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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोने के लिए थपथपाना, अव-नि,-प्र, सम् / नाम 2. विष्णु का नाम 3. शिव का नाम 4. मूर्त 'काल' सोना, लेटना-प्रसुप्तलक्षणः मा० 7, कु. 2142, का नाम 5. कामदेव का नाम, वरः अपनी छांट, रघु० 11 // 4 // (दुलहिन द्वारा अपने वर का) अपने आप चुनाव, स्वप्नः [स्वप्+नक्] 1. सोना, नींद अकाले बोधितो इच्छानुरूप विवाह,--वरा वह कन्या जो अपने पति भ्रात्रा प्रियस्वप्नो वृथा भवान्-रघु० 12181, का आप चुनाव करती है। 7161, 1270 2. स्वप्न, रुवाब, सूपना आना | स्वर् (चुरा० उभ० स्वरयति-ते) दोष निकालना, कलंक . -स्वप्नेन्द्रजालसदृशः खलु जीवलोकः-- शान्ति० 2 / 3, | ___ लगाना, बुरा भला कहना, निंदा करना। स्वप्नो नु माया नु मतिभ्रमो नु-श०६।९, रघु०१०।६० स्वर् (अव्य.) [स्व-विच्] 1. स्वर्ग, वैकुण्ठ जैसा कि 3. शिथिलता, आलस्य, तन्द्रा। सम-अवस्था 'स्वर्लोक. स्वर्वेश्या में 2. इन्द्र का स्वर्ग और मृत्यु के सुपने की दशा, -- उपम (वि.) 1. सुपने से मिलता पश्चात् पुण्यात्माओं का अस्थायी आवास 3. आकाश, जुलता 2. अवास्तविक या (भ्रमात्मक स्वप्न की भांति) अन्तरिक्ष4. सूर्य और ध्रुवतारे के बीच का रिक्त --कर,-कृत् (वि.) निद्रा लाने वाला, निद्राजनक, स्थान 5. तीनों व्याहृतियों में तीसरी जिसका उच्चाआस्वापक, गृहम्,-निकेतनम् सोने का कमरा, रण प्रत्येक ब्राह्मण अपनी दैनिक प्रार्थना में करता है, शयनकक्ष,-दोषः स्वप्नावस्था में होने वाला शुक्रपात, दे० 'व्याहृति' / सम० आपगा गंगा 1. गंगा की -धीगम्य (वि०) निद्रा जैसी अवस्था में केवल बुद्धि स्वर्ग में बहने वाली धारा, मंदाकिनी 2. आकाशगंगा, द्वारा अनुभूत होने वाला-मनु० 12 // 122,--- प्रपञ्चः छायापथ, - गतिः (स्त्री०) गमनम् 1. स्वर्ग में निद्रावस्था में भ्रम, स्वप्न में प्रकट होने वाला संसार, जाना, भावी आनंद 2. मृत्यः, तरुः (स्वस्तरुः) स्वर्ग -विचारः स्वप्नों की व्याख्या, शील (वि.) जिसे का एक वृक्ष, वृश् (पुं०) 1. इन्द्र का विशेषण नींद आ रही हो, निद्राल, ऊंघने वाला,-सृष्टिः 2. अग्नि का विशेषण 3. सोम का विशेषण,---नदी (स्त्री०) स्वप्नों की रचना, निद्रावस्था में भ्रम। (स्वर्णदी) आकाशगंगा, मामवः एक प्रकार का स्वप्नज् (वि०) [स्वप्+नजिङ्] निद्रालु, सोने वाला, मूल्यवान् पत्थर,-भानुः राहू का नाम -तुल्येऽपराधे ऊंघने वाला। स्वर्भानुर्भानुमन्तं चिरेण यत्। हिमांशुमाशु असते स्वयम् (अव्य.) [सु+अय्+अम्] 1. आप, अपने आप तन्म्रदिम्नः स्फुट फलम् शि० 2 / 49, सूदनः सूर्य, (निजवाचकता के