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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार 4. ब्राह्मण की पत्नी 5. पार्वती 6. कश्यप की। __सावित्री ने यमराज से ऐसे करुण स्वर में प्रार्थना की पत्नी 7. शाल्वदेश के राजा सत्यवान् की पत्नी कि यमराज ने उसे सत्यवान के प्राणों को छोड़ कर (सावित्री राजा अश्वपति को एकमात्र सन्तान थी। और कोई वर मांगने के लिए कहा। सावित्री की वह इतनी सुन्दर थी कि वे सब वर जो उसे पाने की अनन्य भक्ति एवं पातिव्रत धर्म पर मुग्ध होकर अन्त इच्छा से वहाँ आय उसकी अभिराम कान्ति से इतने में यमराज ने सत्यवान के प्राण भी लौटा दिये। वह चकित हए कि वापिस ही लौट गये। विवाह योग्य प्रसन्न होकर वापिस आई और देखा कि सत्यवान मानों अवस्था होने पर सावित्री को वर न मिल सका। गहरी निद्रा से जाग गया है। उसने सत्यवान को अन्त में उसके पिता ने उसे कहा कि अब तुम स्वयं सारी घटना बता दी। तथा वे दोनों आश्रम में जाओ और अपनी इच्छा के अनुसार वर ढंढो। सावित्री वापिस आ गये। शीघ्र ही उसके श्वसुर धुमत्सेन ने वैसा ही किया, और वर चुन कर वह पिता के ने यमराज के द्वारा दिये गये वरों का फल पाया। पास वापिस आई और कहने लगी कि मैने शाल्व सावित्री पातिव्रत धर्म का उच्चतम आदर्श मानी देश के राजा धमत्सेन के पुत्र सत्यवान को चुन लिया जाती है। बड़ी बढ़ी स्त्रियां आज भी विवाहित है। राजा धुमत्रोन उन दिनों अपने राज्य से निकाल तरुणी को आशीर्वाद (जन्मसावित्री भव) देती हैं दिये गये थे-वे अपनी सहमिणी समेत अब वानप्रस्थ तथा उसके सामने सावित्री का आदर्श पूरा करने के जीवन बिता रहे थे। नारद मुनि भी घूमते हुए लिए उसका उदाहरण रखती है) / सम० पतित,उस समय आ गये थे, जब उन्होंने सुना तो राजा / परिभ्रष्ट पहले तीनों वर्गों में से किसी एक वर्ण का अश्वपति तथा सावित्री को कहा कि मझे तुम्हारे / पुरुष जिसका समय पर यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ चुनाव पर खेद है, क्योंकि यद्यपि सत्यवान सब प्रकार हो, तु० ब्रात्य व्रतम् ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष के से तुम्हारे योग्य है परन्तु उसकी आय अब केवल एक अन्तिम तीन दिनों का व्रत जिसे आर्य ललनाएँ विशेष वर्ष और बाकी है, अत: उसको चनना जीवन भर रूप से वैधव्य से बचने के लिए रखती हैं। के लिए वैधव्य तथा कष्ट का भार लेता है। उसके साविष्कार (वि०) [सह आविष्कारेण-ब० स०] मातापिता ने उसके मन को बदलने का घोर प्रयत्न | 1. घमंडी, अहंकार 2. प्रकट / किया परन्तु उस उच्चात्मा सावित्री ने कहा कि मेरा | साशंस (वि.) [सह आशंसया ब० स०] कामना और निश्चय अब नहीं बदल सकता। तदनुसार समय उत्कण्ठा से पूर्ण, इच्छुक, आशावान्, प्रत्याशी,-सम् पर उसका विवाह सत्यवान से हो गया। विवाह के (अव्य०) कामना पूर्वक, आशा से। पश्चात् सावित्री ने अपना सब राजसी ठाठबाट, बहु- साशड (वि०) [ सह आशङ्कया. ब० स० ] डर अनुभव मुल्य आभूषण तथा वस्त्रादिक उतार दिये और अपने करने वाला, आशंका करने वाला, डरा हुआ, चकित / बढ़े सास-ससुर की सेवा करने लगी। यद्यपि बाहर | साशयन्दकः (40) एक छोटी छिपकली। से उसकी मुख-मुद्रा से कुछ प्रकट न होता था, वह | साशकः (पं०) गलकंबल, सास्ना। प्रसन्न ही रहती थी। परन्तु वह नारद के वचन | साश्चर्य (वि.) [सह आश्चर्येण ब० स०] 1. आश्चर्य अभी तक नहीं भूलो थी। उसे दिन बीतते देर न जनक, विलक्षण 2. आश्चर्यचकित,-यम् (अव्य०) लगी। और अन्त में वह दुर्भाग्यपूर्ण दिवस जिस आश्चर्य के साथ, अद्भुत प्रकार से / / दिन सत्यवान् का प्राणान्त होना था निकट आ साश्र (स्त्र) (वि.) [सह अश्रेण-] 1. कोन या किनारों से गया। उसने मन में सोचा कि अभी तीन दिन और / युक्त, कोणदार 2. आँसू से भरा हुआ, रोता हुआ। बाकी है, इन तीनों दिन में कठोर व्रत साधन करूंगी। साधुधी [साथ ध्यायति - साश्रु+ध्य-क्विप्, संप्रसारण ] उसने व्रत किया और चौथे दिन जब सत्यवान् यज्ञ सास, पति या पत्नी की माता। को समिधाएँ लेने के लिए जंगल जाने को तैयार हुआ | साष्टाङ्गम् (अव्य०) [सह अष्टाङ्गः ब० स० ] लंबा तो सावित्री भी उसके साथ साथ गई। कुछ समिधाएँ दण्डवत् लेट कर (शरीर के आठ अंगों से पृथ्वी को एकत्र करने के पश्चात् सत्यवान थक कर बैठ गया / छकर दे० 'अष्टन्' के अन्तर्गत 'अष्टांग प्रमाण') और अपना सिर सावित्री की छाती पर रख कर सो सास (वि.) [सह आसेन ] धनुर्धारी-कि० 15 / 5 / गया। उसी समय यमराज आया और सत्यवान् को | सासुसू (वि.) बाण धारण करने वाला-कि० 15 / 5 / आत्मा को लेकर दक्षिण की ओर चल दिया। सासूय (वि.) सह असूयया ] डाह करने वाला, ईर्ष्याल, सावित्री ने यह सब देखा और यमराज का पीछा | तिरस्कारपूर्ण,-यम् (अव्य०) डाह के साथ, रोषपूर्वक किया। यमराज ने सावित्री को बताया कि सत्यवान् / तिरस्कार के साथ-२०२।२। की आयु समाप्त हो चुकी है। परन्तु पतिव्रता / सास्ना [ सस+म, णित् वृद्धि] गाय या बैल का गल दर्भाग्यपूर्ण दिवस जिस विकसिह अश्रेण- आ। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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