________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 728 ) भङ्गा [भज+अ+टाप् 1. पटसन 2. पटसन से तैयार / ---श० 5 / 10, भामि० 1983, रघु० 17428, (ख) किया एक मादक पेय / सम०--कटम् पटसन का अभ्यास करना, अनुगमन करना, पालन करना--भेजे पराग। धर्ममनातुरः --- रघु० 121 5. उपभोग करना, भगिः ,गी (स्त्री०) [भज्ज+इन्, कुत्वम् ; भङ्कि+ अधिकृत करना, रखना, भोगना, अनुभव करना, ङीष् ] 1. टूटना, हड्डी का टूटना, विच्छेद, प्रभाग मनोरंजन करना-विधुरपि भजतेतरां कलङ्कम् 2. हिलोर 3. झुकाव, सिकुड़न--दग्भजीभिः प्रथम- -- भामि० 274, न भेजिरे भीमविशेण भीतिम् मथुरासंगमे चुम्बितोऽस्मि-उद्भट, श० 13 4. लहर .-भर्तृ० 2180, व्यक्ति भजन्त्यापगाः-- श० 718, 5. बाढ़, धारा 6. टेढ़ा मार्ग, घुमावदार या चक्करदार अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिष मार्ग 7. गोलमोल या घूमघुमाकर कहने या करने का -रघु०८।४३, मा० 319, उत्तर० 135 6. सेवा ढंग, वाग्जाल- भझ्यन्तरेण कथनात् - काव्य० 10, में प्रस्तुत रहना, सेवा करना--रघु० 2 / 23 पंच० बहुभङ्गिविशारदः-दश० 8. बहाना, छद्मवेष, आभास 14181, मृच्छ० 1232 7. आराधना करना, सत्कार -य: पाञ्चजन्यप्रतिबिम्बभङ्ग्या धाराम्भस: फेनमिव करना (देव मान कर) पूजा करना 8. छाँटना, चुनना, व्यनक्ति-विक्रम० 11 1. दावपेंच, जालसाजी, पसंद करना स्वीकार करना - सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् धोखा 10. व्यंग्योक्ति 11. व्यंग्योत्तर, आशुत्तर भजन्ते-मालवि० 22 9. शारीरिक सुखोपभोग 12. पग-रघु०१३॥६९ 13. अन्तराल 14 ह्री, लल्जा- करना, पंच० 4150 10. अनुरक्त होना, भक्त बनना शीलता। सम-भक्तिः (स्त्री०) तरंगवत् कदमों या 11. अधिकार में करना 12. भाग्य में पड़ना (इस तरंगों की श्रृंखला में विभाजन, लहरियेदार जीना | धातु के अर्थ-संज्ञाओं के साथ जुड़कर विविध रूप ---मेघ०६०। ग्रहण कर लेते है उदा० निद्रां भज सोना, मूछा भज् भगिन् (बि०) [भङ्ग इनि]1. शीघ्र टूटने वाला, भंगुर, / बेहोश होना, भावं भज प्रेम प्रदर्शित करना आदि) अस्थायी-तदपि तत्क्षणभङ्गि करोति चेत्---भर्तृ० 2 / / वि---, 1. विभक्त करना, बाँटना -विभज्य मेरुन 91 2. किसी अभियोग में पछाड़ा हुआ। यदथिसात्कृत:-०१११६, पत्रिणां व्यभजदाश्रमाद्वहिः भन्मित् (वि.)[ भङ्गि+मतुप ] लहरियेदार, करारा / ---रघु०११०२५, 1054, शि० 113 2. अलग 2 भङ्गिमन् (पुं०) [ भङ्ग+इमनिच् ] 1. (हड्डी का) करना, (संपत्ति, पैतृक जायदाद आदि) बांटना टूटना, तोड़ना 2. झिकोर, हिलोर 3. घुघरालापन --विभक्ता भ्रातरः-'बंटे हए भाई 3. भेद करना 4. छद्मवेश, घोखा 5. आशूतर, व्यंग्योक्ति 6. कूटिलता। 4. सम्मान करना, पूजा करना, संवि- , हिस्सा लेना, भङ्गिलम् [भङ्ग+इलच ज्ञानेन्द्रियों में कोई दोष / हिस्से में किसी को प्रविष्ट करना वित्तं यदा यस्य भार (वि.) [भज्+घुरच] 1. टूटने के योग्य, भिदुर, च संविभक्तम् i (चुरा० उभ०-भाजयति--ते कड़कव्वल 2. दुबला-पतला, अस्थिर, अनित्य, नश्वर | --कई विद्वानों के मतानुसार यह 'भज्' के ही प्रेर० --आमरणान्ताः प्रणयाः कोपास्तत्क्षणभङ्गराः - हि० रूप हैं) 1. पकाना 2. देना। 1 / 188, शि० 1672 3. परिवर्तनशील, चर | भजकः [भज् - वुल] 1. बांटने वाला, वितरक 2. पूजक, 4. कुटिल, टेढ़ा 5. वक्र, घुघरदार-शशिमुखि तव भाति / भक्त, उपासक। भङ्गुरभ्रूः--गीत० 10 6. जालसाज, बेईमान, | भजनम् [भज् + ल्युट] 1. हिस्से बनाना, बाँटना 2. स्वत्व चालाक,---रः किसी नदी का मोड़। 3. सेवा, आराधना, पूजा / भजन (भ्वा० उभ०--भजति ते. परन्त व्यवहारतः। भजमान (वि०) [भज+शानच] 1. बांटने वाला 2. उप आ०, भक्त) 1. (क) हिस्से करना, वितरित करना, भोक्ता 3. योग्य, सही, उचित / वॉटना ...भजेरन् पैतृक रिकथम् - मनु० 9 / 104, न भञ्ज / (रुघा०प०--भनक्ति, भग्न इच्छा विभक्षति) तत्पुत्रैर्भजेत्सार्धम्-२०९, 119, (ख) निर्दिष्ट 1. तोड़ना, फाड़ डालना, छिन्नभिन्न करना, चूर चूर करना, नियत करना, अनुभाजन करना-गायत्री- करना, टुकड़े टुकड़े करना, खण्डशः करना भनज्मि मग्नयेऽभजत् .. ऐ० ब्रा० 2. किसी के लिए प्राप्त सर्वमर्यादाः भट्टि० 6 / 38, भवत्वा भुजी-४।३, करना, हिस्सा लेना, भाग लेना- पित्र्यं वा भजते बभजुर्बलयानि च 3 / 22, धनुरभाजि यत्त्वया-रघु० शीलम् - मनु० 10159 3. स्वीकार करना, ग्रहण 1176 2. उजाड़ना, उखाड़ना- भनक्त्युपवनं कपिः करना--मा० 9 / 25 4. (क) आश्रय लेना, (अपने ---भट्टि० 9 / 2 3. (किले में) दरार डालना आप को) समर्पण करना, पहुँच रखना-शिलातलं 4. भग्नाश करना, प्रयत्न व्यर्थ करना, निराश करना, भेजेका० 179, मातर्लक्ष्मि भजस्व कंचिदपरम प्रगति रोकना-पिनाकिना भग्नमनोरथा सती--कु० -भर्त० 3 / 64, न कश्चिद्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि भजते 5 / 1 5. पकड़ना, रोकना, विघ्न डालना, निलंबित For Private and Personal Use Only