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( १७९ ) इक्षिका ईक्ष --पवल, ईक्षा+कन+टाप वा इत्वम] 1. आँख । दोहराना-इतीरयन्तीव तया निरैक्षि-०१४।२१, 2. झांकना, झलक।
शि० ९५६९, कि० ११२६, रघु० ९५८, मा० ११२५ ईक्षित (भू० क० कृ०) ईक्ष् + क्त] देखा हुआ, ताका 3. चलाना, हिलना-डुलना, हिलाना-बातेरितपल्लहुआ, खयाल किया हुआ,-तम् 1. दृष्टि, दृश्य 2. आँख वांगुलिभिः - श० १, 4. नियुक्त करना, काम लेना,
-अभिमुखे मयि संहृतमीक्षितम्-श०२।११। उद्-, उठना (प्रेर०) 1. कहना, उच्चारण करना, इंख (भ्वा० पर०) (ईखति, इंखित) 1 जाना, कथन करना, बोलना, - उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हिलना-डुलना, डांवाडोल होना, प्रे०-झूलना, घूमना .- पंच० ११४३, रघु० २९, 2. आगे प्रस्तुत करना 2. हिलना, प्र-हिलाना, डगमगाना -खच्च क्षुभिता . - यदशाको यमुदीरयिष्यति रघु० ८।६२ 3. फेंकना, क्षिति:-भट्टि० १७।१०८, प्रेडद्भरिमयूख मा० (पासा आदि) लुढ़काना रघु० ६।१८, 4. (धूलि ६१५, अमरु १।
आदि) उठना 5. प्रदर्शन करना, प्रकाशित करना, ईज, इञ् (भ्वा० आ०) 1. जाना 2. निंदा करना, कलंक प्र.1. डालना, फेंकना-श० २२ 2 प्रेरित करना, लगाना।
धकेलना -रघु० ४।२४, 3. उकसाना, भड़काना, ईद (अदा० आ०) (ईडे, ईडित) स्तुति करना--अग्नि- चलाना, सम्-, 1. कहना 2. हिलाना, हिलना-डुलना,
मीड पुरोहितम्-ऋक-१।१।१ शालीनतामब्रजदीड्य- समुद्-, कहना, बोलना।
मानः-रघु० १८११७, भट्टि० ९५७, १८।१५। ईरणः [ईर् । ल्युट्] वायु, -- णम् 1. क्षुब्ध करने वाला, ईडा [ ईड्-+अ---टाप् ] स्तुति, प्रशंसा ।
हिलाने वाला, चलाने वाला, 2. जाने वाला 3.=इरण । धि (सं० कृ०) [ईड्- ण्यत् प्रंशसनीय, इलाध्य-भवन्त ईरिण (वि०) [ईर+इनन् । मरुस्थल, बंजर,--णम् ऊसर, मीडयं भवतः पितेव-रघु० ५।३४
बंजर भूमि महतमिव निःशब्दमासीदीरिणसंनिभम् ईतिः (स्त्री०) [ई+क्तिच्] 1. महामारी, दुःख, मौसम । -रामा०।
संकट, ईति बहुघा ६ कही जाती है -१. अतिवृष्टि | ईक्ष्य - ईय॑ । २. अनावृष्टि ३. टिड्डीदल ४. चहे ५. तोते और ईमम [ई+मक घाव । ६. बाहर से आक्रमण -अतिवृष्टिरनावृष्टिः शलभाः ईर्या [ईर् + ण्यत् -- टाप्] (धार्मिक भिक्षु के रूप में) इधर मूषका: शकाः, प्रत्यासन्नाश्च राजानः पडेता ईतयः उधर घूमना। स्मृताः। ---निरातका निरीतयः - रघु० १।६३, ईर्वारुः (पुं० स्त्री०) [ईरु ऋ+उण् बा०] ककड़ी। 2. संक्रामक रोग 3. (विदेश में) घूमना. विदेश यात्रा ईर्षा-ईर्ष्या। 4. दंगा।
ईष्य , ईक्ष्य (भ्वा० पर०) (ईप्यंति, ईप्यित) डाह करना, ईवृक्ता [ईदृश् +-तल+टाप्] गुण (विप० 'इयत्ता')-विष्णो ईर्ष्याल होना, दूसरों की सफलता को देखकर अस
रिवास्यानवधारणीयम् ईदृक्तया रूपमियत्तया वा हिष्णु होना, (संप्र० के साथ)-हरये ईष्र्ण्यति-सिद्धा०, -रघु० १३१५ ।
शि०८।३६। ईदृक्ष-श (वि०) (स्त्री०-क्षी-शो) ( ईदृश् भी)-ऐसा, इस ईष्य, ईर्म्यु, ईष्यक (वि०) [ईष्य +अच्, उण, ण्वुल वा]
प्रकार का, इस पहलू का, ऐसे गुणों से युक्त ।। ___ डाह करने वाला, ईर्ष्यालु । ईप्सा [आप्तुमिच्छा-आप-सन्+अ] 1. प्राप्त करने की | ईर्ष्या, ईर्षा [ईष्र्य + अप, ईZ +धा, यलोप:] डाह, इच्छा 2. कामना, इच्छा।
जलन, दूसरों की सफलता को देखकर जलन पैदा ईप्सित (वि०) [आप+सन्+क्त] इच्छिन, अभिलपित, होना। प्रिय--तम् इच्छा, कामना।
ईर्ष्या (र्षा) लु, ईष्र्यु (घु) (वि०) [ईर्घ्य +आलुच्, उ वा] ईप्सु (वि०) [आप+सन्+उ] प्राप्त करने का प्रयत्न डाह करने वाला, असहिष्णु ।
करने वाला, ग्रहण कग्ने की कामना या इच्छा करने ईलिः (ली) (स्त्री०) [ईड्+कि इस्य ल:] एक हथियार, वाला (कर्म और तुमु० के साथ परन्तु प्रायः ममास में) डंडा, छोटी तलवार।
- सौरभ्यमीप्सुग्वि ते मुखमारतस्य - रघु० ५।६३ । ईश् (अदा० आ०) (ईप्टे, ईशित) 1. राज्य करना, स्वामी र (अदा० आ०) (ईत, ईर्ण) (भ्वा० पर० भी) होना, शासन करना, आदेश देना (संबं० के साथ)
(क्तान ..ईरित) 1. जाना, हिलना-डुलना, हिलाना ...अर्थानामीशिप त्वं वयमपि च गिरामीश्महे याव(सक० भी) 2. उटना, निकलना, उगना; (चरा० दर्थम् -भर्तृ० ३।३० 2. योग्य होना, शक्ति रखना, - उभ०) या प्रेर० (ईग्यति, ईग्ति) 1. फेंकना, ('तुम्' के साथ) माधुर्यमीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम् छोड़ना, (तीर) चलाना, डालना-ऐरिरच्च महादुमम् -रघु० १८।१३, 3. स्वामी होना, अधिकार में -भट्टि १५।५२ 2. कहना, उच्चारण करना, | करना।
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