिसका छने से ज्ञान हो,--लज्जा छुईमुई शील होना, परि-धड़कना, कांपना, वि...', इधर का पौधा -वेध (वि०) स्पर्श के द्वारा जिसका ज्ञान उपर घूमना, संघर्ष करना / हो---संचारिन् (वि०) संक्रामक, छूत का,--स्नानम् स्पन्दः [ स्पन्द-/-घा ] 1. धड़कन, धकधक 2. कंपकंपी, सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण आरम्भ होने पर स्नान, स्पन्दः, थरथराहट, गति–मनो मन्दस्पन्दं बहिर पि चिरस्यापि --स्यन्दः मेंढक / विमृशन्--भर्तृ० 3 / 51 / स्पर्शन (वि०) (स्त्री०-नी) [स्पर्श (स्पृश् वा) स्पग्वनम् [ स्पन्द+ल्युट] 1. धड़कना, नाड़ी का फड़कना, +ल्यूट ] 1. छूने वाला, हाथ लगाने वाला 2. प्रस्त थरथराहट, कंपकंपी-वामाक्षिस्पंदनं सूचयित्वा करने वाला, प्रभाव डालने वाला,-नः हवा, वायु, -मा० 1, इसी प्रकार अघर, बाहु, शरीर आदि -नम 1. छना, स्पर्श, संपर्क 2. संवेदन, भावना 2. थरथरी, घड़कन 3. अर्भक में जीव का स्फूरण / 3. स्पर्शेन्द्रिय या स्पर्शजन्य ज्ञान 4. भेंट, दान / For Private and Personal Use Only