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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से रहित,-क्षेपः (निःक्षेपः) =निक्षेप,-चक्रम् (निश्चक्रम्) (अव्य०) पूर्ण रूप से,--चक्षुस् (निश्चक्षुस्) (वि.) अन्धा, बिना आँखों का,-चत्वारिंश (निश्चत्यारिंश) (वि.) जिसने चालीस पार लिये हों, -चितं (निश्चिंत) (वि.) 1. चिन्ताओं से मक्त, असंबद्ध, सुरक्षित 2. विचारहीन, चितन शन्य, -चेतन (निश्चेतन) चेतनारहित,-चेतस् (नश्चेतस्) ( वि०) जो अपने ठीक होश में न हो,-चेष्ट (निश्चेष्ट) (वि०) गतिहीन, निःशक्त, चेष्टाकरण (निश्चेष्टाकरण) (वि०) किसी को गति से वञ्चित करना, गतिहीनता का उत्पादक (कामदेव के एक बाण का विशेषण),-छंदस् (निश्छंदस्) (वि०) जो वेदों का अध्ययन न करता हो,-छिद्र (निश्छिद्र) ( वि० ) 1. जिसमें सूराख न हो 2. निर्दोष 3. निर्बाध, क्षतिरहित,-तंतु (वि०) जिसके कोई सन्तान न हो, निस्सन्तान,-तन्द्र (वि०) जो आलसी न हो, फुर्तीला, स्वस्थ,-तमस्क, - तिमिर (वि०) अंधकार मुक्त, प्रकाशमान् 2. पाप और नैतिक मलिनताओं से मक्त,-तl (वि०) कल्पनातीत, अचिन्तनीय, --तल (वि०) 1. गोल, वर्तुलाकारमुक्ताकलापस्य च निस्तलस्य --कु०११४२ 2. हिलने वाला, कांपने वाला, डोलने वाला 3. तलीरहित, --तुष (वि०) 1. भूसी से वियुक्त ?. विशद्ध, स्वच्छ सरलीकृत, क्षीरः गेहूँ,° रत्नम् स्फटिक,-तेजस वि०) निरग्नि, ताप या शक्ति रहित, निःशक्त, पुंस्त्वहीन 2. उत्साहित, मन्द 3. गूढ, --अप ( वि० ) ढीठ, निर्लज्ज,-विश (वि.) 1. तीस से अधिक --निस्त्रिंशानि वर्षाणि चैत्रस्य --पा० ४।४।७३, सिद्धा० 2. निर्मम, निर्दय, क्रूर --अमरु ५ (-शः) तलवार भृत् (पुं०) कृपाणधारी,--त्रैगुण्य (वि.) तीन गुणों सत्त्व, रजस तथा तमस् ) से शून्य,- पंक (निष्पक) (वि.) कीचड़ से मुक्त, स्वच्छ, शुद्ध, -पताक (निष्पताक) (वि.) बिना किसी झंडे के,-पतिसुता (निष्पतिसुता) वह स्त्री जिसके न कोई पुत्र हो, न पति, ---पत्र (निषत्र) (वि.) 1. जिसमें कोई पत्ता न हो 2. जिसके पंखे न हों, बिना पंखों का (निष्पत्रा कृ बाण से इस प्रकार बींधना जिससे कि पंख विद्ध जन्तु के आर पार निकल जाय, अत्यन्त पीड़ा पहुँचाना (आल०) निष्पत्राकरोति (मग व्याधः) (सपुखस्य शरस्य अपरपावें निर्गमनानिष्पत्र करोति-सिद्धा०), एकश्च मगः सपत्राकृतोऽन्यश्च निष्पत्राकृतोऽपतत्-दश० १६५, इसी प्रकार-यांती गुरुजनैः साकं स्मयमानाननांबुजा, तिर्यग्ग्रीवं यदद्राक्षीत्तनिष्पत्राकरोज्जगत्-भामि० २।