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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४९ ) यच्च द्वितीयविवाहाथिना पूर्वस्त्रियं पारितोषिकं धनं । आननम् [ आ + अन् + ल्युट् ] 1. मुंह, चेहरा रघु० ११, दत्तं तदाधिवेदनिकम् - विष्णु०, तु० याज्ञ० २।१४३, १४८ - नृपस्य कांतं पिबतः सुतानमं-- १७, 2. किसी प्रत्य या पुस्तक के बड़े २ खण्ड (उदा० रसगंगाधर के को आनन ) । आधुनिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधुना + ठञ, ] नया, आजकल का, अब का, हाल का । आधोरण: [ आ + वोर् + ल्युट् षो गतिचातुयें] महावत, पीलवान, आघोरणानां गजसन्निपाते - रघु० ७।४६, ५।४८, १८।३९ । आध्मानम् [ आ + घ्मा + ल्युट् ] 1. फूँक मारना, फुलाव ( आलं०) वृद्धि 2. शेखी बघारना 3. धौंकनी 4. पेट का फूलना, शरीर का फुलाव, जलोदर । माध्यात्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अध्यात्म + ठञ ] 1. परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाला 2. आत्मा सम्बन्धी, पवित्र 3. मन से सम्बन्ध रखने वाला 4. मन से उत्पन्न (पीड़ा, दुःख आदि) दे० "आधिदैविक" । आध्यानम् [ आ + घ्यै + ल्युट् ] 1. चिन्ता 2. दुःख पूर्ण प्रत्यास्मरण 3. मनन । आध्यापकः [अध्यापक -+अण्] शिक्षक, धर्मोपदेष्टा, दीक्षा | गुरु । आध्यासिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अध्यास + ठक्] अध्यास द्वारा उत्पन्न अर्थात् ( वेदान्त० में) एक वस्तु के गुण व प्रकृति को दूसरी वस्तु पर आरोप करके । आध्वनिक (वि० ) ( स्त्री०= की) [ अध्वन् + ठक्] यात्रा पर, यात्री - कान्तारेष्वपि विश्रामो जनस्याध्वनिकस्य वे - महा० । आध्वर्यव (वि० ) ( स्त्री० – वी ) [ अध्वर्युं + अ ] अध्वर्युं या यजुर्वेद से सम्बन्ध रखने वाला, 1- बम् 1. यज्ञ में किया जाने वाला कार्य 2. विशेषतः अध्वर्यु नामक पुरोहित का कार्य । भीतर आन: [ आ + न् + क्विप्, ततः अण् ] 1. वायु खींचना 2. श्वास लेना, फूंक मारना । आनकः [आनयति उत्साहह्वतः करोति अण् + णिच् + ण्वुल् तारा०] 1. बड़ा सैनिक ढोल-नगाड़ा-पणवानकगोमुखाः सहसैवाभ्यहन्यन्त-— भग० १०१३, 2. गरजने बाला बादल । सम० - बुंदुभिः कृष्ण के पिता वासुदेव की उपाधि (भिः, -भी (स्त्री०)) बड़ा ढोल, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगाड़ा । आनति: ( स्त्री० ) [ आ + नम्+ क्तिन् ] 1. झुकना, नमस्कार करना, झुकाव ( आलं०० भी ) गुणवन्मित्रमिवानति प्रपेदे - कि० १३।१५, 2. नमस्कार या अभिवादन 3. श्रद्धांजलि, सत्कार, श्रद्धा । आनद ( वि० ) [ आ + नह + क्त ] 1. बांधा हुआ, मढ़ा हुआ 2. बद्धकोष्ठ, अवरुद्धमल (जैसा कि उदर) -: 1. ढोल 2. वस्त्रों का पहनना, बनाव-सिंगार । आनन्तर्यम् [ अनन्तर + ष्यञ् ] 1. भव्यवहित उत्तराधिकार 2. व्यवधान रहित आसन्नता । आनन्स्यम् [ अनन्त + ष्या ] 1. असमापकता, मन (काल, स्थान और संख्या की दृष्टि से ) - त्याद् व्यभिचाराच्च - काव्य० २, 2. असीमता 3. धनश्वरता नित्यता 4. ऊर्ध्वलोक, स्वर्ग, भावी सुख -- यस्तु नित्यं कृतमतिर्धर्ममेवाभिपद्यते, अशङ्कमानः कल्याणि सोऽमुत्रानन्त्यमश्नुते - महा० । आनन्दः [ आ + नन्द्+घञ ] 1. प्रसन्नता, हवं, खुशी, सुख, आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान्न विभेति कदाचन, 2. ईश्वर, परमात्मा ( नपुं० भी इसी अर्थ में) 3. लिब । सम० - काननम्, – वनम् काशी, पटः दुलहिन के वस्त्र, पूर्ण (वि०) आनन्द से ओतप्रोत (*) परमात्मा, प्रभवः वीर्य आनन्दथु ( वि० ) [ आ + नन्द् +अथुच् ] प्रसन्न, हर्षोत्फुल्क, - थः प्रसन्नता, हर्ष, सुख । आनन्दन (वि० ) [ आ + नन्द् + ल्युट् ] सुलकर, प्रसन्न करने वाला, नम् 1. खुश करना, प्रसन्न करना 2. प्रणाम करना 3. मित्र या अतिथियों के साथ, मिलने पर अथवा बिदा होते समय सम्योचित व्यवहार, सौजन्य, शिष्टता । आनन्दमय ( वि० ) [ आनन्द + मयट् ] 1. आनन्द से परि पूर्ण, सुख या हर्ष सहित यः परमात्मा, कोषा मन्त स्तम आवरण या शरीर का परिधान । आनन्दिः [ आ + नन्द्+इन् ] 1. हर्ष, प्रसन्नता 2. जिज्ञासा । आनन्दिन् ( वि० ) [ आ + नन्द् + णिनि ] 1. प्रसम्म, खुश 2. सुखकर । आनर्तः [ आ + नृत् + षञ्ञ ] 1. रंगमंच, नाट्यशाला, नाचघर 2. युद्ध, लड़ाई 3. देश का नाम ('सौराष्ट्र' भी इसी देश का नाम है ) . । आनर्थक्यम् [ अनर्थस्य भावः ष्यञ्ञ] 1. अनुपयुक्तता, निरर्थकता - श्रुत्यानर्थक्यमितिचेत् — कात्या०, बाम्नायस्य क्रियार्थत्वादानर्थक्यमतदर्थानाम् - जै० शा ० 2. अयोग्यता । आना: [ आ + न + ञ ] जाल । आनायिन् (पुं० ) [ आनाय + इनि ] मछुवा, पीवर - आनायिभिस्तामपकृष्टनक्राम् – रघु० १६/५५, ७५ । आनाय्य ( वि० ) [ आ + नी + ण्यतू, आयादेश: ] निकट लाने के योग्य, ---य्यः गार्हपत्याग्नि से ली हुई संस्कृत अग्नि ( 'दक्षिणाग्नि' भी कहलाती है) । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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