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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवेशकः / प्र+विश्+ण्वुल ] परिचायक, निम्नपात्रों | प्रवाज् (पुं०), प्रव्राजकः [प्रव्रज्---क्विप्, ण्वुल वा] (नौकर चाकर) द्वारा अभिनीत विष्कंभक (इसमें साधु, संन्यासी। श्रोता को रंगमंच पर अप्रस्तुत घटना का आगे होने प्रवाजनम् [प्र-ब्रज-+-णिच+ल्यूट ] निर्वासन, देशवाली बातों की जानकारी के लिए ज्ञान कराना निकाला, निर्वासित करना। आवश्यक है); (विष्कंभक की भांति यह नाटक की प्रशंसनम् [प्र+शंस+ल्यूट ] प्रशंसा करना, स्तुति करना। कथा तथा कथावस्तु के अवान्तर भेदों को जो या तो प्रशंसा [प्र-+-शंस्+अ+टाप् | प्रशंसा, स्तुति, प्रशस्ति, अंकों के अन्तराल में घटित हो चुके हैं या अन्त में गुणगान करना-प्रशंसावचनम्, प्रशंसात्मक या सम्मानहोने वाले हैं, जोड़ देता है / यह पहले अंक के आरम्भ सुचक वाणी 2. वर्णन, उल्लेख-जैसा कि 'अप्रस्तुतया अंतिम अंक के अन्त में कभी प्रयुक्त नहीं होता) प्रशंसा' में 3. कीति ख्याति, प्रसिद्धि / सम०-- उपमा साहित्यदर्पणकार इसकी परिभाषा देते है-प्रवेशकोन- दण्डिद्वारा वणित उपमा के अनेक भेदों में से एक दात्तोक्त्या नीचपात्रप्रयोजितः, अंकद्वयांतविज्ञयः शेषं ---ब्रह्मणोऽप्युद्भवः पद्मश्चन्द्रः शंभुशिरोधृतः, तो तुल्यो विष्कंभके यथा—३०८, दे० 'विष्कभक' / त्वन्मखेनेति सा प्रशंसोपमोच्यते काव्या० 2 / 31, प्रवेशनम् [प्र+विण्+ ल्युट ] 1. दाखिल होना, घुसना, ---मुखर (वि०) ऊँचे स्वर से प्रशंसा करने वाला। अन्दर जाना 2. परिचय देना, नेतृत्व करना, संचालन प्रशंसित (भू० क० कृ०) [प्र+शंस्+क्त ] प्रशंसा 3. घर का मुख्य द्वार, फाटक 4. मैथुन, स्त्री संगम / किया गया, स्तुति किया गया, गुणगान किया गया, प्रवेशित (भ० क. कृ०) [प्र+विश्-+-णिच्-- क्त ] तारीफ़ किया गया। परिचित कराया हुआ, अन्दर पहुँचाया हुआ, अन्दर प्रशस्वन् (पु०) [प्रशद्+क्वनिप्, तुटू] समुद्र, सागर / ले जाया गया, घुसाया हुआ। प्रशत्त्वरी [ प्रशत्त्व +-डीप, र आदेशः ] नदी। प्रवेष्टः [प्रवेष्ट +अच् ] 1. भुजा 2. कलाई, पहुँचा प्रशमः [प्र+शम् + धन ] 1. शमन, शान्ति, स्वस्थ 3. हाथी की पीठ का मांसल भाग (जहां महावत चित्तता--प्रशमस्थितपूर्वपार्थिवम् ----- रघु० 8 / 15, बैठता है) 4. हाथी के नसूड़े 5. हाथी की झूल। कि० 232 2. शान्ति, विश्राम 3. बुझाना, उपशमन प्रव्यक्त (भू. क. कृ.) [प्रकर्षण व्यक्तः-प्री० स०] --कु० 220 4. विराम, अन्त, विनाश ---शि० स्पष्ट, साफ, प्रकट, जाहिर। 2073 5. सान्त्वना, तुष्टीकरण-शि० 16.51 / प्रव्यक्तिः (स्त्री०) [प्र+वि+अं+क्तिन् ] प्रकटी | प्रशमन (वि०) (स्त्री०-नी) [प्रम् +-णिच् + ल्युट् ] भवन, दर्शन। शान्त करने वाला, शान्तिस्थापित करने वाला धीरज प्रव्याहारः [प्र+वि+आ+ह+घञ्] प्रवचन का बंधाने वाला, दूर करने वाला (रोग आदि को), नम् फैलाव या विस्तार / शान्त करना, शान्ति स्थापित करना, धीरज बंधाना प्रवजनम् [प्र+व+ल्युट ] 1. विदेश जाना, अस्थायी 2. दमन करना, धैर्यबंधाना, दिलासा देना, हलका रूप से बसना 2. निर्वासित होना 3. वानप्रस्थ हो करना-आपन्नातिप्रशमनफलाः संपदो युत्तमानाम् जाना। --मेघ० 53 3. चिकित्सा करना, स्वस्थ करनाप्रबजित (भू० क० कृ०) [प्र+व+क्त ] 1. विदेश जैसा कि 'व्याधिप्रशमनम्' में 4. (प्यास) बुझाना, गया हआ या निर्वासित 2. संन्यासी या परिब्राजक (आग) बुझाना, दमन करना, मिटा देना 5. विराम, बना हुआ,-तः 1. साधु, संन्यासी 3. चौथे आश्रम में थामना 6. उपयुक्त रूप से प्रदान करना, सत्पात्र स्थित ब्राह्मण, भिक्षु 3. जैन या वौद्ध भिक्षु का शिष्य, को प्रदान करना-मन० 756, (सत्पाने प्रति-तम् संन्यासी बन जाना, साधु का जीवन / पादनम्-कुल्ल०, परन्तु अन्य विद्वान् इसका अगला प्रव्रज्या [प्र+व+क्यप् +-टाप् ] 1, विदेश जाना, अर्थ समझते हैं) 7. प्राप्त करना, रक्षा करना, देशान्तरगमन 2. पर्यटन, (साध के रूप में इतस्ततः) सुरक्षित रखना-लब्धप्रशमनस्वस्थमथैनं समुपस्थिता भ्रमण 3. संन्यास आश्रम, संन्यासी का जीवन, रघु० 4 / 14 8. वध, हत्या / ब्राह्मण की जीवनचर्या में चौथा आश्रम (भिक्ष जीवन)| प्रशमित (भ० क. कृ.) [प्र. शम्-णिच् + क्त ] -प्रव्रज्यां कल्पवृक्षा इवाश्रिताः- कु. 6 / 6 (यहाँ 1. सान्त्वना दी गई, धीरज बंधाया गया, स्वस्थचित्त, मल्लि. के अनुसार 'प्रव्रज्या' का तात्पर्य वानप्रस्थ / तुष्टीकृत, शान्त किया गया 2. (आग) बुझाई गई, या तृतीय आश्रम है)। सम-अवसितः वह पुरुष (प्यास) शान्त की गई 3. प्रायश्चित्त किया गया, जिसन सन्यास ग्रहण करके उस आश्रम को छोड़ | परिशोधन किया गया-उत्तर० 1140 / दिया हो। प्रशस्त (भू० क. कृ०) [प्र+शंस-1-क्त ] 1. प्रशंसा प्रवचनः[+वश्च+ल्युट लकड़ी काटने का उपकरण।। किया गया, तारीफ़ किया गया, श्लाघा की गई, TELETELLETTE For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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