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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 849 ) रविः [रु-+६] सूर्य-. सहस्रगुणमत्स्रष्टमादत्ते हि रसं रविः / रघु० 1 / 18 / सम-कान्तः सूर्यकान्तमणि,- जः, -तनयः,-पुत्रः, - सूनुः 1. शनिग्रह 2. कर्ण के विशेषण 3. वालि के विशेषण 4. वैवस्वत मन के विशेषण 5. यम के विशेषण 6. सुग्रीव के विशेषण, -विनं,--वारः, ... वासरः,-वासरम् रविवार, आदित्यवार,-संक्रान्तिः (स्त्री०) सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश। रशना, रसना [अश्+युच, रशादेश:] 1. रस्सी, डोरी 2. रास, लगाम 3. कटिबंध, कमरबंद, स्त्रियों की करधनी---रसत रसनापि तव धनजघनमण्डले घोषयतु मन्मथनिदेशम--गीत० 10, रघु० 7.10, 8.57, मेघ० 35 4. जिह्वा--भामि० 11111 / सम० ---उपमा उपमा अलंकार का एक भेद, यह उपमाओं की एक श्रृंखला है जिसमें पूर्व उपमेय, भागे चलकर उपमान बनता जाता है--दे० सा० द० 664 / / रश्मिः [अश्+मि धातारुट रश+मि वा] 1. डोर, डोरी, रस्सी 2. लगाम, रास, मुक्तेषु रश्मिषु निरायतपूर्व कायाः-श० 18, रश्मिसंयमनात् - श० 1 3. सांटा, हंटर 4. किरण, प्रकाश किरण-श० 7 / 6, नं० 2256, इसी प्रकार 'हिमरश्मि' आदि। सम० -कलापः चव्वन लड़ियों की मोतियों की माला / रश्मिमत् (पुं०) [रश्मि+मतुप्] सूर्य / रस् / (म्वा० पर० रसति, रसित) 1. दहाड़ना, हुह करना, चिल्लाना, चीखना --करीव वन्यः परुषं ररास -रघु० 1678, शि० 3148 2. शब्द करना, कोलाहल करना, टनटन करना, झनझन करना ... राजन्योपनिमंत्रणाय रसति स्फीतं यशोदन्दुभिः .... वेणी० 1125, रसतु रसनापि तव घनजघनमण्डले ---गीत०१०3. प्रतिध्वनि करना, गूंजना। ii (चुरा० उभ० रसयति-ते, रसित) चखना, स्वाद लेना -मद्वीका रसिता भामि० 4 / 13, शि०१०।२७। रसः [रस्+अच्] 1. सार, (वृक्षों का) दूध, रस, इक्षुरसः कुसुमरसः आदि 2. तरल, द्रव कु. 17 3. पानी -सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः रघु० 1119 भामि०२११४४ 4. मदिरा, शराब-मनु०२।१७७, 5. चूंट एक मात्रा, खुराक 6. चखना, रस, स्वाद (आलं० से भी) (वैशेषिक दर्शन के 24 गुणों, में से एक; रस छः हैं:-कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त, और कषाय)--परायत्तः प्रीतेः कथमिव रस वेत्तु पुरुषः-मुद्रा० 3 / 4, उत्तर० 2 / 2 7. चटनी, मिर्च मसाला 8. कोई स्वादिष्ट पदार्थ-रघु० 3 / 4 / 9. किसी वस्तु के लिए स्वाद या रुचि, परान्दगी, इच्छा इष्टे तस्तुन्यपचितरसा: प्रेगराशीभवति / - मेघ०११२ 10. प्रेम, स्नेह,- जरसा यस्मिाहार्यो। 107 रस:-उत्तर० 1339, प्रसरति रसो निर्वतिधनः 6111, 'प्रेम की अनुभूति'-कु० 337 11. आनन्द, प्रसन्नता, खुशी-रघु० 3 / 26 12. लावण्य, अभिरुचि, सौन्दर्य. लावण्य 13. करुणरस, भाव-भावना 14. (काव्य रचनाओं में) रस-नवरसरुचिरा निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति - काव्य. 1, (रस प्रायः आठ है:-शृङ्गारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः। बीभत्सा द्भुतसंज्ञो चेत्यष्टो नाटये रसा स्मताः // परन्तु कभी कभी 'शांत' रस को जोड़ कर नौ रस बना दिये जाते हैं,-निवेदस्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः .. काव्य०४; कभी कभी दसवां रस 'वात्सल्य' और मिला दिया जाता है। प्रत्येक काव्यरचना के रस आवश्यक घटक है, परन्तु विश्वनाथ के मतानुसार 'रस' काव्य की आत्मा है - वाक्यं रसात्मकं काव्यम् --सा० द०३) 15. सत्, सार, तत्त्व, सर्वोत्तम भाग 16. शरीर के संघटक द्रव 17. वीर्य 18. पारा 19. विष, जहरीला पेय, जैसा कि 'तीक्ष्णरसदायिनः' में 20. कोई भी खनिज या धातुसंबंधी लवण / सम०-अजनम् रसोत, एक प्रकार का अंजन, -अम्लः अमलबेत,-अयनम् 1. अमृत, कोई भी औषध जो बढ़ापे को रोक कर जीवन को लम्बा करे, निखिलरसायनमहितो गन्धेनोग्रेण लशन इव-रस० 2. (आलं.) अमृत का काम देने वाला अर्थात् जो मन को तृप्त भी करे साथ ही हर्षित भी करे, आनन्दनानि हृदयकरसायनानि --- मा०६८, मनसश्च रसायनानि-उत्तर०११३६, श्रोत्रं कर्ण आदि 3. रससिद्धि, रसायन श्रेष्ठः पारा, ----आत्मक (वि.) 1. रसीला, रसदार 2. तरल, द्रव,---आभासः किसी रस का बाह्यरूप या केवल प्रतीति 2. किसी रस का अनुपयुक्त स्थान पर वर्णन, ----आस्वादः 1. सत् या रस आदि चखना 2. काव्यरस की अनुभूति, काव्य सौन्दर्य का प्रत्यक्षीकरण --जैसा कि 'काव्यामृतरसास्वादः' में,-इन्द्रः 1. पारा 2. पारसमणि, चिन्तामणि (कहते हैं कि इसके स्पर्श ते लोहा, सोना बन जाता है),-उद्भवम्,--उपलम् मोती,—कर्मन् (नपुं०) उन वस्तुओं को तैयार करना जिनमें पारा इस्तेमाल किया जाता है,-केसरम् कपूर, ---गन्धः, - धम् लोबान की तरह का खुशब्दार गोंद, रसगन्ध,-प्रह (वि.) 1. रसों का ज्ञाता 2. आनन्द मनाने वाला, अः राब, शीरा,-पम् रुधिर,(वि.) 1. जो रस की उत्तमता को परखता है, जो स्वाद जानता है, सांसारिकेषु व सुखेषु वयं रसज्ञाः .....-उत्तर० 2 / 27 2. वस्तुओं के सौन्दर्य को पहचानने में सक्षम (-1) 1. स्वाद का जानकार, भावुक, विवेचक, काव्यमर्मज्ञ, कदि 2. रससिद्धि का ज्ञाता 3. पारे For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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