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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 851 ) बताने वाला--रहस्याख्यायीव स्वनसि मृदु कर्णान्तिक- रागश्च रागाः षडिति कीर्तिता:-भरत / दूसरे लेखकों चर:-श० ११२४,---भेदः ---विभेदः किसी भेद या ने भिन्न-भिन्न नाम बतलाये हैं, प्रत्येक राग के अनुरूप गप्त बात का खोलना,--व्रतम् 1. गुप्त प्रतिज्ञा या उनके साथ छ: छः रागिनियाँ होती हैं, इस प्रकार सबको साधना 2. जादू के शस्त्रास्त्रों पर अधिकार प्राप्त मिलाकर संगीत के अनेक राग हो जाते हैं) 10. संगीत करने के लिए एक रहस्यमय विज्ञान / / की संगति, संगीतमाधुर्य-तवास्मि गीतरागेण हारिणा रहित (भू० क० कृ०) [ रह कर्मणि क्त ] 1. छोड़ा गया, प्रसभं हृतः-श० 115, अहो रागपरिवाहिणी गीतिः-श. छोड़ दिया गया, परित्यक्त, सम्परित्यक्त 2. विय क्त, 5 11. खेद, शोक 12. लालच, ईर्ष्या / सम०-- आत्मक मुक्त, बञ्चित, हीन, के बिना (करण के साथ या (वि.) जोशीला,-चूर्णः 1. खैर का वृक्ष 2. सिन्दूर समास के अन्त में-रहिते भिक्षुभिमे - याज्ञ० 3. लाख 4. होली के उत्सव पर एक दूसरे पर फेंका 3159, गुणरहितः, सत्त्वरहितः आदि 3. अकेला, जाने वाला गुलाल या अबीर 5. कामदेव, द्रव्यम् एकाकी.....तम गोपनीयता, परदा या ओट। रंगने वाला पदार्थ, रङ्गलेप, रङ्गा-बन्धः भावना का (अदा० पर० राति, रात) देना, अनुदान देना, समर्पण प्रकटीकरण, (नाना प्रकार संवेगों के) उपयुक्त वर्णन करना-स रातु वो दुश्च्यवनो भावुकानां परम्पराम् से उत्पन्न रुचि-भावो भावं नदति विषयादागबन्ध: -काव्य 0 7 // स एव-मालवि० २१९,-युज पुं०) लाल,-सूत्रम् राका | रा+क+टाप ] 1. पूर्णिमा का दिन, विशेषरूप __1. रङ्गीन धागा 2. रेशमी धागा 3. तराजू की डोरी। से रात्रि, - दारिद्रयं भजते कलानिधिरयं राकाथुना | रागिन् (वि.) [ रग+इनि ] 1. रङ्गीन, रङ्गा हुआ म्लायति - भामि० 2 / 72, 54,94, 150, 165, 2..रङ्ग करने वाला, रङ्गलेप करने वाला 3. लाल 175, 3 / 11 2. पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी 3. वह 4. भावना और आवेश से पूर्ण, जोशीला 5. प्रेमपरित कन्या जिसे अभी रजोधर्म होना आरंभ हआ है 6. सावेश, स्नेहशील, श्रद्धानुरागपूर्ण, अभिलाषी, 4. खुजली, खाज। लालायित (समास के अन्त में), (10) 1. चित्रकार राक्षस (वि.) (स्त्री०-सी) [ रक्षस इदम् अण ] दैत्य 2.प्रेमी 3. स्वेच्छाचारी, कामासक्त,-णी 1. संगीत या राक्षस से सबंध रखने वाला, पैशाची, निशाचर के के स्वरग्राम की विकृतियाँ जिनमें से तीस या छत्तोस स्वभाव वाला-उत्तर० 5 / 30, भग० ९।१२,-सः भेद गिनाये जाते है 2. स्वैरिणी, पुश्चली, कामुकी। 1. पिशाच, भूतप्रेत, बंताल, दानव, शैतान 2. हिन्दु-धर्म- राघवः [रघोगोत्रापत्यम्-अण्] 1. रघुवंशी, रघु की संतान शास्त्रों में प्रतिपादित विवाह के आठ भेदों में से एक विशेषत: राम 2. एक प्रकार का बड़ा मच्छ-भामि० प्रकार जिसमें दुलहिन के सम्बनधियों को युद्ध में परास्त कर कन्या को बलात् उठाकर ले जाया जाता है। राङ्कव (वि.)(स्त्री०-बी) [रकोरयं विकारो वा तल्लो---राक्षसो युद्धहरणात्-याज्ञ० 1161, तु० मनु० 3 / 33 / मजातत्वात् अण्] रङ्कु नाम की हरिण जाति से भी (इसी ढंग से कृष्ण रुक्मिणी को उठा लाया था) / सम्बन्ध रखने वाला, या इसके बालों से बना हआ, 3.ज्योतिषविषयक एक योग 4. नन्द राजा का मन्त्री, ऊनी ..विक्रमांक० १८१३१,-वम् 1. हरिण के बालों जो मुद्राराक्षस नाटक में एक प्रधान पात्र है, - सी से बनाया हुआ ऊनी कपड़ा, ऊनी, वस्त्र 2. कम्बल / पिशाचिनी। राज् (भ्वा० उभ० राजति-ते, राजित) 1. (क) चमकना, राक्षा दे० लाक्षा (कदाचित् अशुद्ध रूप है)। जगमगाना, शानदार या सुन्दर प्रतीत होना, प्रमुख रागः [ रऽ भावे घ, नलोपकुत्वे ] 1. वर्ण, रंग, होना-रेजे ग्रहमयीव सा-भर्तृ० 1117, राजन् राजति रंजक वस्तु 2. लाल रङ्ग, लालिमा, * अधरः किसलय- वीरवैरिवनिता वैधव्यदस्ते भुजः--काव्य०१०, रघु० रागः-श० 1121 3. लाल रङ्ग, लाल रङ्ग की लाख, 3 / 7, कि० 4 / 24, 1116: (ख) प्रतीत होना, झलक महावर,-रागण बालारुणकोमलेन चतप्रवालोष्ठमलकच- दिखाई देना, सोयान्तर्भास्करावलीव रेजे मुनिपरम्पराकार-कु० 3 / 30, 5 / 11 4. प्रेम, प्रणयोन्माद, स्नेह, कु०६।४९ 2. हकूमत करना, शासन करना-प्रेर० (राजप्रीतिविषयक या काम-भावना, - मलिनेऽपिरागपूर्णाम् / यति-ते) चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना / -भामि० 11100 (यहाँ इसका अर्थ 'लाली भी है) निस-प्रेर० चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना, -अथ भवन्तमन्तरेण कीदृशोऽस्या दृष्टिरागः श०२, अलंकृत करना, देदीप्यमान करना-दिव्यास्त्रस्फुरदुग्रदे० 'चक्षुराग' भी 5. भावमा संवेग, सहानुभूति, हित / दीधितिशिखानीराजितज्यं धनु:- उत्तर० 618, 6. हर्ष, आनन्द 7. क्रोध रोष 8. प्रियता. सौन्दर्य नीराजयन्ति भूपालाः पादपीठान्त भूतलम्-प्रबो०२ 9. संगीत के राग या स्वरग्राम मलराग छः है ---भैरवः 2. आरती उतारना, नीराजन करना (पूजा या सम्मान कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्तथा। श्रीरामो मेघ- की दृष्टि के कारण जलते हुए दीपकों के थाल को घुमाना) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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