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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेना, पुकारना त एव सागरिकेति शब्द्यते रत्न० / ही अदृश्य निशाना लगाने वाला, शब्दवेधी, निशाना 4, अभि-, नाम रखना,प्र , व्याख्या करना, सम् , लगाने वाला-रधु० 9 / 73, प्रमाणम् शाब्दिक या बुलाना। मौखिक प्रमाण, बोधः मौखिक साक्ष्य से प्राप्त ज्ञान शब्दः [ शब्द घश ] 1. ध्वनि (श्रोत्रेन्द्रिय का विषय, . ब्रह्मन (नपं०) 1. वेद 2. शब्दों में निहित आ आकाशगुण, --- रघु० 13 / 1 2. आवाज, कलरव ध्यात्मिक ज्ञान, आत्मा-या परमात्मसम्बन्धी ज्ञान (पक्षियों का या मनुष्यादिकों का), कोलाहल, --वि- --- उत्तर० 217 20 3. शब्द का गुण, 'स्फोट', श्वासोपगमादभिन्नगतयः शब्दं सहन्ते मगाः श० . भैदिन् (वि०) शब्दवेधी निशान लगाने वाला 1214, भग० 1313, श० 3 / 1, मनु० 4 / 113, कु० (पुं०) 1: अर्जुन का विशेषण 2. गुदा 3. एक प्रकार 1145, 3. बाजे की आवाज़ -बाद्यशब्दः पंच. का बाण, योनिः (स्त्री०) धातु, मूल शब्द,--विद्या, 2 / 24, कु० 1145 4. वचन, ध्वनि, सार्थक ध्वनि, - शासनम्, शास्त्रम् शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण शब्द(परिभाषा के लिए दे० महाभाष्य की प्रस्तावमा) -अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रम्-पंच० 1, शि०२।११२, --- एकः शब्दः सम्यगधीतः सम्यक् प्रयुक्तः स्वर्गे लोके 14 / 24, विरोधः (शास्त्र में) शब्दों का विरोध, कामघग्भवति, इसी प्रकार 'शब्दार्थों' 5. विकारीशब्द, -- विशेषः ध्वनि का एक भेद,-- वत्तिः (स्त्री०) संज्ञा, प्रातिपदिक 6. उपाधि, विशेषण—यस्यार्थयुक्तं साहित्य शास्त्र में शब्द का प्रयोग, वेधिन (वि०) गिरिराजशब्दं कुर्वन्ति बालव्यजनश्चमर्य:-कु० 113, ध्वनि सुनकर ही शब्दवेधी निशाना लगाने वाला श० 2 / 14, नृपेण चक्रे युवराजशब्दभाक् रघु० दे० 'शब्दपातिन्' (पुं०) 1. अर्जुन का विशेषण 3 / 35, 2 / 53, 64, 3 / 49, 5 / 22, 18641, विक्रम 2. एक प्रकार का बाण, -शक्तिः (स्त्री०) शब्द की 11 7. नाम, केवल नाम जैसा कि 'शब्दपति' में अभिव्यञ्जक शक्ति, शब्द की सार्थकता-दे० शक्ति, 8. शाब्दिक प्रामाणिकता (नैयायिकों के द्वारा 'शब्द -- शुद्धिः (स्त्री०) 1. शब्दों की पवित्रता 2. शब्दों प्रमाण' माना जाता है)। सम० अतीत (वि०) का शुद्ध प्रयोग,-श्लेषः शब्दों में अनेकार्थता, द्वयर्थकता शब्दों की शक्ति से परे, अमिर्वचनीय, - अधिष्ठानम (यह अलङ्कार 'अर्थश्लेष' से इसलिए भिन्न है कि कान, .. अध्याहारः (शब्दन्यूनता को पूरा करने के इसके संघटक शब्दों को हटाकर