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HAH
अम्यवकर्षणम् [अभि-+अव+कृष --ल्युट् ] निकालना, । जाना, पहुँच, दर्शनार्थ गमन-तपोधनाभ्यागमसंभवा खींचकर बाहर करना।
मुदः-शि० १२३, कि वा मदभ्यागमकारणं ते-रघु० अभ्यवकाशः [ अभि+अव+का+घ ] खुली जगह ।। १६१८, महावी० २१२२, 2. सामीप्य, पड़ौस, 3. मुकाअम्यवस्कन्दः-वनम् [ अभिनअव+स्कद्+घञ, ल्युट् बला, हमला 4. युद्ध, संग्राम 5. शत्रुता, विद्वेष ।
वा ] 1. डट कर शत्रु का मुकाबला करना, शत्रु पर। अभ्यागमनम् [ अभि+आ+गम् + ल्युट् | उपागमन, पहुँच, चढ़ाई करना 2. शत्रु को निश्शस्त्र करने के लिए प्रहार | दर्शनार्थ गमन, हेतुं तदभ्यागमने परीप्सुः--कि० ३।४ । करना 3. आघात।
अभ्यागारिकः [अभि+आगार+ठन् ] परिवार के पालन अभ्यबहरणम् [ अभि+अव+ह+ल्युट ] 1. नीचे फेंक में यलशील ।
देना 2. भोजन ग्रहण करना, गले के नीचे उतारना अभ्याघातः [ अभि+आ+हन +घञ ] हमला, आक्रमण। (कण्ठादधोनयनम्-मिता०)।
अभ्यादानम् [ अभिनआ-+-दा+ ल्युट् ] उपक्रम, प्रारम्भ, अम्यवहारः [ अभि+अव+ह+घञ ] 1. भोजन ग्रहण सूत्रपात करना।
करना, आहार लेना, खाना पीना आदि 2. आहार | अभ्याधानम् [ अभि-+आ+घा+ल्युत् ] रखना, डालना - जम्भशब्दोऽभ्यवहारार्थवाची-काशी०, संवादापेक्षी (जैसा कि ईंधन)। ----मालवि०४।
अभ्यान्त (वि.)[ अभि +आ+ अम् + क्त ] बीमार रुग्ण, अभ्यवहार्य (वि०) [अभि+अव+ह+ ण्यत् ] खाने के
रोगी। योग्य, भोज्य,-र्यम् आहार,-सर्वत्रौदरिकस्य अभ्यव
अभ्यापातः [ अभि+आ+पत्+घञ ] संकट, दुर्भाग्य । हार्यमेव विषय:-विक्रम०३।
अभ्यामर्दः-मर्दनम् [ अभि-+आ+मृद्+घन, ल्युट् वा] अभ्यसनम् [ अभि+अस् + ल्युट् ] 1. बार-बार करना,
युद्ध, संग्राम, संघर्ष, आक्रमण । बार-बार किया गया अभ्यास 2. निरन्तर अध्ययन,
अभ्यारोहः-रोहणम् [ अभि+आ+रुह --घन, ल्युट् वा] अनुशीलन-(ताम) विद्याभ्यसनेनेव प्रसादयितुमर्हसि
चढ़ना, सवार होना, ऊपर तक जाना। रघु० ११८८।
अभ्यावृत्तिः (स्त्री०) [ अभि-+आ+वत-क्तिन् ] दोहअम्यसूयक (वि.) [स्त्री-यिका][ अभि+असु-|-वुल ]
राना, बार-बार होना, दे० 'अनभ्यावृत्ति' भी। ईष्याल, डाहभरा, निन्दक, कलंक लगाने वाला, -मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषतोऽभ्यसूयका:-भग० १६।१८।
अम्याश (वि.) [ अभि+अश+घञ 1 निकट, समीप
-श: 1. पहुँचना, व्याप्त होना 2. समीपस्थ पड़ौस,आस •अभ्यसूया [अभि+ असु+यक+अ+टाप् ] डाह, ईर्ष्या,
पास का (दे० 'अभ्यास'),-वायसाभ्याशे समपविष्टः द्वेष, क्रोध,-शकाभ्यसूयाविनिवृत्तये य:-रघु० ६७४,
-पंच. २, सहसाभ्यागतां भैमीमभ्याशपरिवर्तिनीमरूपेषु वेशेषु च साभ्यसूयाः-७।२, ९।६४।
महा०, दश० ६२, 3. परिणाम, फल 4. अभ्युदय, अभ्यस्त (भू० क० कृ०) [ अधि+ अस+क्त ] 1. बार
प्रत्याशंसा, अतः 'शीघ्रता' के अर्थ में प्रायः प्रयुक्त । बार दोहराया गया, बार बार अभ्यास किया गया,
अभ्यासः [ अभि+आ-+अस्+घञ ] आवृत्ति,--व्या-नयनयोरभ्यस्तमाभीलनम्--अमरु. ९२, प्रयोग में
ख्याता-व्याख्याता इति पदाभ्यासोऽध्यायपरिसमाप्ति लाया गया, आदत डालो हुई,--अनभ्यस्तरथचर्या -
द्योतयति-शारी०, नाभ्यासक्रममीक्षते-पंच १।१५१, उत्तर० ५, 2. सीखा हुआ, पढ़ा हुआ,-शैशवेऽभ्यस्त
2. बार-बार किसी कार्य को करना, लगातार किसी विद्यानां----रघु० १२८, भत०३३८९, 3. (गण) गुणा । कार्य में लगे रहना,-अविरतश्रमाभ्यासात्-का० ३०, किया गया 4. (व्या० में) द्वित्व किया गया।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते--भग०६।३५, अभ्याकर्षः [ अभि+आ+कृष+घञ हाथ से छाती ठोक ४४ अनवरत अभ्यास के द्वारा, (पवित्र और अविकृत
कर ललकारना (जैसे पहलवान कुश्ती के लिए)।। रहना) १२॥१२, निगृहीतेन मनसा-रघु० १०।२३, अभ्याकाअक्षितम् [ अभिं+आ+कार+क्त ] 1. मिथ्या इसी प्रकार शर, अस्त्र आदि 3. आदत, प्रथा, चलन, आरोप, निराधार शिकायत 2. इच्छा।
—अमङ्गलाभ्यासरतिम्-कु० ५।६५, या० ३।६८,4. अभ्याख्यानम् [ अभि+आ+ख्या-+ल्यूट ] मिथ्या आरोप, शस्त्रास्त्र विषयक अनुशासन, कवायद, सैनिक कवायद लाञ्छन, निन्दा, बदनामी ।
5. पाठ करना,अध्ययन करना,--काव्यज्ञ-शिक्षयाभ्यास: अभ्यागत (भू० क० कृ०) [अभि+आगम-+क्त ] 1. काध्य०१6. आसपास का, सामीप्य, पड़ोस ('अभ्याश'
निकट आया हुआ, पहुँचा हुआ 2. अतिथि के रूप में केलिए)-चूतयष्टिरिवाभ्यासे (शे) मधौ परभृतोन्मुखी आया हुआ,-सर्वत्राभ्यागतो गुरु:--हि० १११०८,-तः -कु०६।२, ('अभ्यासे-शे मधौ का यहाँ अर्थ 'मधु' अतिथि, दर्शक ।
को संबोधित करना है जो कि उसके निकट है-अर्थात् अभ्यागमः [अभि+आ+गम्+घ] 1.निकट आना या | अपने आपको पूर्ण रूप से उसके सामने प्रकट करके ।
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