________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साडी (011. एक देश का नाम (आधनिक विकट (वि.) विकटच। 1. विकराल.करूप 2. (क) बलख) 2. बरूख देश का घोड़ा, बलख देश में पला दुर्धर्ष, भयानक, भीषण डरावना--पथललाटतटघटित घोड़ा,-कम 1. जाफरान, केसर 2. हींग। विकट भ्रकुटिनां वेणी०१, विधुमिव विकटविद्युतुदवि (अव्य०) [वा+इण्, स च डित् ] 1. धातु और दंतदलनगलितामृतधारम्-गीत. 4. (ख) दारुण, संज्ञा शब्दों के पूर्व जुड़ कर इसका निम्नांकित अर्थ खूखार, बर्बर 3. वड़ा, विस्तृत, विशाल, प्रशस्त, होता है:--(क) पृथक्करण, वियोजन (एक ओर, व्यापक जृम्भाविडम्विविकटोदरमस्तु चापम्-उत्तर० अलग-अलग, दूर, परे आदि) यथा वियुज, विह, 4 / 29, आवरिष्ट विकटेन विवोदुर्वक्षसैव कुचमण्डलविचल आदि (ख) किसी कर्म का उलट, यथा की मन्या-शि० 10 // 42, 13 / 10, मा० 7 4. घमंडी, खरीदना, विक्री बेचना, स्म याद करना विस्मृ भूल अभिमानी विकट परिकामति उत्तर०६, महावीर० जाना (ग) प्रभाग यथा विभज, विभाग (घ) विशि- 6 / 32 5. सुन्दर मच्छ० 2 6. त्योरी चढ़ाये हुए, ष्टता-यथा विशिष् विशेष; विवि, विवेक 7. गूढ 8. शक्ल बले हुए,---टम् फोड़ा, अर्बुद या (अ) विभेदीकरण-- व्यवच्छेदः (च) क्रम, व्यवस्था रसौली। यथा विधा, विरच (छ) विरोध यथा विरुध्, विरोध; विकथन (वि+कत्थ् ल्युट] 1. शेखी वधारने वाला, अभाव यथा विनी, विनयन (ज) विचार, यथा डींग मारने वाला, आत्मश्लाघा करने वाला, अपनी विचर, विचार (झ) तीब्रता-विध्वंस 2. संज्ञा या प्रशंसा करने वाला विद्वांसोऽप्यविकत्थना भवंति विशेषण शब्दों में (जो कि क्रिया से सटे हुए न हों) मुद्रा० 3, रघु० 14173 2. व्यंग्योक्ति पूर्वक प्रशंसा जड़कर वि निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है करने वाला,-नम् 1. दर्पोक्ति, धौंस जमाना 2. व्याजो(क) निषेध या अभाव (ऐसी अवस्था में इसका क्ति, मिथ्या प्रशंसा। प्रयोग आधकतर उसा प्रकार हाता ह जस कि 'अ विकत्था [वि+कत्थ +अ+टाप| शेखी बघारना, डींग, या 'निर' का, अर्थात् इसके लगने पर बहुव्रीहि समास आत्मश्लाघा, दर्पोक्ति 2. प्रशंसा . मिथ्या प्रशंसा, बनता है-विधवा, व्यसुः आदि (ख) तीब्रता, व्यंग्योक्ति। महत्ता-यथा विकराल (ग) वैविध्य यथा विचित्र | विकम्प (वि.) [विशेषेण कम्पो यस्य-प्रा० ब०] 1. दीर्घ (घ) अन्तर-यथा विलक्षण (क) बहुविधता-यथा निःश्वास लेने वाला 2. अस्थिर, चंचल। विविध (च) वपरीत्य, विरोध-यथा विलोम | विकरः [विकीर्यते हस्तपादादिकमनेन-वि+-+अप] (छ) परिवर्तन-यथा विकार (ज) अनौचित्य बीमारी, रोग। न्यथा विजन्मन् / विकरणः [वि+कृ+ल्यूट] क्रियारूपरचनापरक निविष्ट विः (पुं० स्त्री०) [ वा+इण्, स च डित् ] 1. पक्षी जोड़ (अनुषंगी), क्रिया के रूपों की रचना के समय ____2. घोड़ा। धातु और लकार के प्रत्ययों के बीच में रक्खा जाने विश (वि.) (स्त्री०-शी) [ विंशति+डट्, तेः लोपः ] | वाला गणद्योतक चिह्न। बीसा,-शः बीसवाँ भाग / विकराल (वि०) [विशेषेण कराल: प्रा० स०] अत्यंत विशक (वि.) (स्त्री०-को) [विंशति+ण्वुन्, तिलोपः ] | डरावना या भयानक, भयपूर्ण / बीस। विकर्णः [विशिष्टौ कौँ यस्य प्रा० ब०] एक कुरुवंशी विशतिः (स्त्री०) [ द्वे दश परिमाणमस्य नि० सिद्धिः ] राजकुमार का नाम - भग० 138 / बीस, एक कोड़ी। सम० ईशः, ईशिन् (पुं०) विकर्तनः विशेषण कर्तनं यस्य प्रा० ब०] 1. सूर्य--उत्तर० बीस गांवों का शासक / 5 2. मदार का पौधा 3. वह पुत्र जिसने अपने पिता विकम् [विगतं के जलं सुखं वा यत्र ] ताजी व्यायी का राज्य छीन लिया हो। गाय का दूध। विकर्मन् (वि) [विरुद्धं कर्म यस्य प्रा० ब०] अनुचित विकष्टकः,-तः [वि+कंक+अटन्, अतच् वा ] एक रीति से कार्य करने वाला, नपं अवैध या प्रतिनिषिद्ध वृक्ष विशेष (जिसकी लकड़ी से श्रुवा बनते हैं) कार्य, पापकर्म-भग० 4 / 17, मनु० 9 / 226 / सम० -रघु० 11125 / -फिया अवैध कार्य, अधार्मिक आचरण, स्थ विकच (वि०) [विकक्+अच्] 1. खिला हुआ, फूला (वि.) प्रतिषिद्ध कार्यों को करने वाला, दुर्व्यसनों हुआ, खुला हुआ, (जैसा कि कमल आदि)-विकचकि- में प्रस्त। शुकसंहतिरुच्चकैः-शि 6 / 21, रघु० 9:37 2. फैलाया विकर्षः [वि+कृष+घन] 1. अलग-अलग रेखांकन हुआ, बखेरा हुआ-भामि० 113 3. बालों से शून्य, करना, स्वतंत्र रूप से खींचना 2. तीर, बाण / -च: 1. बौद्धसाधु 2. केतु / विकर्षणः [वि+कृष+ल्युट] कामदेव के पांच बाणों में For Private and Personal Use Only