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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) 1 अश्वत्थः [न श्वश्चिरं शाल्मलीवक्षादिवत् तिष्ठति-स्था अनुष्ठान,-कम् 1. आठ अवयवों की बनी कोई +क पुषो. तारा०] पीपल का पेड़, ऊर्ध्वमलोऽ- समची वस्तु 2. पाणिनिसूत्रों के आठ अध्याय 3. वाशाख एषोऽश्वत्थः सनातनः---कठ०, भा० १५॥१॥ ऋग्वेद का एक खंड (ऋग्वेद ८ अष्टक या दस मंडलों अश्वत्थामन् (पु.) [अश्वस्येव स्थाम बलमस्य, पृषो० में विभक्त है) 4. आठ बस्तुओं का समूह-यथा तु० महा...---अश्वस्येवास्य यत्स्थाम नदतः प्रदिशो- वानराष्टकम्, ताराष्टकम्, गंगाष्टकम् आदि 5. आठ गतम्, अश्वत्थामैव बालोऽयं तस्मान्नाम्ना भविष्यति । की संख्या। सम० - अंगः, -गम एक प्रकार का द्रोण और कृपी का पुत्र, कुरुराज दुर्योधन की ओर से फलक या कपड़ा जिस पर आठ खाने बने होते हैं और लड़ने वाला ब्राह्मण योद्धा व सेनापति (यह अत्यन्त जो पाँसा खेलने के काम आता है। शूरवीर, प्रचण्डक्रोधी, युवक योद्धा था, इसका ब्रह्म- | अष्टन् (सं० वि०) [अंश+कनिन्, तुट् च] (कर्तृ०, तेज कणं के साथ वाग्युद्ध में प्रकट हुआ, जब कि कर्म-अष्ट—ष्टौ) आठ, कुछ संज्ञाओं तथा संख्याद्रोणाचार्य के पश्चात् कर्ण को सेनापतित्व दिया गया वाचक शब्दों से मिलकर इसका रूप समास में 'अष्टा' -दे. वेणी० तृतीय अंक, यह सात चिरजीवियों में रह जाता है, उदा० अष्टादशन, अष्टाविंशतिः, अष्टासे एक है)। पद आदि । सम०---अंग वि० जिसके आठ खंड अश्वस्तन, स्तनिक (वि.) [न श्वो भवः इति-..-३वस्--- या अवयव हों -गम् 1. शरीर के आठ अंग जिनसे ट्युल तुट् च, न० त०] [श्वस्तन+ठन् च न० अति नम्र अभिवादन किया जाता है, पातः,--प्रणामः त०] 1, जो आगामी कल का न हों, आज का 2 जो साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने आगामी कल का प्रबंध नहीं रखता है -- मनु० ४७,। वाला नम्र अभिवादन-जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां अश्विक (वि.) [ अश्व+ठन | जो घोड़ों से खींचा जाय । पाणिभ्यामुरसा धिया, शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोअश्विन् (पुं०) [ अश्व+इन् ] 1. अश्वारोही, घोड़ों को ऽष्टाङ्ग ईरितः ।। 2. योगाभ्यास अर्थात मन की एका सधाने वाला-नौ (द्वि०व०) देवताओं के दो वैद्य ग्रता के आठ भाग 3. पूजा की सामग्री, अर्घ्यम आठ जो कि सूर्य के द्वारा घोड़ी के रूप में एक अप्सरा से वस्तुओं का उपहार, धूपः आठ औषधियों से बनी जुड़वें पैदा हुए थे। एक प्रकार की ज्वर उतारने वाली धूप, “मैथुनम् आठ अश्विनी [ अश्व-+ इनि+डी] 1. २७ नक्षत्रों में सबसे प्रकार का संभोग-रस, प्रणय की प्रगति में आठ पहला नक्षत्र (जिसमें तीन तारे होते है), 2. एक अवस्थाएँ–स्मरणं कीर्तनं केलि: प्रेक्षणं गुह्यभाषणम्, अप्सरा जो बाद में अश्विनीकुमारों की माता मानी संकल्पोऽध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च ।,-अध्यायी जाने लगी, सूर्य पत्नी जो कि घोड़ी के रूप में छिपी पाणिनि मुनि का बनाया व्याकरणग्रंथ जिसमें आठ हुई थी। सम०--कुमारी,पुत्रौ--सुतौ सूर्यकी अध्याय है, अत्रम् अष्टकोण,—अस्त्रिय अष्टकोणीय पत्नी अश्विनी के यमज पुत्र ।। —अह (न) (वि.) आठ दिन तक होने वाला, अश्वीय (वि०) [ अश्व+छ ] घोड़ों से संबंध रखनेवाला ----कर्ण (वि.) आठ कानों वाला, (–णः) ब्रह्मा घोड़ों का प्रिय,यम् घोड़ों का समूह, अश्वारोही की उपाधि,-कर्मन (पुं०),---गतिकः राजा जिसने सेना—शि० १८५। अपने आठ कर्तव्य पूरे करने हैं (आठ कर्तव्य--आदाने अषडक्षीण (वि.) [न सन्ति --- षडक्षीणि यत्र-न० ब०, च विसर्गे च तथा प्रेषनिषेधयोः, पंचमे वार्थवचने तत:---ख ] जो छ: आँखों से न देखा जा सके, जो व्यवहारस्य चेक्षणे, दंडशुद्धयोः सदा रक्तस्तेनाष्टगतिको केवल दो व्यक्तियों के द्वारा निश्चित या निर्णीत किया नपः ।-कृत्वस् (अव्य०) आठ बार,—कोण: आठ जाय,—णम् रहस्य । कोण वाला, अठपहल,-गवम् आठ गौओं का लहँडा; अषाढः [ अषाढया युवता पौर्णमासी आषाढी सा अस्ति —गुण (वि.) आठ तह वाला,-दाप्योऽष्टगुणमत्ययम् यत्र मासे अण् वा ह्रस्वः ] अषाढ़ का महीना (प्रायः मनु० ८।४००, (-णम्) वह आठ गुण जो ब्राह्मण 'आषाढ़' लिखा जाता है)। में अवश्य पाये जाने चाहिए- दया सर्वभूतेषु, क्षांतिः, अष्टक वि० [ अष्टन : कन् । आठ भागों वाला, आठ अनसूया, शौचम्, अनायासः, मंगलम्, अकार्पण्यम्, तह वाला,---क: जो पाणिनि निर्मित आठों अध्यायों अस्पृहा चेति... गौ० । आश्रय (वि०) इन आठ गुणों का जानकार है, या उनका अध्ययन करता है,--का से युक्त,-ष्ट (ष्टा) चत्वारिंशत् (वि.) अड़पूर्णिमा के पश्चात् सप्तमी से आरंभ करके आने वाले तालीस, - तय (वि०) आठ तहों वाला,-त्रिशत्, तीन (सप्तमी, अष्टमी और नवमी) दिन 2. उन तीन (.--ष्टा) (वि.) अड़तीस,--त्रिकम् चौबीस, महीनों की अष्टमियां, जबकि पितरों का तर्पण होता दलम् 1. आठपंखड़ियों वाला कमल, 2. अठकोन, है, 3. उपर्युक्त दिनों में किया जाने वाला श्राद्ध- । ----वशन् (°ष्टा) नीचे दे०,—विश् (स्त्री०) आठ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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