१३२, ---पद (निष्पद) (वि०) बिना पैरों का (दम) एक गाड़ी जो बिना पैरों या बिना पहियों के चले,-परिकर (निष्परिग्रह) (वि०) बिना तैयारी के,--परिग्रह (निष्परिग्रह) जिसके पास किसी प्रकार की संपत्ति न हो,-मुद्रा० 2. (हः) वह संन्यासी जिसने न तो विवाह किया हो, न जिसका कोई आश्रित हो और न जिसके पास कुछ सामान हो, ----परिच्छद (निष्परिच्छद) (वि०) जिसका कोई अनुचर या पिछलगुआ न हो,-परीक्ष (निष्परीक्ष) (वि०) जो यथार्थ या सही सही परख न करे, ----परीहार (निष्परीहार) (वि०) जो सावधानी न रक्वे,-पर्यंत (निष्पर्यंत),—पार (निष्पार) (वि.) सीमा रहित, असीमित०,-पाप (निष्पाप) (वि०) पापरहित, निर्दोष, पवित्र,-पुत्र (निष्पुत्र) (वि०) पुत्र रहित, निस्सन्तान,-पुरुष (निष्पुरुष) (वि०) 1. निर्जन, बिना किसी असामी के, उजाड़ 2. पुंसन्तान हीन 3. जो पुंलिंग न हो, स्त्रीलिंग, नपुंसक लिंग ((षः) 1. हीजड़ा 2. कायर, पुलाक (निष्पुलाक) बिना पुराली का, बिना भुसो का,-पौरुष (निष्पौरुष) (वि०) पौरुषहीन,-प्रकंप (निष्पकप) (वि०) स्थिर, अचर, गतिहीन,-प्रकारक ( निष्प्रकारक) (वि.) जातिभेदरहित, वैशिष्टयरहित, पूर्ण ... निष्प्रकारकं ज्ञानं निर्विकल्पम् -तर्क ०,---प्रकाश (निष्प्रचार) (वि.) पारदर्शक, अस्पष्ट, अंधकारमय,-प्रचार (निष्प्रचार) (वि.) 1. न हिलने डुलने वाला 2. एक ही स्थान पर स्थिर रहने वाला 2. संकेन्द्रित, जमाया हुआ, स्थिर किया हुआ,-प्रति (तो) कार (निष्पति) (तो) कार), प्रतिक्रिय (निष्प्रतिक्रिय) (वि.)1. जिसकी चिकित्सा न हो सके, जिसका कोई प्रतिकार न हो सके -सर्वथा निष्पतिकारेयमापदुपस्थिता-का० १५१ 2. निर्बाघ, बाधारहित (अव्य रम्) बिना किसी विघ्न के,-प्रतिघ (निष्पध) (वि०) विघ्नरहित, निधि, बाधाशून्य-रघु० ८७१, --प्रतिद्वन्द्व (निष्प्रतिद्वन्द्व) (वि.) 1. शत्रुरहित, निविरोध 2..बेजोड़, अप्रतिम, अनुपम,-प्रतिभ (निष्प्रतिभ) (वि.) 1. कान्तिशून्य 2. प्रज्ञाहीन जो प्रत्युत्पन्नमति न हो, मन्द बुद्धि, जड़ 3. उदासीन, ---प्रतिभान (निष्प्रतिभान) (वि.) कायर, भीरु, -प्रतीप (निष्प्रतीप) (वि.) 1.सीधा सामने देखने वाला, पीछे मुड़कर न देखने वाला 2. (दृष्टि) असंबद्ध,-प्रत्यूह (निष्प्रत्यूह) (वि.) निर्विघ्न, अबाध,--प्रपंच (निष्प्रपंच) 1. विस्तारहीन 2. छल कपट से रहित, ईमानदार,--प्रभ (निःप्रभ या निष्प्रभ) (वि.) 1. कान्तिविहीत, विवर्ण दिखाई देने वाला-रघु० ११५८१ 2. शक्तिरहित 3. निस्तेज, द्युतिहीन, अन्धकारमय,-प्रमाणक (निष्प्रमाणक) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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