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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १५० ) 1. बन्धन 2. मलावरोध | आनुषङ्गिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुषङ्ग + ठक् स्त्रियाँ कपड़े की ) । ] 1. बद्ध, सहवर्ती 2. ध्वनित 3. अनिवार्य, आवश्यक 4. अप्रधान, गौण असुभिः स्थास्नु यशश्चिचीषतः ननु लक्ष्मीः फलमानुषङ्गिकम् कि० २।१९, अन्यतरस्यानुषङ्गिकत्वेऽन्वाचयः - सिद्धा० दे० 'अन्वाचय' 5 संलग्न, शौकीन 6. आपेक्षिक, आनुपातिक 7. ( व्या० ) अध्याहार्य | आनाहः [ आ + न + ञ्ञ ] कब्ज 3. लम्बाई (विशेषतः अनिल ( वि० ) ( स्त्री० - ली ) [ अनिल + अण् ] वायु से उत्पन्न, – लः, आनिलिः हनुमान्, भीम । आनील (वि० ) [ प्रा० स०] हल्का काला या नीला, - लः काला घोड़ा । आनुकूलिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुकूल + ठक्] हितकर, अनुरूप । आनुकूल्यम् [ अनुकूल + ष्या ]1. हितकारिता, उपयुक्तता - यत्रानुकूल्यं दम्पत्योस्त्रिवर्गस्तत्र वर्धते - याज्ञ० १ । ७४, 2. कृपा, अनुग्रह । आनुगत्यम् [ अनुगत + ष्यञ] जान-पहचान, परिचय । आनुगुष्यम् [अनुगुण+ ष्यञ] हितकारिता, उपयुक्तता, अनुरूपता । अनुग्रामिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुग्राम + ठञ, ] देहाती, ग्रामीण, गँवार । अनुनासिक्यम् [ अनुनासिक + ष्यञ] अनुनासिकता । अनुपविक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुपद + ठक् ] अनुसरण करने वाला, पीछा करने वाला, पदचिह्न या लीक के सहारे पीछा करने वाला, अध्ययन करने वाला । आनुपूर्वम्, - - a [ अनुपूर्वस्य भावः ष्यञ, ततो वा डीषि -लोपः ] 1. क्रम, परम्परा, सिलसिला मनु० २०४१ 2. ( विधि में ) वर्णों का नियमित क्रम - षडानुपूर्व्या विप्रस्य क्षत्रस्य चतुरोऽवरान् — मनु० ३।२३ | आनुपूर्वे,—व्ये - ण ( अव्य०) एक के बाद दूसरा, ठीक क्रमानुसार । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुमानिक ( वि० ) ( स्त्री० – की) [ अनुमान + ठक् ] 1. उपसंहार से सम्बन्ध रखने वाला 2. अनुमान प्राप्त, -कम् सांख्यों का 'प्रधान' - आनुमानिकमप्येकेषामिति वेन - ब्रह्म० । अनुयात्रिक: [अनुयात्रा + ठक्] अनुयायी, सेवक, अनुचर । आनुरक्तिः [ आ + अनु + र + क्तिन् ] राग, स्नेह, अनुराग । अनुलोमिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुलोम + ठक् ] 1. नियमित, क्रमबद्ध 2. अनुकूल । आनुलोम्यम् . [ अनुलोम + ष्यञ ] 1. नैसर्गिक या सीधा क्रम, उपयुक्त व्यवस्था -- आनुलोम्येन संभूता जात्या ज्ञेयास्त एव ते मनु० १०५, १३ 2. नियमित सिलसिला या परंपरा 3. अनुकूलता । आनुवेश्य: [ अनुवेश + ष्यञ ] वह पड़ोसी जिसका घर अपने घर से एक छोड़कर हो प्रातिवेश्यानुवेश्यौ चकल्याणे विशति द्विजे मनु० ८ ३९२ ( इस पर कुल्लूक कहता है : – निरन्तर गृहवासी प्रातिवेश्यः - तदनन्तरगृहवास्यानुवेश्यः ) यह शब्द 'अनुवेश्य' लिखा भी पाया जाता है । आनूप ( वि० ) ( स्त्री० पो ) [ अनूपदेशे भवः - अण् ] 1. जलीय, दलदलीय, आर्द्र 2. दलदल - भूमि उत्पन्न -पः दलदली भूमि में घूमने वाला पशु (जैसे भैंस) 1 आनृण्यम् [ अनृण + ष्यञ ] ऋणपरिशोध दायित्व निभाना, उऋणता, दे० अनृणता । आनृशंस-स्य ( वि० ) [ अनृशंस् | अण् ( स्वार्थे ) ष्यञ, वा ] मृदु, कृपालु, दयालु, सं, स्यम् 1. मृदुता 2. कृपा - मनु० १।१०१, ८।४११, ३. करुणा, दया, अनुकम्पा । आनंपुणम् - ण्यम् [ अनिपुण + अण्, ष्यञ् वा ] भद्दापन, जाड्य । आन्त ( वि० ) ( स्त्री० ती ) [ अन्त + अण् स्त्रियां ङीप् ] अन्तिम अन्त का, तम् ( अव्य० ) पूर्णरूप से, अन्त तक । आन्तर ( वि० ) [ आन्तर+अण्] 1 आंतरिक, गुप्त. छिपा हुआ - उत्तर० ६ १२, मा० १।२४, 2. अन्तस्तम, अन्तर्वर्ती, रम् अन्तस्तम स्वभाव । आन्तरि (री) क्ष (वि० ) ( स्त्री० -क्षी) [ अन्तरिक्ष + अण् -- स्त्रियां ङीप् ] 1. वायव्य, स्वर्गीय, दिव्य 2. वायु में उत्पन्न, क्षम् व्योम, पृथ्वी और आकाश के बीच का प्रदेश । की ) [ अन्तर्गण + ठक् ] सेना में ) । आन्तर्गणिक ( वि० ) ( स्त्री० सम्मिलित (जैसे श्रेणी में, आन्तर्गेहिक ( वि०) (स्त्री० की ) [ अन्तर्गह + ठक् ] घर में रहने वाला, या घर में उत्पन्न । आन्तिका [ अन्तिका + अणु +टाप् ] बड़ी बहन । आन्दोल (भ्वा० पर० ) [ दोलयति, दोलित ] 1. झूलना, इधर से उधर या उधर से इधर स्पन्दन 2. हिलाना, कंपकंपाना । आन्दोलः [ आ + दोल् + घञ ] 1. झूलना, झूला 2. हिलना डुलना । आन्दोलनम् [ आन्दोल + ल्युट् ] 1. झूलना 2. हिलना-डुलना, स्पंदन, कंपित होना; - कित्वासामरविन्द सुन्दरदृशां द्राक् चामरान्दोलनात् उद्भट० 3. कांपना । आन्धसः [ अन्धस् + अण् ] माँड । आन्धसिकः [ अन्धस् + ठक् ] रसोइया । आन्ध्यम् [ अन्ध + ष्यञ् ] अंधापन । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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