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( २८ ) अध्यग्नि (अव्य०) विवाह संस्कार की अग्नि के निकट या । शिक्षक-विशेषतया वेदों का, व्याकरण; न्याय; भूतक
ऊपर, (नपुं०-ग्नि) विवाह के अवसर पर अग्नि को अर्थार्थी अध्यापक । विष्णस्मृति के अनुसार अध्यापक साक्षी करके स्त्री को दिया जाने वाला उपहार, धन-- दो प्रकार के है-एक तो 'आचार्य' जो कि बालक को विवाहकाले यत्स्त्रीभ्यो दीयते ह्यग्निसन्निधौ, तदध्य- यज्ञोपवीत पहनाकर वेद-पाठ में दीक्षित करते हैं, दूसरे ग्निकृतं सद्धिः स्त्रीधनं परिकीर्तितम ।
'उपाध्याय जो अपनी जीविका कमाने के लिए अध्याअध्यधि (अव्य०) [अधि+अधि] ऊपर, ऊँचे (कर्म० के | पन कार्य करते हैं, दे० मनु० २११४०-४१ । साथ) लोकम्-सिद्धा० ।
अध्यापनम् [अधि+इ+णि+ल्यट] पढ़ाना, सिखाना, अध्यधिक्षेपः [प्रा० स०] अत्यन्त अपशब्द या दुर्ववचन, व्याख्यान देना, ब्राह्मण के षटकर्मों में से एक, भारतीय कुत्सित गालियां।
स्मृतिकारों के अनुसार 'अध्यापन' तीन प्रकार का है अध्यधीन (वि.) [प्रा० स०] नितान्त अधीन, विल्कुल धर्मार्थ किया जाने वाला 2 मजदूरी प्राप्त करने के वशीभूत, जैसे कि दास सेवक-या० ३।२२८ ।
लिए 3 की गई सेवा के बदले। अध्ययः [अधि+इ+अच्] 1 ज्ञान, अध्ययन, स्मरण 2= | अध्यापयित (पुं०) [अधि+इ+णि+तृ] अध्यापक, दे० अध्याय ।
शिक्षक। अध्ययनम् [अधि+इ+ ल्युट्] सीखना, जानना, पढ़ना | अध्यायः [अधि+इ+घञ्]1 पढ़ना, अध्ययन, विशेषतः (विशेषतया वेदों का), ब्राह्मण के षट्कर्मों में से एक ।
वेदों का, 2 पाठ या पढ़ने के लिए उचित समय 3 पाठ, वेदाध्ययन केवल प्रथम तीन वर्गों के लिए विहित है,
व्याख्यान 4 खण्ड, किसी रचना के भाग, निम्नांकित शूद्र के लिए नहीं--मनु० १।८८-५१ ।
कुछ ऐसे नाम हैं जो संस्कृत लेखकों ने 'खण्ड' या अध्यर्ष (वि.) [अधिकमध यस्य] जिसके पास अतिरिक्त
'भाग' को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किये हैं—सर्गों आधा हो-शतमध्यर्धमायता-महा० अर्थात् १५०,
बर्ग: परिच्छेदोद्धाताध्यायाङ्कसंग्रह, उच्छ्वासः परिवर्तयोजनशतात्-पंच० २।१८।
श्च पटल: कांडमाननम्, स्थानं प्रकरणं चैव पर्वोल्लाअध्यवसानम् [अधि+अव+सो+ल्युट्] 1 प्रयत्न, दृढ़- साह्निकानि च, स्कंधांशी तू पुराणादौ प्रायशः परिनिश्चय आदि, दे० अध्यवसाय 2 (सा. शा० में) |
कीर्तितो। प्रकृत और अप्रकृत दोनों वस्तुओं का इस ढंग से | अध्यायिन् (वि.) [अध्याय+णिनि अध्ययन करने वाला, एक रूप करना जिससे कि एक वस्तु दूसरी में विलीन अध्ययनशील। हो जाय; निगीर्याध्यवसानं तु प्रकृतस्य परेण यत्--- अध्यारूढ़ (वि.) [अधि+आ+रह+क्त]1 सवार, चढ़ा काव्य० १०, इसी प्रकार की एकरूपता पर अतिश- हुआ, 2 ऊपर उठा हुआ, उन्नत 3 ऊँचा, श्रेष्ठ,
योक्ति अलंकार और साध्यवसाना लक्षणा आश्रित है। नीचा, निम्नतर। अध्यवसायः [अधि--अव+सोधि ] 1 प्रयास, प्रयत्न, | अध्यारोपः [ अधि+आ+रह+णिच-पुक+धा ] 1
परिश्रम 2 दृढ़निश्चय, संकल्प, मानस प्रयत्न या उठना, उन्नत होना आदि 2 (दे० द० में) भ्रमवश
विचारों का ग्रहण, 3 धैर्य, उद्यम, लगातार कोशिश । एक वस्तु को अन्यवस्तु समझना, भ्रम के कारण एक अध्यवसायिन् (वि.) [अधि+अव+सो+णिनि] प्रयत्न- वस्तु के गुण दूसरी वस्तु में जोड़ना, भ्रमवश रस्सी को शील, दृढ़संकल्प वाला, धैर्यशाली, उत्साही।
सांप समझना-असर्पभूतरज्जो सारोपवत्, अजगद्रूपे अध्यशनम [अधि-अश्+ल्युट] अधिक खाना, एक बार ब्रह्मणि जगद्पारोपवत्, वस्तुनि अवस्त्वारोपोऽध्यारोपः का खाना पचे बिना फिर खा लेना।
वे० साल, 3 भ्रान्तिपूर्ण ज्ञान । अध्यात्म (वि.) [आत्मनः संबद्धम्] आत्मा या व्यक्ति से
अध्यारोपणम् [ अधि+आ+रह+णि+पु+ ल्युट् ] संबंध रखने वाला,-त्मम् (अव्य०) आत्मा से संबद्ध 1 उठना आदि 2 (बीज) बोना। -रमम् परब्रह्म (व्यक्ति के रूप में प्रकट) या आत्मा अध्यावापः [ अधि+आ+व+घञ ] 1 बीजादिक और परमात्मा का संबंध । सम-ज्ञानम्,-विद्या बखेरना या बोना 2 वह खेत जिसमें बीजादिक बो आत्मा या परमात्मा संबंधी ज्ञान अर्थात् ब्रह्म एवं दिया गया हो। आत्म-विषयक जानकारी (उपनिषदों द्वारा बताये गये
अध्यावाहनिकम् [ अध्यावाहनं (पितृगृहात्पतिगृहगमनम्) सिद्धांत)-रति (वि०) जो परमात्मचिन्तन में सुख लब्धार्थे ठन] छ: प्रकार के स्त्रीधनों (वह सम्पत्ति जो का अनुभव करे।
एक स्त्री अपने पिता के घर से पति के घर को बिदा अध्यात्मिक (वि.) [स्त्री०-को ] अध्यात्म से सम्बन्ध होते समय प्राप्त करती है) में से एक-यत्पुनर्लभते रखने वाला।
नारी नीयमाना तु पैतृकात् (गहात्) अध्यावाहनिक अध्यापकः [ अधि+इ-णिच् +ण्वुल ] पढ़ाने वाला, गुरु, । नाम स्त्रीधनं परिकीर्तितम् ।
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