रूप में प्रयुक्त तथा प्रत्येक पुरुष में -मध्यम आकाश का मध्य बिन्दु, ऊर्ध्वविद्,-लोकः दिव्य व्यवहार्य - यथा मैं स्वयं, हम स्वयं, वह स्वयं-आदि, जगत, स्वर्गलोक, वधूः (स्त्री०) दिव्य कन्या, अप्सरा, कभी कभी बल देने के लिए और सर्वनामों के साथ प्रयुक्त) ... वापी गंगा,-वेश्या स्वर्ग की गणिका, दिव्य परी, विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसांप्रतम्--कु० 2155 अप्सरा, - वैद्य (पुं०, द्वि० व.) दो अश्विनीकुमारों यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम-सुभा०, का विशेषण, षा 1. सोम का विशेषण 2. इन्द्र के रघु० 1117, 2056, मनु० 5 / 39 2. आत्मस्फूर्त वज्र का विशेषण, - सिन्धु-स्वगंगा।। अपने आप, अनायास, बिना किसी कष्ट या चेष्टा के, स्वरः [स्वर+अच्, स्व+अप वा] 1. शब्द, कोलाहल स्वयमेवोत्पद्यन्त एवंविधाः कुलपांशवो निःस्नेहाः पशवः 2. आवाज --स्वरेण तस्थाममृतस्रतेव प्रजल्पितायाम-का० / सम०-अजित (वि.) आत्मार्जित,-उक्तिः भिजातवाचि कु. 1145 3. संगीत के सुर, ध्वनि, (स्त्री०) 1. ऐच्छिक प्रकथन 2. सूचना, अभिसाक्ष्य लय (सुर सात है निषादर्षभगान्धारषड्जमध्यम(विधि में),---ग्रहः बलात् ग्रहण कर लेना, - ग्राह घेवताः / पञ्चमश्चेत्यमी सप्त तन्त्रीकण्ठोत्थिताः स्वराः (वि.) ऐच्छिक, स्वयं चुन लेने वाला, (-हः) स्वयं -अमर०) 4. सात की संख्या 5. स्वर अक्षर चुन लेना, आत्मचुनाव-कु० 217, गा०६।७,--जात 6. स्वराघात (यह गिनती में तीन है उदात्त, अन(वि०) जो आप से आप उत्पन्न हुआ हो,-- दत्त दात्त और स्वरित) 7. श्वासवाय 8. खर्राटे भरना / (वि०) अपने आप दिया हुआ, (-तः) वह लड़का सम० अंशः आधा या चौथाई स्वर (संगीत० में), जिसने अपने आपको दत्तक पुत्र बनने के लिए दत्तक- .- अन्तरम् दो स्वरों के उच्चारण के बीच का अवग्राही माता पिता को दे दिया, हिन्दू धर्म शास्त्र में काश, क्रमभंग,--उदय (वि.) जिसके बाद स्वर हो, वर्णित बारह पुत्रों में से एक,---भुः ब्रह्मा का नाम -~-उपध (वि.) जिसके पूर्व स्वर हो, प्रामः सरगम, -शम्भुस्वयम्भुहरयो हरिणेक्षणानां येनाक्रियन्त सततं स्वरसप्तक, स्वरों का समूह,बद्ध (वि०) ताल गृहकर्मदासाः भर्तृ० १११,--भुवः 1. प्रथम मनु स्वर में बंधा हुआ गाना, भक्तिः (स्त्री०) र और 2. ब्रह्मा का नाम 3. शिव का नाम,--भू (वि.) ल के उच्चारण में अनिविष्ट स्वर की ध्वनि जब आप ही आप उत्पत्र होने वाला, (-भूः) 1. ब्रह्मा का / इन अक्षरों के पश्चात् कोई ऊष्मवर्ण या कोई अकेला For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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