________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सार्गल (वि.) [सह अर्गलेन .ब. स.11. रोका हआ, संबंध रखने वाला-जैसा कि 'सार्वत्रिको नियमः, में। अवरुद्ध, अड़चन वाला...रघु० 1179 / सार्वधातुक (वि०) (स्त्री०--की) [सर्वधातु+-ठक ] सार्थ (वि.) [सह अर्थेन-ब० स०] 1. अर्थयुक्त, सार्थक संपूर्ण धातुओं में व्यवहृत होने वाला, गण विकरण 2. सोद्देश्य 3. समानार्थक, समानाशय 2. उपयोगी, लगाने के पश्चात् धातु के समस्त रूप में घटने वाला, कामलायक 5. धनवान्, दौलतमंद, मालदार,-थः अर्थात् चार गण और चार लकारों के साथ प्रयुक्त 1. धन्वान् पुरुष 2. सौदागरों की टोली, व्यापारियों होने वाला, कम् चार लकारों (लट्, लोट्, लङ, का दल सार्थाः स्वरं स्वकीयेषु चेरुवेश्म स्विवाद्रिषु लिङ) के तिडादि प्रत्यय (या लिट् तथा आशीलिङ -~~ रघु० 17 / 64, दे० सार्थवाह 3. दल 4. लहंडा, को छोड़ कर और सभी लकारों के विभक्तिचिह्न रेवड़ (एक ही जाति के जानवरों का)-अथ कदाचित्त- और 'शू' ध्वनि से प्रकट होने वाले विकरण) / रितस्ततो भ्रमद्भिः सार्थाद भ्रष्टः कथनको नामोष्ट्रो सार्वभौतिक (वि.) (स्त्री०-की) [सर्वभूत+ठक ] दृष्ट: पंच०१ 5. संचय, संग्रह–अथिसार्थः-पंञ्च० 1. सभी मूलतत्त्वों या प्राणियों से संबंध रखने वाला 1, त्वया चन्द्रमसा चातिसन्धीयते कामिजनसार्थ:-श०३ 2. सभी जीवधारी जन्तुओं से युक्त / / 6. तीर्थयात्रियों की टोली में से एक / सम०-न | सार्वभौम (वि०) (स्त्री०-भी) [सर्वभूमि-+अण् ] काफले में पला हुआ,-वाहः काफले का नेता, व्यापारी, समस्त घरती से संबद्ध या युक्त, विश्वव्यापी,-मः सौदागर श०६। 1. सम्राट्, चक्रवर्ती राजा-नाज्ञाभंग सहन्ते नवर सार्थक (वि.) [ सह अर्थेन-ब० स० कप्] 1. अर्थयुक्त, नृपतयस्त्वादृशाः सार्वभौमाः मद्रा० 3 / 22 2. कुबेर अर्थपूर्ण 2. उपयोगी, कामचलाऊ, लाभदायक / की दिशा, उत्तर दिशा का दिक्कुञ्जर। सार्थवत् (वि०) [ सार्थ-+-मतुप् ] 1. अर्थयुक्त, अर्थपूर्ण सावलौकिक (वि०) (स्त्री०-को) [सर्वलोक / उन] सब 2. बहुत साथियों से युक्त / / लोकों का ज्ञात, समस्त संसार में व्याप्त, सार्वजनिक, साथिकः [सार्थ + ठक् ] व्यापारी, सौदागर / विश्वव्यापी- अनुरागप्रवादस्तु वत्सयोः सार्वलौकिक: सा (वि.) [सह आर्द्रण-ब० स०] गीला, भीगा, तर, -- मा० 1 / 13 / सोला। सार्ववणिक (वि.) (स्त्री०-को)[सर्ववर्ण+ ठक्] 1. प्रत्येक सार्थ (वि.) [ सह अर्धनब० स०] जिसमें आधा बढ़ा प्रकार का, हर तरह का 2. प्रत्येक जाति या वर्ग हुआ हो, जिसमें आधा जुड़ा हुआ हो, जिसमें आधा से सम्बन्ध रखनेवाला। अधिक हो- 'सार्धशतम्' आदि / सार्वयिभक्तिक (वि०) (स्त्री०-की)सर्व विभक्ति+ठा] सार्धम् (अव्य०) [ सह+ऋध+अमु] साथ-साथ, के किसी शब्द की सभी विभक्तियों में घटने वाला, सभी साथ, के साथ में (करण के साथ)-वनं मया सार्ध- विभक्तियों से संबद्ध। मसि प्रपन्नः-रघु० 14168, मनु० 4 / 43, भट्रि० सार्ववेदसः [सर्ववेदस्+-अण्] जो किसी यज्ञ या अन्य 6 / 26, मेघ० 89 / / पूर्ण कार्य में अपना समस्त धन दे देता है। सार्पः (प्यः) [ सर्पो देवताऽस्य -सर्प+अण्, ष्य वा] सार्वर्वद्यः सर्ववेद+प्य सभी वेदों का ज्ञाता ब्राह्मण / आश्लेषा नाम का नक्षत्रपुंज। सार्षप (वि०) (स्त्री०-पी) [सर्षप+अण्] सरसों का सापिष (वि०) (स्त्री०-षी), सापिष्क (वि०) (स्त्री० बना हुआ, पम् सरसों का तेल / ---को) [ सर्पिस् +अण, ठक् वा ] घी में तला हुआ, साष्टि (वि०) समान स्थान, दशा, या पद से युक्त समान घी मिश्रित / अधिकार रखने वाला।। सार्वकामिक (वि०) (स्त्री०-को) [ सर्वकाम+ठक] साष्टिता [साष्टि+तल+टाप्] 1. पद अधिकार व अव प्रत्येक इच्छा को शान्त करने वाला, समस्त कामनाओं स्थाओं में समानता 2. शक्ति में तथा अन्य विशेपताओं को पूरा करने वाला कि० 18 / 25 / में परमात्मा से समानता, मुक्ति की चार अवस्थाओं सार्वकालिक (वि०) (स्त्री०-की) [ सर्वकाल-ठक] में से अन्तिम अवस्था ब्रह्मदो ब्रह्मसाष्टिता (प्रानित्य, शाश्वत, सदैव रहने वाला / प्नोति)- मनु० 4 / 232 / सार्वजनिक (वि.) (स्त्री०-की) सार्वजनीन (वि.) | साष्टर्यम् [साष्टि+व्या ] चौथे दर्जे की मुक्ति / (स्त्री०-नी) [ सर्वजन-+-ठक्, खम वा] सर्वजन | सालः [सल-घा] 1. एक वृक्ष का नाम, या उसकी व्यापक, विश्वव्यापी, सर्वसाधारण संबंधी। राल 2. वृक्ष-यथा कल्पसाल' 'रसालसाल' में सावंशम् [ सर्वज्ञ---अण् ] सर्वज्ञता, सब कुछ जानना। 3. किसी भवन की चारदिवारी या फसील, परकोटा सार्वत्रिक (वि.) (स्त्री०---की) [ सर्वत्र+ठक् ] प्रत्येक 4. भीत, दीवार 5. एक प्रकार की मछली (समासों स्थान का, सामान्य, सब स्थानों या परिस्थितियों से के लिए देखो 'शाल' के अन्तर्गत)। For Private and Personal Use Only