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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. बड़ी पत्नी का लड़का 3. पूर्वपुरुष, बापदादा, / पवत,-सक्थम् जंघा का ऊपरी भाग,--संध्या -~~-जन्मन् (नपुं०) पहला जन्म, (पू०) बड़ा भाई प्रभातकाल, पौ फटना,-शि० १०४०,-सर (वि०) --रघु०१४।४४, १५।९५,--जा बड़ी बहन, जातिः अग्रेसर, सागरः पूर्वी समुद्र -- रघु० 4 / 32, - साहसः (स्त्री) पूर्वजन्म,-ज्ञानम् पूर्वजन्म का ज्ञान, - वक्षिण | पहला या सबसे भारी अर्थदण्ड, --स्थितिः (स्त्री०) (वि.) दक्षिणपूर्वी ( णा) दक्षिण पूर्व दिशा, | पहली या प्रथम अवस्था। ---- दिक्पतिः पूर्व दिशा का अधिपति इन्द्र,--दिनम् दिन पूर्वक (वि०) [पूर्व+कन्] (समास के अन्त में) 1. का पूर्वभाग, दोपहर से पूर्व का समय,-विश (स्त्री०) / पूर्ववर्ती, अनुसेवित-अनामयप्रश्नपूर्वकमाह-श०५ 2. पूर्व दिशा, --दिष्टम् भाग्य में लिखा, - देवः1.प्राचीन पूर्ववर्ती, पिछला,--- कः पूर्वज, बापदादा / देवता 2. राक्षस या असुर 3. प्रजनक, पिता, देशः | पूर्वगम (वि.) [पूर्व+ गम् +खच्] पहले जाने वाला, पूर्वी प्रदेश, भारत का पूर्वी भाग, --- निपातः समास में पूर्ववर्ती / शब्द की अनियमित प्राथमिकता - तु० परनिपात, | पूर्वतः (अव्य० [पूर्व+तस्] 1. पूर्व में, पूर्व की ओर, --- पक्षः 1. अगला हिस्सा या पार्श्व 2. कृष्णपक्ष | ---रघु० 3 / 42 2. पहले, सामने / (चान्द्रमास का प्रथमपक्ष) 3. विवाद का पूर्वपक्ष, | पूर्वत्र (अव्य०) [पूर्व +त्रल] पूर्ववर्ती भाग में, पहली प्रथमदर्शनाधारित तर्क या प्रश्न का दृष्टिकोण 3. किसी तर्क का प्रथम आक्षेप 4. वादी की प्रतिज्ञा 5. अभि- पूर्ववत् (अव्य०) [पूर्व+वति] पहले की भांति / योग, नालिश, पदम् किसी समास या वाक्य का | पूर्विन (वि.) (स्त्री०-णी) पूर्वीण (वि.) [पूर्व+इनि, प्रथम पद, -पर्वतः उदयाचल जिसके पीछे सूर्य का | पूर्व+ख] 1. प्राचीन 2. पैतृक। उदय होना माना जाता है - पांचालक (वि०) पूर्वी | पूर्वद्यः (अव्य) पूर्वस्मिन अहनि--पूर्व+एद्यस नि० पंचालों से संबंध रखने वाला पाणिनीयाः (पुं०, ब० साध] 1. पहले दिन 2. गत दिवस, बीते हुए कल व०) पूर्व देश के रहनेवाले पाणिनि के शिष्य, पिता- मनु. 3 / 187 3. दिन के प्रथम भाग में, पौ महः बापदादा, पूर्वज, --पुरुषः 1. ब्रह्मा का विशेषण फटने पर 4. भोर में, सबेरे। 2. पिता, पितामह या प्रपितामह में से कोई एक | पूल (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-पूलति, पूलयति-से) 3. पूर्वपुरखा,-पूर्व (वि.) प्रत्येक पूर्ववर्ती --फाल्गनी ढेर लगाना, संचय करना, एकत्र करना / ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित है भवः पूलः, पूलकः [पूल+अच, ण्वुल वा] गठरी, पुली। बहस्पति ग्रह का विशेषण, . भागः अगला हिस्सा, | पूलाक:=पुलाक-दे। -भाद्रपदा पच्चीसवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित लिका [=पूरिका, रस्य ल:] एक प्रकार की रोटी, पूरी। है,-भुक्तिः (स्त्री०) पहले से किया हुआ अधिकार, | पूषः, पूषकः [पूष् -क, पूष्+कन्] शहतूत का वृक्ष / -भूत (वि०) पूर्ववर्ती, पहले का, - मीमांसा प्रथम पूषन् (पुं०) (कर्तृ० -पूषा,- षणी, -षणः) [पूष्+ मीमांसा, वेद के अंतर्गत कर्मकाण्डविषयक पच्छा कनिन् ] सूर्य,-सदा पांथः पूषा गगनपरिमाणं कलयति (विप० उत्तरमीमांसा या वेदान्त-..दे० मीमांसा,-रंगः -भर्तृ० 2 / 114, इन्धनौषधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति नाटक का उपक्रम या आरंभ, आमुख या प्रस्तावना, पूषणम्-शि० 2 / 3 / सम०-असुहद् (पुं०) शिव -पूर्वरंग विधायव सुत्रधारो निवर्तते .सा.द. 283, का विशेषण,-आत्मजः 1. बादल 2. इन्द्र का विशेषण, पूर्वरंगः प्रसंगाय नाटकीयस्य वस्तुनः - शि० 218 --भासा इन्द्र का नगर (अमरावती)। (दे० इस पर मल्लि०), रागः आरंभिक प्रेम, दो | Ti (तुदा० आ०-प्रियते, पत)-व्यस्त होना, सक्रिय होना व्यक्तियों के मिलन से पूर्व (श्रवण दर्शन आदि के (बहुधा 'व्या' उपसर्ग के साथ)-कार्ये व्याप्रियते कारण) उनमें उत्पन्न होनेवाला प्रेम, * रात्रः 1. रात --दे० व्याप्त -प्रर० (पारयति--ते) 1. काम का पहला भाग, रूपम् 1. होने वाले परिवर्तन का कराना, काम पर लगाना, सौंपना, नियत करना संकेत 2. रोग होने का लक्षण 3. दो सहवर्ती स्वर (बहुधा अधि० के साथ) व्यापारितः शूलभता विधाय या व्यंजनों में से पहला जो स्थिर रहे, बयस (वि.) सिंहत्वमकागतसत्त्ववत्ति-रघु० 2 / 38 2. रखना, बच्चा --वतिन् (वि०) पहले से विद्यमान, पहले का, जड़ देना, निश्चित करना, निदेश देना, ढालनापहले होने वाला, वादः बादी द्वारा प्रस्तुत अभियोग, व्यापारयामास करं किरीटे-रघु० 6 / 19 उमामुखे मट्टई द्वारा की गई नालिश, वादिन् (प.) अभि- .''व्यापारयामाम विलोचनानि--कु० 3 / 67, व्यापायोक्ता या मुद्दई, वृत्तम् 1. पहली घटना,---रघु० रितं शिरसि शस्त्रमशस्त्रपाणे:-वेणी० 3 / 19, रघु० 11 / 10 2. पहला आचरण, शारद (वि०) शरद् | 13 / 25 / / ऋतु के पूर्वार्ध से संबंध रखने वाला, - शैलः दे० पूर्व. | i (जुहो० पर०--पिपति, पूर्ण) 1. आगे ले जाना 2. For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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