________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 971 ) वृतिकर (वि.) [वृति ++ट, मुम् ] घेरने वाला, / -रघु० 118, श० 5 / 6, पंच० 3 / 125 8. जीविका, लपेटने वाला,--रः विकंकत नाम का पेड़ / संपोषण, जीविका के उपाय (बहुधा समास में)-रषु० वृत्त.(भू० क. कृ०) [बत्+क्त ] 1. जीवित, विद्यमान 2138, श० 7.12, कु. 5 / 28, (जीविका के विभिन्न 2. घटित, संभूत 3. सम्पूरित, समाप्त 4. अनुष्ठित, उपायों के लिए दे० मनु० 4 / 4.6 1. मजदूरी, भाड़ा कृत, किया गया 5. गुजरा हुआ, बीता हुआ 6. गोल, 10. क्रियाशीलता का कारण 11. सम्मानपूर्ण बर्ताव वर्तुलाकार-रघु० 6 / 32 7. मृत, स्वर्गगत 8. दृढ़, 12. भाष्य, टीका, विवृति-सदवृत्तिः सन्निबन्धना स्थिर 9. पठित, अधीत 10. व्युत्पन्न 11. प्रसिद्ध (दे० -शि० 2 / 112, काशिकावृत्तिः आदि 13. चक्कर वृत्),--तः कछुवा,--तम् 1. बात, घटना 2. इति काटना, मुड़ना 14. किसी वृत्त या पहिये की परिधि हास, वर्णन रघु० 15164 3. समाचार, खबर 15. (व्या०) जटिल रचना जिसकी व्याख्या करने 4. प्रवर्तन, पेशा, जीवनवृत्ति, व्यवसाय–सतां की आवश्यकता पड़े 16. शब्द की वह शक्ति जिसके वृत्तमनुष्ठिता:-मनु० 101127, (पाठांतर) 7) द्वारा किसी अर्थ का अभिधान, संकेत अथवा व्यंजना 122, याज्ञ० 3144 5. आचरण, व्यवहार, रीति, की जाय (यह शक्तियों अभिषा, लक्षणा और कर्म, कृत्य, जैसा कि सदवृत्त या दुर्वत्त में 6. साघु या व्यंजना के नाम से विख्यात) 17. रचना की शैली सत्य आचरण ..पंच० 41287. माना हा नियम, (यह चार है-कैशिकी, भारती, सात्वती और प्रचलन या कानून, प्रथा, इस प्रकार के नियम या आरभटी)। सम० अनुप्रासः एक प्रकार का प्रचलन का पालन करना, कर्तव्य, रघ० 5.33 अनुप्रास,-दे० काव्य. 9,- उपायः जीविका का 8. गोल घेरा, वृत्त की परिधि 9. छन्द, विशेषकर उपाय,--कषित (वि.) जीविका के अभाव में अत्यन्त मात्राओं की गणना के आधार पर विनियमित (विप० दुःखी- मनु० 8411, चक्रम् राज चक्र पञ्च० जाति) दे० परि० 1 / सम०-अनुपूर्व (वि.) २८१,-छेवः जीविका के साधनों से वञ्चित,-भगः, गोल शुंडाकार,-कु० ॥३५,-~-अनुसारः 1. विहित -~-वैकल्यम् जीविका का अभाव–पञ्च० 16153, नियमों की अनुरूपता 2, छन्द को अनुरूपता, - अन्तः --स्थ (वि.) 1. किसी भी स्थिति या नियुक्ति में 1. अवसर, घटना, बात---अनेनारण्यकवृत्तान्तेन | रहने वाला 2. सदाचारी, अच्छा बर्ताव करने वाला, पर्याकुलाः स्मः - श० 1, रघु० 3 / 66, उत्तर०२।