________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तोता,-क: 1. स्तुति कर्ता, प्रशंसा, स्तुति 3. मंजरियों | स्तुकः (0) वालों की चोटी, ग्रंथि या मीढी / का गुच्छा 4. फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, गजरा, कुसुम- | स्तुका | स्तुक --टाप् ] 1. बालों को ग्रंथि या मीढी 2. सांड स्तवक है. किसी पुस्तक का परिच्छेद, या अनुभाग के दोनों सींगो के बीच के धुंघराले बालों का गुच्छा 6. समुच्चय-तु० 'स्तबक' भी। 3. कुल्हा, जंघा। स्तवनम् [स्तु+ल्युट्] 1. प्रशंसा करना, सराहना 2. सूक्त। स्तुच् (भ्वा० आ० स्तोचते) 1. उज्ज्वल होना; चमकना, स्तावः [स्तु-+ण्वुल] प्रशंसा, स्तुति। निर्मल स्वच्छ होना 2. मंगलप्रद या शुभ या सुखद स्तावकः [स्तु+ण्वुल] प्रशंसक, स्तोता, चापलूस / होना। स्तिष (स्वा० आ० स्तिघ्नते) 1. चढना 2. धावा बोलना | स्तुत (भू० क० कृ०) [स्तु + क्त ] 1. प्रशंसा किया 3. रिसना। गया, प्रशस्त, स्तुति किया गया 2. खुशामद स्तिप् (भ्वा० आ० स्तेपते) रिसना, बूंद-बूंद टपकना, किया गया। झरना। स्तुतिः (स्त्री.) [स्तु +-क्तिन् ] 1. प्रशंसा, गुणकीर्तन, स्तिभिः स्तम्भ- इन्, इत्वम्] 1. रुकावट, अवरोध सराहना, इलाघा स्तुतिभ्यो व्यतिरिच्यन्ते दूराणि ___2. समुद्र, 3. गुल्म, गुच्छा, पुंज। चरितानि ते रघु० 10130 2. प्रशंसाकारक सूक्त, स्तिम, स्तीम् (दिवा० पर० स्तिम्यति स्तीम्थति) 1. गीला स्तोत्र . रघु० 416 3. चापलसी, खुशामद, झूठी या तर होना 2. स्थिर या अटल होना, कड़ा होना / प्रशंसा--भूतार्थव्याहृतिः सा हि नः स्तुतिः परमेष्ठिनः स्तिमित (वि.) [स्तिम् कर्तरि क्तः] 1. गीला, तर 2. (क) ----रघु० 10133 4. दुर्गा का नाम / सम०.-गीतम् निश्चल, निश्चेष्ट, शान्त क्षभितमत्कलिकातरलं मनः स्तुतिगान, सूक्त, कीर्तिगान, पदम् प्रशंसा की वस्तु, पय इव स्तिमितस्य महोदधेः-मा० 3 / 10, (ख) --पाठकः कीतिगायक, प्रशस्तिवाचक, भाट, चारण, जमाया हुआ, कठोर, अटल, गतिहीन, स्थिर-वाच- संदेशवाहक, वादः प्रशंसायक्त भाषण, स्तोत्र, व्रतः स्पतिः सन्नपि सोऽष्टमतौं रवाशास्यचिन्तास्तिमितो भाट / बभूव कु० 7/87, 2059, मा० 1127, रघु० / स्तुत्य (वि.) [स्तु-- क्यप् ] इलाध्य, प्रशंसनीय, सरा२२, 3 / 17, 13 / 48, 79, उत्तर० 6 / 25 3. मंदा हनीय रघु० 4 / 6 / हुआ, बंद- रघु० 1173 4. अकड़ा हुआ, लकवाग्रस्त स्तुनकः [ स्तु। नकक् ] बकरा। 5. मृदु, कोमल 6. तृप्त, सन्तुष्ट / सम० –वायुः / स्तुभ् / (भ्वा० पर० स्तोभति) 1. प्रशंसा करना शान्त पवन,- समाधिः स्थिर सचिन्तन / 2. प्रसिद्ध करना, स्तुतिगान करना, पूजा करना। स्तिमितत्वम् [स्तिमित | त्व] स्थिरता, निश्चेप्टता, ! ii (भ्वा० आ० स्तोभते) 1. रोकना, दबाना 2. ठप शान्ति / करना, सुन्न करना, जडीभूत करना / स्तीविः स्त--क्विन] 1. यज्ञ में स्थानापन्न ऋत्विक स्तुभः [ स्तुभ्+क बकरा। 2. घास 3. आकाश, अन्तरिक्ष 4. जल 5. रुधिर स्तुम्भ (स्वा० क्रया० पर० स्तुभ्नोति, स्तुम्नाति) 6. इन्द्र का विशेषण / 1. रोकना 2. सुन्न करना, जड़ीभूत करना 3. निकाल स्तु (अदा० उभ० स्तौति-स्तवति, स्तुते-स्तवीते, स्तुत, ! देना। इच्छा० तुष्ट्रपति-ते,. इकारान्त या उकारान्त उपसर्ग | स्तूप् (दिवा० पर०, चुरा० उभ० स्तूप्यति, स्तूपयति-ते) के पश्चात् स्तु के स् को प् हो जाता है) 1. प्रशंसा 1. ढेर लगाना, सचित करना, चट्टा लगाना, एकत्र करना, सराहना, स्तुति करना, स्तुतिगान करना-, / करना 2. खड़ा करना, उठाना / कीतिगान करना, ख्याति करना-भामि० 241, / स्तूपः / स्तूप+अच ] 1. ढेर, चट्टा, टीला (मिट्टी का) मुद्रा० 3 / 16, भट्टि० 8 / 92, 15 / 60, 2113 2. बौद्ध स्मारकचिह्न, पावन अवशेषों को (जैसे कि 2. प्रशंसागान करना, भजन गाना, स्तोत्रों द्वारा पूजा / बुद्ध के) रखने के लिए एक प्रकार का स्तंभसदृश करना, अभि-, प्रशंसा करना, स्तुति करना, प्र-, / स्मतिचिह्न 3. चिता / 1. प्रशंसा करना 2. - आरंभ करना, उपक्रम करना, | स्तुi (स्वा० उत्तर० स्तृणोति, स्तृणुते, स्तृत, कर्मवा० प्रस्तूयताम विवादवस्तु--मालवि०१ 3. कारण बनना स्तयते) 1. फलाना, छितराना, ढकना, बिछाना पैदा करना मा० 5 / 9 सम्, 1. प्रशंसा करना .. (महीं) तस्तार सरघाव्याप्तेः स क्षौद्रपटलैरिव - रघ० 1316 2. परिचित होना, जानकार या - रघु० 4 / 63, 7 / 58 2. फैलाना, प्रसार करना, घनिष्ठ संबंध वाला होना (इस अर्थ में प्रायः ‘क्तान्त' विकीणे करना 3. वखेग्ना, छितराना 4. कपड़े पहप्रयोग) अनेकशः संस्तुतमप्यनल्पा नवं नवं प्रीतिरहो। नाना, ढांपना, बिछाना, लपेटना 5. मार डालना, करोति- सि० 3131, कि० 3 / 2, दे० 'संस्तुत' भी।। प्रेर० (स्तारयति-ते) बिछाना, ढांपना, छितराना For Private and Personal Use Only