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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४८ [+ विश्+ णिनि ]1. आदेश देने वाला, हुक्म देने वाला 2. उत्तेजक, भड़काने वाला - रघु० ६८, - ( पुं० ) 1. सेनापति, आज्ञप्ता 2. ज्योतिषी । (वि० ) [ बादी भवः यत् ] 1. प्रथम, आदि कालीन 2. मुखिया, प्रमुख, अगुआ - आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्छन्दसामिव र५० १।११ 3. ( समास के अन्तमें) आरंभ करके, वगैरा २, दे० आदि - 1. दुर्गा की उपाधि 2. मास का पहला दिन, खम् 1 आरंभ 2. अनाज, आहार । सम० कविः 'आदिकवि ब्रह्मा या काल्मीकि की उपाधि दे० 'आदिकवि' । बीजम् विश्व का मुख्य या भौतिक कारण जो सांख्य मतानुसार 'प्रधान' या जडनियम कहलाता है। आखून (वि० ) [ आ + दिव् + क्त, ऊठ् नत्वं च 'अद्' "खाना से व्युत्पन्न प्रतीत होता है ] बहुभोजी, घाउषप, पेटू, मुक्खड़ कि० ११५ । ': [. आ + त् + घञ्ञ ] प्रकाश, चमक ! [+ + कमनन् ] 1. धरोहर, निक्षेप-एको 'हांनीश: सर्वत्र दानाधमनविक्रये कात्या०; योगाधमनविक्रीतं योगदानप्रतिग्रहम् - मनु० ८ १६५, 2. विक्री के सामान का घूर्तता के साथ मूल्य चढ़ाना । अघमर्थ्यम् [ अधमर्ण + ष्यञ ] कर्जदारी । arette (वि०) [ अधर्म + ठज्ञ ] अन्यायी, बेईमान । आधर्वः [ आ + ष् + घञ्ञ ] 1. घृणा 2. बलात् चोट पहुँचाना आपणम् [ आ + ष् + ल्युट् ] 1. दोष या अपराध का निश्चय, दण्डादेश 2. निराकरण 3. चोट पहुँचाना, सताना । Water (भू० क० कृ० ) [ आ + घृष् + क्त ] 1. चोट पहुंचाया हुआ, 2. तर्क द्वारा निराकृत 3. दण्डादिष्ट, सिद्ध-दोष | [ आ + घा+ ल्युट् ] 1. रखना, ऊपर रख देना 2. केना, मान लेना, प्राप्त करना, वापिस लेना, 3. यज्ञाग्मि को स्थापित करना ( अग्न्याधान ) - पुनर्दार क्रियां कुर्यात् पुनराधानमेव च मनु० ५।१६८, 4. करना, कार्य में परिणत करना, निष्पन्न करना 5. बीच में रखना, रख देना, गुंणो विशेषाधानहेतु: सिद्धो वस्तुधर्मः - सा० द०२, प्रजानां विनयाधानाक्षणाङ्कुरणादपि रघु० १।२४6. वीजारोपण, उत्पादन- कौतुकाधानहेतोः मेघ० ३, गर्भाधानक्षणपरिपयात्-९, 7. निक्षेप, धरोहर - याज्ञ० २२२३८, । २४७ । आधानिकः [ आधान + ठञ् ] सहवास के पश्चात् गर्भाधान के निमित्त किया जाने वाला संस्कार । आधारः [ आ + + षब्न ]1. आश्रय, स्तंभ, टेक 2. ( अतः ) संभाले रखने की शक्ति, सहायता, संरक्षण, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदद - त्वमेव चातकाधारः - भर्तृ० २।५०, 3. भाजन आशय - तिष्ठन्त्वाप इवाधारे पंच० १ ६७, चराचराणां भूतानां कुक्षिराधारतां गतः - कु० ६।६७, कु० ३१४८, श० १११४, 4. आलवाल, - आधारबन्धप्रमुखः प्रयत्नैः - रघु० ५/६, 5. पुलिया, बाँध, पुश्ता, (तटबन्ध ! 6. नहर 7. अधिकरण कारक का भाव, स्थान- आषारोऽधिकरणम् । आषिः [ आ + धा + कि] 1. मानसिक पीड़ा, वेदना, चिन्ता (विप० व्याधि = शारीरिक पीड़ा) - न तेषामापदः सन्ति नाघयो व्याधयस्तथा — महा ०, – मनोगतमाधिहेतुम् -श० ३।११, रघु० ८ २७ ९५४ भर्तृ० ३।१०५, भामि०४।११, 2. विपत्ति, अभिशाप, सन्ताप- यान्त्येवं गृहिणीपदं युवतयो वामाः कुलस्याधयः- श० ४।१७, महावी० ६।२८, 3. निक्षेप, धरोहर, गिरवी, रेहन -याज्ञ० २।२३, मनु० ८।१४३, 4. स्थान, आवास 5. अवस्थान, ठिकाना 6. परिवार के भरण-पोषण के लिए चिन्तातुर । सम० - (वि०) पीडाग्रस्त, भोगः धरोहर की चीज का उपयोग (जैसे घोड़े गाय आदि का), स्तेन: स्वामी से पूछे बिना धरोहर की राशि को खर्च करने वाला व्यक्ति । अधिकरणिक: [अधिकरण + ठक् ] न्यायाधीश – मृच्छ०९ । आधिकारिक (fro ) ( स्त्री० की) 1. सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ 2. अधिकारी । आधिक्यम् [ अधिक + ष्यम् ] अधिकता, बहुतायत, प्राचुर्य । आधिदैविक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधिदेव + ठञ ] 1. अधिदेव या इन्द्रियों के अधिष्ठातृ देव से सम्बन्ध रखने वाला (जैसा कि एक मन्त्र ) मनु० ६ ८३, 2. दैवकृत, भाग्य में लिखी हुई - ( पीड़ा आदि), सुश्रुत के अनुसार पीड़ा तीन प्रकार की है-आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक । आधिपत्यम् [अधिपति + यक् ] 1. सर्वोपरिता, शक्ति, प्रभु सत्ता- राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यं (अवाप्य ) - भाग ० २८, 2. राजा का कर्तव्य पाण्डोः पुत्रं प्रकुरुष्वाधिपत्ये - महा० । आधिभौतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधिभूत + ठञ ] 1. प्राणियों - पशुपक्षियों से उत्पन्न (पीड़ा आदि ) 2. प्राणियों से सम्बन्ध रखने वाला 3. प्रारम्भिक, भौतिक आषिराज्यम् [ अधिराज + ष्यञ् ] अधिराज का पद या अधिकार, प्रभुसत्ता, सर्वोपरि प्रभुत्व - बभौ भूयः कुमारत्वादाधिराज्यमवाप्य सः - रघु० १७/३० । feere [ अधिवेदनाय हितं ठक्, तत्र काले दत्तं - ठञ वा] सम्पत्ति, उपहार आदि जो दूसरा विवाह करने पर पहली पत्नी को सन्तोषार्थं दिया जाय; For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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