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2. घूमने-फिरने वाला नट या गवैया, नर्तक, भाँड, । कुतर्को दार्शनिक जो बहस्पति का शिष्य बताया जाता भाट-मन० १२११४ 3. स्वर्गीय गवैया, गंधर्व-श० है और जिसने भौतिकवाद एवं नास्तिकता के स्थल २।१४ 4. वेद या अन्य धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करने रूप का प्रवर्तन किया (चार्वाकमत के सिद्धांतों के वाला 5. भेदिया।
साराश के लिए दे० सर्व०१) 2. महाभारत में वर्णित चारिका [ चर्+णिच् +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] सेविका, | एक राक्षस जो दुर्योधन का मित्र और पांडवों का शत्र दासी।
था [ जब युधिष्ठिर अपनी विजयपताका के साथ चारितार्थ्यम् [ चरितार्थ--ष्यञ ] उद्देश्यसिद्धि, सफलता। हस्तिनापुर में प्रविष्ट हुआ तो उस राक्षस ने एक चारित्रम्, त्र्यम् [ चरित्र+अण्, ष्या वा] 1. शील,
ब्राह्मण रूप धारण कर लिया तथा उसने युधिष्ठिर, व्यवहार, काम करने को रीति 2. नेकनामी, सच्च
एवं एकत्रित ब्राह्मणों को बुरा-भला कहा। परन्तु शीघ्र रित्रता, ख्याति, सचाई, ईमानदारी, अच्छा चालचलन
ही उसका पता लग गया, और क्रोध में भर कर असली -अनृतं नाभिधास्यामि चरित्रभ्रंशकारणम्-मृच्छ०
ब्राह्मणों ने उसका वहीं काम तमाम कर दिया। उस ३१२५, २६, चारित्र्यविहीन-आढ्योऽपि च दुर्गतो भवति
राक्षस ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर भी युधिष्ठिर --.-११४३ 3. सतीत्व, (स्त्रियों का) सदाचरण 4. स्व.
को यह कहकर ठगने का प्रयत्न किया था कि भीम भाव, तबीयत 5. विशिष्ट आचार या अभ्यास 6. कुल
को तो दुर्योधन ने मार डाला-दे. वेणी०६] । क्रमागत आचार । सम०--कवच (वि०) सतीत्व रूपी | चार्वी [चारु-+ङीप् 1. सुन्दर स्त्री 2. चांदनी 3. बद्धि, कवच में सुरक्षित ।
प्रज्ञा 4. प्रभा, कान्ति, दीप्ति 5. कुबेर की पत्नी। चारु (वि०) (स्त्री० रु,-वी) [चरति चित्ते--चर+उण चालः [चल+ण] 1. घर का छप्पर या छत, 2. नीलकंठ
1. रुचिकर, सत्कृत, प्रिय, प्रतिष्ठित, अभीष्ट (संप्र० पक्षी 3. हिलना-डुलना, चलना-फिरना 4. जंगम होना। या अधि० के साथ)-वरुणाय या वरुणे चारु: 2. सुखद, ! चालकः [चल वुल] दुर्दान्त हाथी। रमणीय, सुन्दर, कान्त, मनोहर---प्रिये चारुशीले मञ्च चालनम् [चल+णिच् + ल्युट् ] 1. चलाना-फिराना, मयि मानमनिदानम् --गीत० १०, सर्व प्रिये चारुतरं हिलाना डुलाना, (पूंछ की भांति) हिलाना 2. छनवाना, वसन्ते--ऋतु०६।२, चकासतं चारुचमूरुचर्मणा-शि०
छानना, छलनी,---नी छलनी, झरना। १२८, ४।४९, ----रु: बृहस्पति का विशेषण,-रु (नपं०) चाषः, -सः [चष्+णिच्+अच्, पृषो० सत्वम् ] नीलकंठ केसर, जाफरान । सम...अङ्गी सुन्दर अंगों वाली |
जाफरान | HRA...अहो सटर अंगों वाली पक्षी--मा० ६।५ याज्ञ० १।१७५।। स्त्री०-घोण (वि०) सुन्दर नाक वाला पुरुष,-दर्शन | चि (स्वा० उभ०-चिनोति, चिनुते, चित; प्रेर०-चाय(वि.) प्रियदर्शन, लावण्यमय, --धारा शची, इन्द्राणी, यति, चापयति; चययति, चपयति भी, सन्नन्त-चिचीइन्द्र की पत्नी,--नेत्र,-- लोचन (वि.) सुन्दर आँखों षति, चिकीषति) 1. चुनना, बीनना, इकट्ठा करना वाला, (त्रः, नः) हरिण,-फला, अंगूरों को बेल, अंगूर, (द्विकर्मक धातु होने के कारण दो कर्मों के साथ ...लोचना सुन्दर आँखों वाली,--वक्ता (वि०) सुन्दर अन्वय परन्तु लौकिकसाहित्य में इसका प्रयोग विरल) मुख वाला,-वर्धना स्त्री,-व्रता एक मास तक उपवास -वक्ष पुष्पाणि चिन्वती 2. ढेर लगाना, टाल लगा देना, करने वालो स्त्रो,-शिला 1. जवाहर, रत्न 2. पत्थर अंबार लगा देना-पर्वतानिव ते भूमावचैषुर्वानरोत्तकी सुन्दर शिला,-शील (वि०) कान्त-स्वभाव या मान्-भट्टि० १५।७६ 3. जड़ना, खचित करना, चरित्र, हासिन् (दि०) मधुर मुस्कान वाला।
मढ़ना, भरना-दे० चित -- कर्म वा०, फल उत्पन्न चाचिक्यम् | चिका--प्यञ ] 1. गरीर को सुगंधित होना, उगना, बढ़ना, फलना-फूलना, समृद्ध होना करना, चन्दन आदि लगाना 2. उबटन ।
-सिच्यते चीयते चव लता पूष्पफलप्रदा-पंच० १२२, चार्म (वि.) (स्त्री० ..र्मी) [चर्मन - अग, टिलोपः] | फल लगता है;--चीयते वालिशस्यापि सत्क्षेत्रपतिता
1. चमड़े का बना हुआ 2. (गाड़ो आदि) चमड़े से कृषिः- मुद्रा० ११३, राजहंस तव सैव शुभ्रता चीयते ढका हुआ 3. ढाल धारी, ढाल से युक्त ।।
न च न चापचीयते-काव्य०१०, अप- कम होना, चार्मण (वि.) (स्त्री० - णी) [चर्मन+अण, स्त्रियां विहीन होना, वञ्चित होना, (मुख्यतः कर्मवा० में
ङीष् च ] चमड़े या साल से ढका हुआ,--णम् खालों 1. घटना, क्षीण होना, कम होना-राजहंस तव सैव या ढालों का ढेर ।
शुभ्रता चोयते न च न चापचीयते-काव्य० १० 2. शरीर चार्मिक (वि०) (स्त्री... -की) [ चर्मन् + ठक् ] चमड़े का में घटना, क्षीण होना, आ-, 1. एकत्र करना, ढेर बना हुआ---मनु० ८।२८९ ।
लगाना 2. भरना, ढकना, मढ़ना-भट्टि. १७१६९, चामिणम् | चमिन् । अण ] ढालधारी मनुष्यों का समूह ।। १४।४६, ४७, उद्-, एकत्र करना, बीनना-भट्रि० चार्वाकः [ चारुः लोकसंमतो वाको वाक्यं यस्य--ब० स०] | ३।३७, उप-, जोड़ना, बढ़ाना-उपचिन्वन्प्रभां तन्वीं
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