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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (अपा० के साथ, नयहीनादपरज्यते जनः-कि० से भागने वाला, भगोड़ा-स बभार रणापेतां चमं प२०४९ 2. पीला होना, विवर्ण होना--श्वासापरक्ता- _श्चादवस्थिताम्-कि० 15 / 33, आतोद्यम्,-तूर्यम्, घरः - श०६।५, उप-, 1. ग्रहणग्रस्त होना,- उप- -- वृंदुभिः सैनिक ढोल, मारु बाजा,-उत्साहः युद्ध में रज्यते भगवांश्चन्द्र:-मुद्रा० 1 2. हलके रंग का प्रदर्शित विक्रम,--क्षितिः (स्त्री०),-क्षेत्रम्,-भूः होना, रंगीन होना-शि० 2010 3. कष्टग्रस्त या (स्त्री०),-भूमिः (स्त्री०), स्थानम् युद्धक्षेत्र,-धुरा विपद्ग्रस्त होना वि-, 1. रंगरहित होना, मलिन युद्ध में आगे रहना, युद्ध का वार-ताते चापद्वितीये होना, घटिया या भहा होना-केशा अपि विरज्यंते वहति रणधुरा को भयस्यावकाशः-वेणी० 35, नि:स्नेहाः कि न सेवका:-पंच० 282 (यहाँ यह ---प्रिय (वि०) युद्ध का शौकीन, लड़ाकू ,-मत्तः हाथी द्वितीयार्थ भी रखता है) 1. असन्तुष्ट होना, निलिप्त -मुखम्,-मूर्धन् (पुं०),- शिरस् (नपुं०) 1. युद्ध होना, नापसंद करना, घृणा करना---चिरानुरक्तोऽपि का अगला भाग, लड़ाई का मुख्य वार- श०६।३०, विरज्यते जन:-मच्छ० 1153, यां चिन्तयामि सततं 7 / 26 2. सेना का अग्रभाग,-रंक: हाथी के दाँतों के मयि सा विरक्ता-भर्त० 2 / 2, भट्टि० 18 / 22, संसार मध्य का फासला, - रंगः युद्धक्षेत्र,- रणः डांस, मच्छर से विरक्त होना, सांसारिक आसक्तियों का छोड़ देना। (--णम्) 1. प्रबल इच्छा, उत्कण्ठा 2. खोई हुई वस्तु रंजकः [रंजयति-रंज्+णिच्+ण्वुल] 1. चित्रकार, रंग- के लिए खेद,-रणकः,–कम् 1. चिंता, बेचनी, खेद, लेपक, रंगरेज 2. उत्तेजक, उद्दीपक,-कम् 1. लाल (किसी प्रिय वस्तु के लिए) कष्ट या संताप (प्रेम से चन्दन 2. सिन्दूर। उत्पन्न) रणरणकविवृद्धि बिभ्रदावर्तमानम्-मा० 1141, रंजनम् [रज्यतेऽनेन-रञ् करणे ल्युट्] 1. रंग करना, उत्तर०१ 2. प्रेम, इच्छा (.- कः) कामदेव,- वाघम् हलका रंगना, रंगलेप करना 2. वर्ण, रंग 3. प्रसन्न मारू बाजा, सैनिक संगीत बाजा,---शिक्षा सैन्यविज्ञान, करना, खुश करना, सन्तुष्ट रहना, तृप्त होना प्रसन्नता युद्धकला, या युद्ध विज्ञान,- संकुलम् घोर-युद्ध, तुमुलदेना--राजा प्रजारजनलब्धवर्ण:--रघु० 6 / 21, तथैव युद्ध,-सज्जा युद्ध की सामग्री, सैनिक साज-सामान सोऽभूदन्वर्थो राजा प्रकृतिरंजनात्--४।