SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५८० परावर्तः, परावृत्तिः [ परा + वृत् + घञ्ञ, वितन् वा ] 1. पीछे मुड़ना, वापसी, प्रत्यावर्तन 2. अदल-बदल, विनिमय 3. पुनः प्राप्ति 4. ( कानुन में ) दण्ड या संजा की उलट-पलट | पराशरः [ परान् आशृगाति शू+अच् ] एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम जो व्यास के पिता तथा एक स्मृतिकार थे । परासम् | परा+अस् + ञ ] रांगा, टीन | परासनम् [ परा + अस् + ल्युट् ] बव, हत्या | परासु (वि० ) [परागताः असवो वस्य प्रा० ब० स० ] निजीव, मृतक, प्राक् परासुद्विजात्मजः रघु० १५ ५६, ९।७८ । परास्त ( भू० क० कृ० ) [ परा + अस् + क्त ] 1. फेंका हुआ, डाला हुआ 2. निष्कासित, निकाला हुआ 3. अस्वीकृत 4. निराकृत व्यक्त हराया हुआ । परात ( भू० क० कृ० ) [ परा + न् + क्त | 1. पटका हुआ, पछाड़ा हुआ 2. पोछे हटाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ, तम् प्रहार, आघात । परि ( अव्य० ) [ पू+इन् ] ( कभी-कभी बदलकर 'परी' भी हो जाता है, जैसे कि 'परिवाह' या 'परवाह', परिहास या परोहास' में) यह उपसर्ग के रूप में धातु या संज्ञाओं से पूर्व उपकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है 1. ( क ), चारों ओर इधर उवप, इर्द गिर्द (ख) बहुत, अत्यन्त 2. पृथक्करणीय अव्यय ( संबं० also ) के रूप में निम्नांकित अर्थ है ( क ) की ओर की दिशा में, की तरफ के सामने ( कर्म० के साथ ) वृक्षं परि विद्योतते विद्युत् (ख) क्रमशः, अलग. २ करके (कर्म० के साथ) वृक्षं वृक्षं परि सिचति, 'वह एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को सींचता है ( ग ) हिस्से मं, भाग्य में (कर्म० के साथ) यदत्र 'मां परि स्यात् 'जो मेरे भाग्य में बदा हो, लक्ष्मीहरि (परि-- सिद्धा० (घ) से, में से (ङ) सिवाय (अपा० के साथ) परि त्रिगर्तभ्यां वृध्दी देंगे, या - पर्यनतात् त्रयस्तापाः बोप ० (च) बीत जाने के बाद (छ) फलस्वरूप 3. क्रिया विशेषण उपसर्ग के रूप में संज्ञाओं से पूर्व लग कर. जबकि क्रिया से साधन हो 'बहुत' अति' अत्यधिक' अत्यन्त' आदि सूर्य प्रकट करता है जैसा कि पर्यश्रु ( आँसू ढरकना) में इसी प्रकार परिचतुर्दशन् परिदौर्बला 4. अवायीभाव समासों से पूर्व 'परि' का निम्नांकित अर्थ होता है। ( क ) बिना सिवाय के बाहर इसको छोड़ कर जैसा कि, परित्रिगर्त वृष्टो देवः - ० ११ १२, ६१२/३३, प्रा० २ ११० के अनुसार परि अक्ष, "शलांका या संख्या वाचक शब्द के पश्चात् अव्ययीभाव समास के अन्त में प्रयुक्त होता है यदि पासा उलट | T Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाने के कारण या दुर्भाग्यदश हार या पराजय हो जाय ( द्यूतव्यवहारे पराजये एवायं समासः ) उदा० अक्षपरि. शलाकापरि एकपरितु० अक्षपरि ( ख ) इर्द दिर्द, चारों ओर घिरा हुआ जैसा कि 'पर्यग्नि' में ( ज्वालाओं के बीच में ) 5. कर्मधारय समास के १न्त में परि' का अर्थ है 'श्रान्त', क्लात' 'उबा हुआ' जैसा कि 'पर्यध्ययन - परिग्लानोऽध्ययनाय में । परिकथा | प्रा० स०] आख्यानप्रिय व्यक्ति के इतिवृत्त तथा उसके साहसिक कार्यों को बतलाने वाली रचना, काल्पनिक कथा | परिकंप: [ प्रा० स० ] 1. भारी त्रास 2. प्रचंड कंपकंपी, या थरथराहट महावी० २१२७ । परिकरः । प्रा० स० 1. परिजन, अनुचर वर्ग, नौकरचाकर, अनुयायिवर्ग 2. समुच्चय, संग्रह, समूह - रत्न० ३५ 3. आरंभ, उपक्रम भतृ० १६ 4 परिधि, कटिबंध, कटिवस्त्र - अहिपरिकरभाजः शि० ४/६५, परिकरं बंध (कृ) कमर कराना, तैयार होना, किसी कार्य के लिए अपने आपको सज्जित करना-बघ्नन्सवेगं परिकर का० १७० कृतपरिकरस्य भवादृशस्य त्रैलोक्यपfr न क्षमं परिपत्रोभवितुम् - वेणी०३, गंगा० ४७, अमरु० ९२ 5. सोफा 6. (सा० शा० मे० ) एक अलंकार जिसके सार्थक विशेषणों का उपयोग होता है--विशेपणैर्यत्साकूनैरुक्तिः परिकरस्तु स. काव्य० १०. उदा० सुधांशुकलितोत्तंसस्तापं हन्तु वः शिवः चन्द्रा० ५५९7. (नाट्य० में नाटक की वस्तु कथा में आने वाली घटनाओं का परोक्षसूचन, 'बीज' का मूलतत्त्व, दे० सा० द० ३४० 8 निर्णय । परिकर्त (पुं० ) | प्रा० रा० ] वह पुरोहित जो बड़े भाई के रहते हुए छोटे भाई का विवाह संस्कार करता है - परिकर्ता याजकः- हारीत, तु० परिवेतृ । परिकर्मन् (पुं० ) |परि | कृ | भनिन् । सेवक - नपुं० - शरीर को चित्रित या सुगंधित करना, वैयक्तिक सजावट, अलंकृत करना, प्रसाधन कृताचार परि कर्माणम् -- ० २ 2. पैरों में महावर लगाना- कु० ४।१९ 3 सज्जा, तैयारी 4. पूजा अर्चना 5. (योग० में) शुद्ध करना, पवित्रीकरण मन को शुद्ध करने के साधन - शि० ४१५५: ( इसके ऊपर दे० मल्लि० ) 6. गणित की प्रक्रिया ( इसके आठ भेद है ) । परिकर्षः, कर्वणम् [ परि कृष्+घञ्ञ, ल्युट् वा ] खींच कर बाहर निकालना, उखाड़ना । परिकलकनत् [ परि + कल् - 1 क + ल्युट् ] धोखा, ठगी, छल-कपट | परिकल्पनम्--ना [ परि + कृप् + ल्ड् ] 1. निर्णय करना, स्थिर करना, फैसला करता निर्धारण करना 2. उपाय निकालना, आविष्कार नरना, रूप वेता, क्रम For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy