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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७७ ) दोषः [ दुह, +अच्, नि० ] बछड़ा । दोरः [ = डोर, नि० डस्य दः ] रस्सी, रज्जु । दोलः [ दुल् + घञ्ञ ] 1. झूलना, डोलना, (घड़ी के लंगर की भांति इधर-उधर ) हिलना 2. हिंडोला, डोलो 3. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होने वाला उत्सव जब कि बालकृष्ण की मूर्तियों को हिंडोले में झुलाया जाता है । दोला, दोलिक ] दोल +टाप्, दोल + कन् + टाप् इत्वम् 1. डोली, पालकी 2. हिंडोला, पालना (ओल० भी ) - आसीत्स दोलाचलचित्तवृत्तिः रघु० १४।३४, ९।४६, १९।४४, संदेहदोलामारोप्यते - का० २०७, २४६ 3. झूलना, घट-बढ़ होना 4. संदेह अनिश्चितता । सम० -- अधिरूढ, - आरूढ (वि० ) ( शा० ) झूले पर सवार (आलं) अनिश्चित, अस्थिर, चंचल - युद्धम् सफलता की अनिश्चितता, वह युद्ध जिसमें हार-जीत का कुछ निश्चय न हो । दोलायते ( ना० वा० आ० ) 1. झूलना, इधर-उधर डोलना, इधर-उधर हिलना, घटबढ़ होना, आगे-पीछे होना ( आलं० भी ) 2. चंचल या बेचैन होना । दोष: [ दुष् + ] (क) त्रुटि, धब्बा, निन्दा, कमी. लांछन, लचर दलील - पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम्---भर्तृ० २३९३, नात्र कुलपतिर्दोषं ग्रहीव्यति-- श० ३, कुलपति इस बात को दोष नहीं मानेंगे - सा पुनरुक्तदोषा-रघु० १४१९ (ख) भूल (अशुद्धि, गलती 2. जुर्म, पाप, कसूर अपराध - जायामदोषामुत संत्यजामि - रघु० १४।३४, मनु० ८ २४५, याज्ञ० ३। ७९३. अनिष्टकारी गुण, बुराई. क्षतिकारक प्रकृति या गुण --- जैसा कि 'आहार दोष' में 4. हानि, अनिष्ट, भय क्षति- बहुदोषा हि शर्वरी - मृच्छ० ११५८, को दोष: - ( इसमें क्या हानि हैं) 5. बुरा फल, अनिष्टकारी फल, बाधक प्रभाव, तत्किमयमतिपदोषः स्यात् - श० ३, अदाता वंशदोषेण कर्मदोषाद् दरिद्रता - चाण० ४८, मनु० १०।१४6. विकृत व्याधि, रोग 7. शरीर के तीनों दोषों का कुपित होना, त्रिदोषको 8. ( न्या० में ) परिभाषा का दोष (अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव ) 9. (अलं० में ) रचना का एक दोष (पददोष, पदांशदोष, वाक्यदोष, रसदोष, और अर्थदोष जिनका वर्णन काव्यप्रकाश के सातवें उल्लास में किया गया है) 10. बछड़ा 11. निराकरण । सम० - आरोपः दोष लगाना, इलजाम लगाना, एकदृश् (वि०) दोष ढूंढने वाला, दोषदर्शी छिद्रान्वेषी, कर, -कृत् (वि०) बुराई करने वाला, अनिष्टकर, प्रस्त ( वि० ) 1. सिद्धदोष, अपराधी 2. दोषपूर्ण, त्रुटिपूर्ण, - प्राहिन ( वि० ) 1. विद्वेषी, दुर्भावनापूर्ण 2. छिद्रावेषी, ज्ञ (वि०) दोषों का ज्ञाता (ज्ञः ) 1. बुद्धिमान या विद्वान् पुरुष - रघु० १।