________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नममि... 205 / 11, अव्याहतैः स्वरगतः स तस्याः | स्वैरता, त्वम् [स्वर- तल-+टाप, त्व वा] स्वेच्छा - रघु० 2 / 5 2. स्वतंत्र, असंकोच, विश्वस्त, जैसा / चारिता, स्वच्छन्दता, स्वतन्त्रता। कि 'स्वरालाप' मुद्रा० 4 / 8 3. मन्थर, मृदु नम्र स्वैरिणी [स्वैरिन् +डीप् ] असती, कुलटा, व्यभिचारिणी - मुद्रा० 112 4. सुस्त, मंद 5. अपनी मर्जी चलाने | याज्ञ० 1167 / / वाला, ऐच्छिक, यथाकाम,--- रम् स्वच्छंदता, स्वेच्छा-स्वरिन् (वि.) [स्वेन ईरितुं शीलमस्य- स्व।-ईर चारिता, ..-रम् (अव्य०) 1. इच्छा के अनुसार, णिनि ] मनमानी करने वाला, स्वेच्छाचारी, मनपसंद, आराम से - सार्थाः स्वरं स्वकीयेषु चेरुवेश्म- अनियंत्रित, निरंकुश / स्विवाद्रिषु-रघु० 17 / 64 2. अपने आप, स्वतः स्वरिन्ध्री दे० 'सैरन्ध्री' / 3. शनैः शनैः, नम्रता पूर्वक, मृदुता के साथ - उत्तर० स्वोरसः (पु०) तैलीय पदार्थ सिल पर पीसने के बाद उस 3 / 2 4. आहिस्ता से, धीमी आवाज़ में, अस्पष्ट में लगा हुआ (उस पदार्थ का) अंश या तलछुट / (विप० स्पष्ट)-पश्चात्स्वैरं गज इति किल व्याहृतं स्वोवशीयम् (नपुं०) आनन्द, समृद्धि (विशेषकर भावी सत्यवाचा-वेणी० 3 / 9 / जीवन के विषय में)। है (अव्य०) [हा+3] बलबोधक निपात जो पूर्ववर्ती 7. विष्णु 8. कामदेव 9. राजा जो महत्त्वाकांक्षी न शब्द पर बल देता है, इसका अर्थ है 'सचमुच' यथार्थ | हो 10 विशेष संप्रदाय का सन्यासी 11. दीक्षागरु में निश्चय ही आदि, परन्तु कभी कभी इसका उपयोग 12. ईर्ष्या, द्वेष से हीन व्यक्ति 13. पर्वत / सम. बिना किसी विशेष अर्थ को प्रकट किये केयल पाद- —अधिः सिंदूर, अधिरूढा सरस्वती का विशेषण, पूर्ति के निमित्त भी किया जाता है, विशेष कर वैदिक --अभिख्यम चांदी, कांता हंसिनी, कोलक; एक साहित्य में---तस्य ह शतं जाया बभूवुः, तस्य ह पर्वत- प्रकार का रतिबंध,-गति (वि०) हंस जैसी चाल नारदौ गृह ऊषतुः आदि-ऐत०, यह कभी कभी संबोधन चलने वाला, राजसी ढंग से इतरा कर चलने वाला के लिए भी प्रयक्त होता है, तिरस्कार या उपहास के ... गद्गवा मयुरभाषिणी स्त्री,-..गामिनी 1. हंस की लिए विरल प्रयोग---(पुं०) 1. शिव का एक रूप सी सुन्दर गति वाली स्त्री मनु० 310 2. ब्रह्माणी 2. जल 3. आकाश 4. रुधिर / -पूलः, लम् हंस के मुलायम पर, वाहनम् अगर हंसः हिस+अच, पुषो० वर्णागमः, भवेद्वर्णागमात् हंसः की लकड़ी,--नादः हंस का कलरव, नादिनी मधुर-सिद्धा०] 1. राजहंत, मराल, मुर्गाबी, कारंडव-हंसाः भाषिणी स्त्रियों का भेद (पतली कमर, बड़े नितंब, संप्रति पाण्डवा इव बनादज्ञातचयर्यां गताः- मच्छ०५:६, गज की चाल और कोयल के स्वर वाली) संदर स्त्री न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा-सुभा०, रघु० गजेन्द्रगमना तन्वी कोकिलालापसंयता, नितंब 3 / 10, 5 / 12, 17425 (इस पक्षी का वर्णन जैसा गविणी या स्यात्सा स्मृता हंसनादिनी,-माला हंसों कि संस्कृत के कवियों ने किया है, अधिकतर काव्या की पंक्ति -कु. 1130, युवन् (पु.) जवान हंस, त्मक है, उसे ब्रह्मा का वाहन बताया जाता है, बर रयः, वाहनः ब्रह्मा के विशेषण,-राजः हंसों का सात के आरंभ में उसे मानसरोवर की ओर उड़ता राजा, बड़ा हंस,- लोमशकम्, कासीस,---लोहकम् हुआ बताया जाता है तु० 'मानस' / एक सामान्य पीतल,---श्रेणो हंसों की पंक्ति / कविसमय के अनुसार हंस को दूध और पानी को | हंसकः [हंस- कन्, हंस+के+क वा] 1. कारंडव, मराल पृथक्-पृथक करने वाला विशेष शक्ति संपन्न पक्षी 2. पैरों का आभूषण, नपूर, पायजेब सरित इव माना जाता है उदा० सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्ग सविभ्रमप्रपातप्रणदितहंसकभषणा विरेज:---शि०७। हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात पंच० १,हंसो हि 23, (यहाँ यह शब्द 'प्रथम अर्थ' में भी प्रयुक्त हुआ क्षीरमादते तन्मिश्रा वर्जयत्यपः श० 6.27, नीर- है, दूसरे अर्थों के लिए देखो ऊ० 'हंस)। क्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनषे चेत। विश्वस्मि- | हंसिका, हंसी [ कन्+टाप, इत्वम्, हंस+डीप् ] नधनान्यः कुलवतं पालयिष्यति कः भामि० 1113, हंसनी, मादा हंस / दे० भर्तृ० 2 / 18 भी 2. परमात्मा, ब्रह्म 3. आत्मा, हहो (अव्य०) [हम् इत्यव्यक्तं जहाति-हम्+हा- डो] जीवात्मा 4. प्राण वायुओं में से एक 5. सूर्य 6. शिव / संबोधनात्मक अव्यय जो आवाज देने में प्रयुक्त होता For Private and Personal Use Only