१२ 4. लाल -सहायः मित्र, सहायक,---स्तंभः विजयस्मारक, चन्दन की लकड़ी। विजयचिह्न। रंजनी [रंजन+डीप] नील का पौधा। रणस्कारः [रण + शतृ, ष० त०] 1. खड़खड़ाहट, झनरट् (म्वा० पर० रटति रटित) 1. चिल्लाना, चीत्कार ___झनाहट या छनछन की आवाज 2. (मक्खियों का) करना, चीखना, क्रंदन करना, दहाड़ना, चिंघाड़ना भनभनाना। --घोराश्चाराटिषुः शिवाः-भट्टि० 15 / 27, पपात | | रणितम् [ रण्+क्त ] खड़खड़ाहट, टनटन, झनझनाहट राक्षसो भूमी रराट च भयंकरम् -14181 2. जोर या छनछन की आवाज / से बोलना, उद्घोषणा करना 3. प्रसन्नता से चिल्लाना, | रंड: [ रम्+ड ] 1. वह पुरुष जो पुत्रहीन मरे 2. बंजर प्रशंसा करना आ-, पुकारना, चिल्लाना-प्रियसहचर- वृक्ष,-डा फूहड़स्त्री, पुंश्चली, स्त्रियों को संबोधित मपश्यंत्यातुरा चक्रवाक्यारटति--श०४। करने में निंदापरक शब्द-रंडे पंडितमानिनि-पंच० रटनम् [रट्+ल्युट्] 1. क्रन्दन की क्रिया, चिलाना, जोर 11392, (पाठान्तर) प्रतिकूलामकुलजां पापां पापा से आवाज देना 2. प्रशंसा का चीत्कार, पसंदगी। नवर्तिनीम, केशेष्वाकृष्य तां रंडा पाखण्डेष नियोजय रण (म्वा० पर० रणति, रणित) ध्वनि करना, टनटनाना, प्रबो०२2. विधवा स्त्री-रंडाः पीनपयोधराः झुनझुनाना, झनझनाना (पायजेब आदि का)-रण- कति मया नोद्गाढ़मालिंगिता: --प्रबो० 3 / / द्विराषट्टनया नभस्वतः पृथग्विभिन्नश्रुतिमंडलैः स्वरैः (भू.क. कु०) [रम्+क्त ] 1. प्रसन्न, खुश, तृप्त शि० 1310, चरणरणितमणिनूपुरया परिपूरितसुरत 2. प्रसन्न या खुश, स्नेहशील, मुग्ध, अनुरक्त 3. तुला वितानम्--गीत०२। हुआ, व्यस्त, संलग्न, (30 रम्),-सम् 1. प्रसन्नता रणः, णम् [रण्+अप्] 1. संग्राम, समर, युद्ध, लड़ाई 2. मैथुन, संभोग-रघु० 19 / 23, 25, मेघ०८९ --रणः प्रववृते तत्र भीमः प्लबगरक्षसाम्-रषु० 3. उपस्थ इन्द्रिय / सम०-अयनी वेश्या, रंडी,-अर्थिन 12 / 72, बचोजीवितयोरासीबहिनिःसरणे रणः (वि.) कामुक, कामासक्त,-उद्वहः कोयल,-ऋतिकम् सुभा. 2. युद्धक्षेत्र,—ण: 1. शब्द, शोर 2. सारंगी 1. दिन 2. आनन्द के लिए स्नान,-कील: कुत्ता, बजाने का गज 3. गति, चाल। सम०-अप्रम -कृजितम् कामासक्त व्यक्ति की मैथुन के समय की युद्ध का अगला भाग,-अंगम् यसशस्त्र, शस्त्र तलवार, सीत्कार, ज्वरः कौवा,-तालिन् (पुं०) स्वेच्छाचारी, संयदे शोणितं व्योम रणांगानि प्रजज्वल:-भट्रिक कामासक्त,--ताली कुटनी, दूती,-नारोच: 1. विषयी 1496, अंगणम्,-म् युद्धक्षेत्र, अपेत (वि०) युद्ध | 2. कामदेव, मदन 3. कुत्ता 4. मैथुन के समय की रणमा प्रववृते तयोरासीद्वा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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