१७ / (स्थः) छिपकली, गिरगिट / 2. समाचार, खबर, गुप्तवार्ता - को नु खल वृत्तान्तः वृत्रः [वृत्+ रक्] 1. एक राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने —विक्रम० 4, रघु० 14187 3. वर्णन, इतिहास, मार गिराया था (वह अन्धकार का मर्तरूप माना कथा, आख्यान, कहानी 4. बिषय, प्रकरण 1. प्रकार, जाता है), दे० 'इन्द्र' 2. बादल 3. अन्धकार 4. शत्रु किस्म 6. ढंग, रीति 7. अवस्था, दशा 8. कुलयोग, 5. ध्वनि 6. पर्वत / सम-अरि:-द्विषु (पुं०) समष्टि 9. विश्राम, अवकाश 10. गण, प्रकृति, इर्वाहः, - शत्रु:-हन् (पुं०) इन्द्र के विशेपण-क्रुद्धऽपि -~-कर्कटी तरवूज, सरदा,--गन्धि (नपुं०) एक प्रकार पक्षिच्छिदि वृत्रशत्री-कु० 120, वाचा हरि का गद्य जो पढ़ने में पद्य जैसा आनन्द दे, चूड,-चौल त्रहणं स्मितेन-७१४६ / (वि.) मंडित, जिसका मुंडन संस्कार हो चुका हो क्या (अव्य) वि+थाल किच्च] 1. बिना किमी -उत्तर०२,-- पुष्पः 1. बेत, बानीर 2. सिरस का पेड़ अभिप्राय के, व्यर्थ, निरर्थक, बिना किसी लाभ के, 3. कदम्ब का पेड़, -फल: 1. बेर, उन्नाव का पेड़ (बहुधा विशेषण की शक्ति से युक्त)-व्ययं यत्र 2. अनार का पेड़, शस्त्र (वि०) जिसने शस्त्र कपीन्द्रसत्यमपि मे बीर्य हरीणां वृथा---उत्तर० विज्ञान में पांडित्य प्राप्त कर लिया है-भट्टि० 9 / 19 / 3145, दिवं यदि प्रार्थयसे वृथा श्रमः-कु० 5 / 45 वत्तिः [वृत्+क्तिन् ] 1. अस्तित्व, सत्ता 2. टिकना, 2. अनावश्यक रूप से 3. मुर्खता से, आलस्य पूर्वक, रहना, रुख, किसी विशेष स्थिति में होना जैसा कि बेलगाम 4. गलत तरीके से, अनुचित रूप से विरुद्धवृत्ति या विपक्षवृत्ति में 3. अवस्था, दशा (समास के आरम्भ में 'वृथा' शब्द का अनुबाद 'व्यर्थ, 4. कार्य, गति, कृत्य, कार्यवाही--शतस्तमक्षणाम- निरर्थक', अनुचित, मिथ्या या आलसी, किया जा निमेषवृत्तिभिः --रघु० 3 / 43, कु. 3 / 73, श० 4115 सकता है। सम.---अट्या अलसता के साथ टहलना, 5. क्रम, प्रणाली, श० 2 / 11 6, आचरण, व्यवहार, सामोद भ्रमण करना, -- आकार: मिथ्या रूप, खाली चालचलन, कार्यपद्धति-कुरु प्रियसखीवृत्ति सपत्नीजने तमाशा,-कथा बेहूदी बात, -जन्मन् (नपुं०) ---श. 4 / 18, मेघ० 8, बैतसीवृत्ति, वकवृत्ति अलाभकर या व्यर्थ जन्म,-दानम् वह उपहार जो आदि 7. पेशा, व्यवसाय, काम-धंधा, रोजगार, जीवन- / प्रतिज्ञात होने पर भी न दिया गया हो,-मति चर्या (प्रायः ससास के अन्त में)-वार्धके मुनिवृत्तीनाम् / (वि०) दुर्वृद्धि, मूर्ख, .. मांसम् वह मांस जो देवताओं For Private and Personal Use Only