________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 739 ) 3. भविष्य --समतीतं च भवच्च भावि च--रघु० / बोलना--स्थितघीः किं प्रभाषत-भग० 2 / 54, 878, प्रत्यक्षा इव यद्भावाः क्रियन्ते भूतभाविनः प्रति -1. बदले में कहना, उत्तर देना-भट्टि -काव्य०१०, 03 / 11 4. होने के योग्य 5. अव- 5 / 39 2. कहना, वर्णन करना 3. एक के बाद बोलना, श्यंभावी, भवितव्य, प्रानियत या पूर्वनिर्दिष्ट-- यद- सुनकर बोलना 4. नाम लेना, पुकारना -- कामिनि भावि न तद्भावि भाविचेन्न तदन्यथा हि० 1 तामपगीति प्रतिभाषन्ते महाकवयः- श्रुत०६, वि---, 6. उत्कृष्ट, सन्दर, भव्य,-नी 1. सन्दर स्त्री 2. उत्तम ऐच्छिक नियम के रूप में निर्धारित करना, सम--, या साध्वी महिला-कु० 5 / 38 3. स्वेच्छाचारिणी मिलकर बोलना, बातचीत करना--मनु० 855 / स्त्री। भाषणम् [ भाष्+ल्युट् ] 1. बोलना, बातें करना, कहना भावुक (वि०) [भू+उका ] 1. होने वाला, घटने | 2. वक्तृता, शब्द, बात 3. कृपापूर्ण शब्द / / वाला 2. होनहार 3. समृद्ध, प्रसन्न 4. शुभ, मंगलमय | भाषा [ भाष् +अड+टाप् ] 1. वक्तृता, बात- यथा 5. काव्य में रुचि रखने वाला, गुणग्राही,-कः बहनोई 'चारुभाषः' में 2. बोली, जबान--मनु० 8 / 164 (बहुधा नाटकों में प्रयुक्त),-कम् 1. प्रसन्नता, 3. सामान्य या देहाती बोली (क) बोली जाने वाली कल्याण, समृद्धि स एतु वो दुश्च्यवनो भावुकानां संस्कृत भाषा (विप० छंदस् वा वेद)-विभाषा भाषापरंपराम्....काव्य० 7 ('अप्रयुक्तत्व' नाम काव्य / याम्-पा० 6 / 1 / 181 (ख) कोई प्राकृत बोली रचना के दोष का उदाहरण 2. प्रेम और प्रणयोन्माद (विप० संस्कृत) मनु० 8 / 332 4. परिभाषा, वर्णन से पूर्ण भाषा। -स्थितप्रज्ञस्य का भाषा-भग० 2 / 54 5. सरस्वती का भाव्य (वि०) [भ+प्यत् ] 1. होने वाला, घटित होने विशेषण, वाणी की देवी 6. (विधि में) अभियोग वाला, प्रायः भवितव्यम्' की भांति भावरूप में प्रयुक्त की चार अवस्थाओं में से पहली, शिकायत, आरोप, ...कि तैर्भाव्यं मम सुदिवसः .. भर्तृ० 3 / 4 2. भविष्य दोषारोपण। सम०-- अन्तरम् 1. अन्य वाणी या बोली 3. अनुष्ठेय या जो पूरा किया जाय 4. सोचे जाने 2. अनुवाद,-पावः आरोप, शिकायत- दे० 'भाषा' या कल्पना किये जाने योग्य 5. सिद्ध या प्रदर्शित 6 ऊपर,...समः एक अलंकार का नाम जिसमें किये जाने योग्य 6. निर्धारण या गवेषणा किये जाने शब्दक्रम का न्यास इस प्रकार किया जाता है कि योग्य,-व्यम् / प्रारब्ध, अवश्यंभावी 2. भवितव्यता। चाहे आप उसे संस्कृत समझें और चाहे प्राकृत (कोई भाष (भ्वा० आ० भाषते, भाषित) 1. कहना, बोलना, न कोई भेद)-उदा०-मजलमणिमञ्जीरे कलगम्भीरे उच्चारण करना---त्वयकमीशं प्रति साधु भाषितम् विहारसरसीतीरे, विरसासि केलिकीरे किमालि धीरे -कु० 5 / 81, बहुधा द्विकर्मक,-भीता प्रियामेत्य च गन्धसारसमीरे -- सा० द० 642, (एष श्लोकः वचो बभाषे-रधु० 766, आखण्डल: काममिदं संस्कृतप्राकृतशौरसेनीप्राच्यावन्तीनागरापभ्रंशेष्वेकविध बभाषे--कु० 3 / 11, भट्टि० 9 / 122 2. बोलना, एव), किं त्वां भणामि विच्छेददारुणायासकारिणि, संबोधित करना--किंचिद्विहस्यार्थपति बभाषे--रघु० कामं कुरु वरारोहे देहि मे परिरंभणम्-मा०६।११, 2146, 3151 3. बोलना, घोषणा करना, प्रकथन (यह संस्कृत या शौरसेनी में है) इसी प्रकार 6 / 10 / करना-क्षितिपालमुच्चैः प्रीत्या तमेवार्थमभाषतेव | भाषिका [भाषा+कन्+टाप, हस्व:, इत्वम्] वक्तृता, -रघु० 2051 4. बोलना, बातें करना 5. नाम लेना, भाषा, बोली। पुकारना 6. वर्णन करना, -अनु 1. बोलना, कहना। भाषित (भू० क० कृ०) [भाष्+क्त] बोला हुआ, कहा 2. समाचार देना, घोषणा करना-मनु० 11228, हुआ, उच्चारण किया हुआ,-तम् भाषण, उच्चाअप---झिड़कना, बुरा भला कहना, बदनाम करना, रण, शब्द, बोली-मनु० 8 / 26 / सम०.--पुंस्क निन्दा करना, बुराई करना-अहमणुमात्रं न किचि- -उक्तपुंस्क। दपभाषे-भामि० 4 / 27, न केवल यो महतोऽपभाषते भाष्यम् [भाष्+ण्यत्] 1. बोलना, बातें करना 2. सामान्य शृणोति तस्मादपि यः स पापभाक्-कु० 5 / 83, या देहाती भाषा की कोई रचना 3. व्याख्या, वृत्ति, अभि--, 1. बोलना, भाषण देना-मनु० 2128 टीका जैसा कि 'वेदभाष्य' में 4. विशेषकर सूत्रों की 2. बोलना, कहना 3. प्रकथन करना, घोषणा करना, वत्ति जिसमें शब्दश: व्याख्या और टिप्पण होते हैं कहना, समाचार देना 4. वर्णन करना, आ-,1. बोलना, (सूत्रार्थों वर्ण्यते यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः, स्वपदानि भाषण देना,...वैशम्पायनश्चन्द्रापीडमाबभाष –का. च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः)-संक्षिप्तस्याप्यतोऽ 117 2. कहना, बोलना,-आभाषि रामेण वचः कनी स्यैव वाक्यस्यार्थगरीयसः, सुविस्तरतरा वाचो भाष्ययान्- भट्टि० 3.51, परि -,परिपाटी स्थापित भूता भवन्तु मे-शि० 2 / 24 5. पाणिनि के सूत्रों पर करना, औपचारिक रूप से बोलना, प्र-,कहना, पतंजलि का महाभाष्य / सम०--करः--कार:-कृत For Private and Personal Use Only