समानार्थक शब्दों लिए) शब्दपूर्ति,-अनुशासनम् शब्दों का शास्त्र अर्थात् को रख देने मात्र से श्लिष्टता नष्ट हो जाती है, व्याकरण, * अर्यः शब्द के अर्थ (था-द्वि०व०) शब्द जबकि 'अर्थश्लेष' अपरिवर्तित ही रहता है - शब्दऔर उसका अर्थ अदोषी शब्दार्थों-काव्य० 1, परिवृत्ति सहत्वमर्थश्लेषः),-संग्रहः शब्दकोश, शब्दावली, —अलङ्कारः वह अलङ्कार जो अपने शब्द सौन्दर्य - सौष्ठवम् शब्दों का लालित्य, ललित और प्राञ्जल पर निर्भर करता है, तथा जब उसी अर्थ को प्रकट शैली सौकर्यम् अभिव्यक्ति की सरलता। करने वाला दूसरा शब्द रख दिया जाता है तो उसका शब्दन (वि०) शब्द+ ल्युट्] 1.शब्द करनेवाला, ध्वननशील सौन्दर्य लुप्त हो जाता है (विप० अर्थालङ्कार) उदा० ... नम् ध्वनन, कोलाहल करना, शब्द करना 2. दे० काव्य० 9, आख्यय (वि०) शब्दों में भेजा आवाज, कोलाहल 3. पुकारना, बुलाना 4. नाम जाने वाला समाचार - मेघ०.१०३ (यम्) मौखिक लेना। या शाब्दिक सन्देश, .. आडम्बरः वाग्जाल, वाक्प्रपंच, | शब्दायते (नामधात् आ०) 1 कोलाहल करना, शोर शब्दाधिक्य, अतिशयोक्तिपूर्ण शब्द, आदि (बि०) करना -- शब्दायन्ते मधुरमनिल: कीचकाः पूर्यमाणाः 'शब्द' से आरम्भ होने वाले (ज्ञान के विषय) - रघ० -- मेघ० 56 2. क्रन्दन करना, दहाड़ना, चिल्लाना, 10125, कोशः अभिधान, शब्दसंग्रह, गत (वि०) ची ची करना भट्टि० 5 / 52, 17 / 91 3. बुलाना, शब्द के अन्दर रहने वाला, प्रहः 1. शब्द पकड़ना पुकारना.. एते हस्तिनापुरगामिन ऋषयः शम्दायन्ते 2. कान, चातुर्यम् शैली की निपुणता, वाकपटुता, ---श० 4, मुद्रा० 1, मच्छ० 1, वेणी० 3 / ...चित्रम् कविता की अन्तिम श्रेणी के दो उपभेदों शब्दित (भू० क० कृ०) [शब्द+क्त] 1. ध्वनित, आवाज में से एक (अवर या अधम) (इस प्रकार के काव्य निकाली गई, (वाद्ययंत्रादिक) बजाया गया 2. कहा में सौन्दर्य उन शब्दों के प्रयोग में है जो कर्णमधर गया, उच्चारण किया गया 3.बुलाया गया, पुकारा होते हैं, 'चित्र' के अन्तर्गत दिया हुवा उदाहरण गया नाम रक्खा गया, अभिहित / देखो), चोरः 'शब्दचोर' साहित्यचोर, तन्मात्रम् | शम् (अन्य०) [शम्+क्विप्] कल्याण, आनन्द. समृद्धि, ध्वनि का सूक्ष्म तत्व, --पतिः नाममात्र स्वामी, नाम स्वास्थ्य को द्योतन करने वाला अव्यय, आशीर्वाद का प्रभु-नन शब्दपतिः क्षितेरहं त्वयि मे भावनिबन्धना या मंगल कामना प्रकट करने के लिए प्रयुक्त (संप्र. रति:-रघु० 8152, पातिन् (वि०) शब्द सुन कर या संबं० के साथ) शं देवदत्ताय देवदत्तस्य वा, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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