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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1340 ) विश्रब्धसुप्त (वि.) शान्ति पूर्वक सोने वाला। --कान्ता विभिन्न पौधों के नाम,-बत्तः परीक्षित विधिः [ विश् + क्रिन् ] मृत्य / राजा का नाम,-धर्मोत्तरपुराणम् एक उपपुराण का विश्वगोचर (वि.) सबके लिए सुगम, जहाँ सबकी नाम, .. प्रिया 1. तुलसी का पौधा 2. लक्ष्मी का नाम पहंच हो। -लिङ्गी बटेर। विश्वजीवः विश्वात्मा, ईश्वर। विष्वग्गति (वि.) [विष्वच-+गति ] सर्वत्र जाने वाला विश्वाधारः विश्व का सहारा, ईश्वर। प्रत्येक विषय में प्रविष्ट होने वाला। विश्वेदेवाः पितरों की एक श्रेणी, देववर्ग / विष्वग्लोपः [विष्वच्+लोपः ] घबराहट, बाधा, विघ्न / विकृमि: अंतड़ियों में पड़ने वाला कीड़ा। विसदृश (बि०) असमान, असमरूप / विधात: मूत्रकृच्छ्रता, मूत्रावरोध / विसंम्मूक (वि०) नितांत घबराया हुआ। विभङ्गः अतीसार, दस्तों का लगना / विसा कमल नाल (=बिसा) विभुज (वि०) मल खाकर रहने वाला, गुबरैला / विसन् (तुदा० पर०) (आ० भी) (प्रेर०) प्रकट करना, विषज्वरः मैसा। भेद खोलना, (समाचार) प्रकाशित करना। विषतन्त्रम् विषविज्ञान, (सर्पादि विषले जन्तुओं का विष | विसृज्यम् [ विसृज् + यत् ] जो मुक्त किये जाने के योग्य दूर करने की प्रक्रिया। है, सृष्टि, संसार का रचना-कालो वशीकृत-विसज्य विषक्त (वि.) [वि+ष +क्त ] 1. व्यस्त, चिपका विसर्गशक्तिः भाग०७।९।२२ / हुआ 2. अतिविस्तारित / विसर्ग: [विसृज्+घञ्] विनाश, सृष्टि का लोप / विषावनम् [वि+ष+णिच +ल्यट] कष्ट , विसप (भ्वा० पर०) फैलाना. प्रसारित करना। सताना। विसपिन् [ विसप्+णिनि ] 1. रेंगने वाला 2. फूट कर विषम (वि०) [प्रा० ब०] 1. जो पूरा न बँट सके 2. अनु- निकलने वाला 3. सरकने वाला 4. फैलने वाला पयुक्त / सम०-बाणः कामदेव,-नेत्रम् शिव की / (वेल की भाँति)। तीसरी आँख,-नेत्र: शिव का एक विशेषण,-वृत्तम् | विस्पन्दः [विस्पन्द् / घा) बूंद, कण / छंद जिसके चरण सम न हों। विस्फूर्जः [ बिस्फूर्ज +घा ] दहाड़ना चिंघाड़ना, गरविषय: [ वि+सि+अच, षत्वम् ] 1. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जना। गृहीत होने वाला पदार्थ 2. भौतिक पदार्थ 3. इन्द्रिय- विस्फोटकः [ विस्फुट +ण्वुल ] 1. फोड़ा, फँसी 2. एक जन्य आनन्द / सम-निति: किसी बात को प्रकार का कोढ़। मुकर जाना,-पराकमुखः भौतिक विषय सुखों से | विस्मयपदम् आश्चर्य का विषय / विमख। वित्रगन्धः कच्चे मांस की गन्ध / विषयीकरणम् [विषय-+च्चि-++ल्युट्] किसी वस्तु को विहृति (स्त्री०) [वि+हन्+क्तिन् / प्रतिघात, अपचिन्तन का विषय बनाना / सारण, विफलता, भग्नाशा, ... मनोभिः सोद्वेगैः प्रणयविषय (वि०) [वि-+ सह+यत् ] जीतने के योग्य / / --विहतिध्वस्तरुचयः कि० 1063 / / विषाणः [ विष्+कानच् ] 1. चोटी 2. चूची 3. अपनी विहाय (अ०) [वि+हा+ल्यप् ] 1..."से अधिक, के प्रकार का उत्तमोत्तम / i अतिरिक्त 2. होते हुए भी 3. सिवाय, छोड़ कर / विषुवसमयः वह समय जब दिन रात का मान बराबर विहित प्रतिषद्ध (वि.) जिसका विधान और निषेध दोनों होता है। किये गये हों। विष्टम्भ (स्वा० ऋचा. पर०) 1. समर्थन करना, प्रबल | विहरणम् [वि+ह-ल्युट ] खोलना, फैलाना। बनाना 2. व्याप्त होना, छा जाना / विहारः [वि++घञ ] (मीमांसा) अग्नित्रय, विष्टिकरः दासों का स्वामी, बेगार में पकड़े मजदूरों का (गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण)। स्वामी। विहारभूमिः गोचरभूमि, चरागाह / विष्टिकारिन बेगार में पकड़ा गया मजदूर जिसे कोई विह्वलचेतस् (वि.) [ब० स०] उदास, खिन्नमना जिसका पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है। / मन बहुत व्याकुल हो / विष्ठाशिन [ विष्ठा+आशिन् ] सूअर, जो मल खाता है। वीचिक्षोभ लहरों का उठना, तरंगों से उत्पन्न हलचल / विष्णुः [विष् +नुक ] 1. त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और वीणापाणिः नारदमुनि। महेश) में दूसरा 2. अग्नि 3. पावन पुरुष 4. स्मृति- वोतमत्सर (वि०) ईर्ष्या द्वेषादि से मुक्त / कार 5. एक वसु 6. श्रवण नक्षत्रपुंज (इसका अधि-वीरकाम (वि०) पुर्वषी, पुत्र का इच्छुक / ष्ठात्री देवता विष्णु है) 7. चैत्र का महीना। सम० / वीरपत्नी [ष० त०] शूरवीर की पत्नी, नायिका। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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