९३ 2. वैद्य, - त्रयम् शरीर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के तीन दोष ( अर्थात् वात, पित्त और कफ ), दृष्टि (वि०) दोषदर्शी, प्रसङ्गः कलंक लगाना, वदनामी, निन्दा, -- भाज् (वि०) दोषी, अपराधी, सदोष । दोषणम् [ दुष् + णिच् + ल्युट् ] इलजाम लगाना, दोष मढ़ना । दोषन् (पुं०, नपुं० ) ( इस शब्द के सर्वनामस्थान ( पहले पाँच वचन, में रूप नहीं होते ) भुजा, बाजू । दोबल (वि०) [ दोष --लच ] दोषी, सदोष, भ्रष्ट । दोषस् (स्त्री०) [ दुप् +असुन् | रात ( नपुं० ) अंधरा । दोषा ( अव्य० ) | दुष्यते अन्धकारेण दुष् + ञ +टाप् ] रात को, दोषाऽपि नूनमहिमांशुरसी किलेति-शि० ४१४६. ६२, (स्त्री० ) 1. भुजा 2 रात्रि का अंधेरा, रात - धर्मकालदिवस इव क्षपितदोष: का० ३७, ( यहाँ शब्द का अर्थ 'दोष या पाप' भो है) । सम० - आस्य:, - तिलकः दीपक, लैम्प, - करः चाँद । दोषातन ( वि० ) ( स्त्री० नी ) [ दोषा + टचु, तुट् ] रात को होने वाला, रात्रि विषयक - रघु० १३ ७६ । दोषिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ दोष + ठन् ] दोषी, बुरा, सदोष, कः रुग्णता, रोग । दोषिन् ( वि० ) ( स्त्री० - णी ) [ दुष् + णिनि ] 1. अपवित्र, दूषित, कलुषित 2. अपराधी, सदोष, मुजरिम, दुष्ट, बुरा। दोस् (पुं०, नपु ं० ) [ दम्यते अनेन दम् + डोसि ] ( कर्म० द्वि० ० के पश्चात् इस शब्द को विकल्प से 'दोषन्' आदेश हो जाता है) 1. अग्रभुजा, भुजा - तमुपाद्रवदुद्यम्य दक्षिणं दोर्निशाचरः -- रघु० १५ २३, हेमपात्रगतं दोभ्यमादधानं पयश्चरु - १०१५१, कु० ३।७६ 2. चाप का वह भाग जो त्रिज्या का निर्माण करता ह | सम० - गडु ( वि० ) ( दोर्गड ) टेढ़ी भुजाओं वाला, - - ग्रह ( दोर्ग्रह) (वि०) सबल, शक्तिशाली, (हः ) भुजा में रहने वाली पीड़ा, ज्या ( दोर्ज्या ) आधार की लंबरेखा, दण्ड: (दोर्दण्डः ) डंडे जैसी भुजा, मजबूत भुजा - महावी० ७८, भामि० १।१२८, - मूलम् (दोर्मूलम् ) काख, बगल, – युद्धम् (दोयुद्धम् ) द्वन्द्वयुद्ध, कुस्ती - महावो० ५१३७, शालिन् (वि०) (दो.शालिन् ) प्रबल भुजाओं वाला, रणोत्सुक, वोर, वेणी० ३।३२, शिखरम् (दोः शिखरम् ) कंधा - सहस्त्रभूत ( दो: सहस्रभृत्) (पुं) 1. बाणासुर का विशेषण 2. सहस्रार्जुन का विशेषण, स्थः ( दोस्थ : ) 1. सेवक 2. सेवा 3. खिलाड़ी 4. खेल, क्रीडा | दोहः [ दुह +घञ ] 1. दोहना - आश्चर्यो गवां दोहो गोपेन सिद्धा०, कु० ११२, रघु० २।२२, १७/१९ 2. दूव 3. दूध की बाल्टी । सम० - अपनयः, -जम् दूध । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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