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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वजन। ( १२४ ) दिग्बिन्दु–पूर्वाग्नेयी दक्षिणा च नैर्ऋती पश्चिमा तथा, (स्त्री०) (°ष्टा) अठाईस,-श्रवणः,-श्रवस् ब्रह्मा, वायवी चोत्तरैशानी दिशा अष्टाविमाः स्मताः । (आठ कान या चार सिर रखने वाला)। करिण्यः आठ दिग्बिन्दुओं पर स्थित आठ हथिनियाँ, | अष्टतय (वि.) [अष्टन्-+-तयप्] आठ खंड या आठ पाला: आठों दिशाओं के आठ दिशापाल “इन्द्रो अंगों वाला--यम् सब मिलाकर आठ वाला। वह्निः पितृपतिः (यमः) नैर्ऋतो वरुणो मरुत् (वायुः), अष्टधा (अव्य०) (अष्टन् +धा] 1. आठ तह वाला, कुबेर ईश: पतयः पूर्वादीनां दिशां क्रमात्--अमर०, आठ बार 2. आठ भागों या अनुभागों में-भिन्ना गजाः आठों दिशाओं की रक्षा करने वाले आठ प्रकृतिरष्टधा- भ० ७।४, भिन्नोऽष्टधा विप्रससार हाथी-ऐरावतः पुंडरीको वामनः कुमुदोऽञ्जन:, पुष्प- वंश:--रघु० १६१३ । दन्तः सार्वभौम: सुप्रतीकश्च दिग्गजा:--अमर०, | अष्टम (वि०) [स्त्री०- मी] [अष्टन्+डट् मट च -धातुः आठ धातुओं का समुदाय--स्वर्ण रूप्यं च आठवां,--मः आठवाँ भाग,-मी चांद्रमास के दोनों तानं च रङ्ग यशदमेव च, शीसं लौहं रसश्चेति धातवोऽ पक्षों का आठवां दिन। सम-अंशः आठवाँ ष्टौ प्रकीर्तिताः । --पद, द् ('ष्ट' या 'टा) भाग,-कालिक (वि.) जो व्यक्ति सात समय (पूरे वि० 1. आठ पैरों वाला, 2. कथा में वर्णित शरभ तीन दिन तथा चौथे दिन का प्रातः काल) भोजन नाम का जन्तु, 3. सिटकिनी 4. कैलास पर्वत (--दः, न करके आठवें समय पर ही भोजन ग्रहण करता ----वम्) 1. सोना----आवजिताष्टापदभतोयै:-कु० है - मनु०६।१९। ७।१०, शि० ३।२८, 2. पासा खेलने के लिए बिसात | अष्टमक (वि०) [अष्टम+कन] आठवाँ,- योशमष्टकं या एक फलक, फट्टा,-'पत्रम् सोने की पट्टी, हरेत्– याज्ञ० २।२४४ । -मङ्गल: एक घोड़ा जिसका मुंह, पूँछ, अयाल, छाती अष्टमिका [अष्टमी+कन् ह्रस्वः, टाप] चार तोले का तथा सुम सफेद हो (..-लम) आठ सौभाग्यसूचक वस्तुओं का संग्रह, कुछ के मतानुसार वे ये हैं:-मगराजो अष्टादशन् (वि०) [अष्ट च दश च] अठारह। सम० वृषो नागः कलशो व्यजन तथा, वैजयन्ती तथा भेरी --उपपुराणम् गौण या छोटे पुराण, अष्टान्युपपुराणानि दीप इत्यष्टमङ्गलम्। दूसरों के मतानुसार लोकेऽ मुनिभिः कथितानि तु, आद्यं सनत्कुमारोक्तं नारसिंहस्मिन्मङ्गलान्यष्टौ ब्राह्मणो गौर्हताशन:, हिरण्यं सप्ति मतः परम्, तृतीयं नारदं प्रोक्तं कुमारेण तु भाषितम्, रादित्य आपो राजा तथाष्टमः । --मानम् एक 'कुडव' चतुर्थं शिवधर्माख्यं साक्षान्नन्दीशभाषितम, दूर्वाससोनामक माप,-मासिक (वि०) आठ महीनों में एक बार । क्तमाश्चर्य नारदोक्तमत: परम, कापिलं मानवं चैव होने वाला, मूतिः अष्टरूप, शिव का विशेषण-आठ तथैवोशनसेरितम, ब्रह्माण्डं वारुणं चाथ कालिकायरूप है -- पाँच तत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और मेव च, माहेश्वरं तथा साम्ब सौरं सर्वार्थसञ्चयम, आकाश), सूर्य, चन्द्रमा, तथा यज्ञ करने वाला पुरो- पराशरोक्तं प्रबरं तथा भागवतद्वयम् । इदमष्टादश हित-तु०, श० १११, या सृष्टि: स्रष्टुराद्या वहति प्रोक्तं पुराणं कौमसंजितम्, चतुर्धा संस्थितं . पुण्यं विधिहुतं या हविर्या च होत्री, ये द्वे कालं विधत्तः संहितानां प्रभेदतः-हेमाद्रि। --पुराणम अठारह पुराण, श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् । यामाहुः -ब्राह्म पानं वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा, तथान्यम्नासर्वभूतप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः, प्रत्यक्षाभिः रदीयं च मार्कण्डेयं च सप्तमम, आग्नेयमष्टकं प्रोक्तं प्रपन्नस्तन भिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीश: ।। या संस्कृत भविष्यन्नवमं तथा, दशमं ब्रह्मवैवर्त लिङ्गमेकादशं में संक्षेप से कहे गये निम्नांकित क्रमानुसार नामः- तथा, वाराहं द्वादशं प्रोक्तं स्कान्दं चात्र त्रयोदशम्, जलं वह्निस्तथा यष्टा सूर्याचंद्रमसौ तथा, आकाशं चतुर्दशं वामनं च कौमं पंचदशं तथा, मत्स्यं च गारुडं वायरवनी मूर्तयोऽप्टौ पिनाकिनः । धरः आठ रूपों चैव ब्रह्मांडाप्टादशं तथा ।-विवादपदम् मकदमेबाजी वाला, शिव,रत्नम समष्टि रूप से ग्रहण किये गये के अठारह विषय (झगड़े के कारण) दे० मन० आठ रत्न, - रसाः नाटकों में प्रयक्त आठ रस- ८१४-७ । शृंगारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः, वीभत्साद्भुतसंज्ञौ । अष्टिः (स्त्री०) [अस+क्तिन् पषो० पत्वम्] 1. खेल का चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृताः । काव्य०४, (इनमें पासा 2. सोलह की संख्या 3. बीज 4. गुठली। नवा रस 'शान्त' भी जोड़ दिया जाता है : –निर्वेद- अष्ठीला अष्ठिस्तत्तल्यकठिनाश्मानं राति-रा-क रस्य ल: स्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः-त०) आश्रय दीर्घः.... तारा०) 1. गोल मटोल शरीर, 2. गोल कंकरी (वि.) आठ रसों से सम्पन्न, या आठ रसों को प्रद- या पत्थर 3. गिरी, गठली 4. बीज का अनाज । शित करने वाला-विक्रम० २११८,-विधि (वि०) अस् 1. (अदा० पर०) [अस्ति, आसीत्, अस्तु, स्यात्-- आठ तह वाला, या आठ प्रकार का,-विशतिः। आर्धधातुक लकारों में सदोप रूपरचना- अर्थात् भू For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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