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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1360 ) स्फुतिः (स्त्री०) [स्फुर+क्तिन् आत्मश्लाघा करना, डींग | स्वर्मणिः सूर्य। मारना, शेखी बघारना। स्वर्यानम् मृत्यु / स्मरोद्दीपन (वि.) कामोद्दीपक, प्रेम का जमाने वाला। स्वोषित अप्सरा / स्मरकथा प्रणयालाप, प्रेमालाप / स्वरा एक प्रकार की संगीत रचना / स्मरशास्त्रम् कामशास्त्र / स्वरोपधातः स्वरभंग। स्मार्तविधिः, -प्रयोगः स्मृतियों में विहित प्रक्रिया। स्वरकम्पः स्वर का हिलना / स्मयदानम् दिखावटी दान / स्वरच्छिद्रम् बांसुरी का स्वरवाला छेद / स्मयनुत्तिः गवं चूर करना / स्वरब्रह्मन् नादब्रह्म, स्मरमान (वि०) जो आश्चर्य करता है। स्वरविभक्तिः स्वरों का पृथक्करण / स्म (भ्वा० पर०) शिक्षा देना। स्वरशास्त्रम् ध्वनिविज्ञान, स्वरविज्ञान / स्मृतम् [स्मृ+क्त स्मरण, याद / स्वरित (वि०) [स्वर+इतन्] 1. यक्त, मिश्रित स्मतमात्र (वि०) जिसको केवल स्मरण ही किया हो, / 2. उच्चरित, ध्वनित 3. उदात्त अनुदात्त के बीच का ज्योंही सोचा त्योही। स्वर, मध्यमस्वर। स्मतितन्त्रम् विधिग्रन्थ / स्वर्गगतिः-गमनम मृत्य, स्वर्ग चले जाना। स्मृतिविनयः अपने कर्तव्य का ध्यान दिलाने के लिए अभि- स्वर्गमार्गः 1. स्वर्ग जाने का मार्ग 2. स्वर्गगा। प्रेत डांट फटकार। स्वर्णरेतस् (पुं०) सूर्य / / स्यन्दः [स्यन्द्+घञ] 1. बूंद-बूंद टपकना, पसीना 2. आँख स्वल्पाइगलि: कनिष्ठिका, कन्नो अंगुलि / का रोग विशेष 3. चन्द्रमा / स्वल्पदृश (वि.) अदूरदर्शी संस् (भ्वा० आ०) नष्ट होना ठहरना। स्वल्पस्मति (वि.) जिसे बहुत कम याद रहे। स्वस्तहस्त (वि०) जिसने पकड ढीली कर दी हो। . स्वस्तिकर्मन (नपुं०) कल्याण करना / नवन्मध्यः मत्यवान रत्न जिसके बीच से पानी झरता स्वस्तिकारः स्वस्ति का उच्चारण करने वाला बंदी, दिखाई देता है। चारण। बुग्जिहः अग्नि, आग। स्वस्तिकः स्वस्तिपाठ करने वाला, चारण। स्रोतस (नपुं०) 1. शरीर के रंध्र (जो पुरुषों में 9 तथा स्वागतप्रश्न: मिलने पर स्वास्थ्यादि के संबंध में पूछना, स्त्रियों में 11 होते हैं) 2. वंश परम्परा। कुशल क्षेम की पृच्छा। स्वाजित (वि०) अपना कमाया हुआ। स्वावः (काव्य के श्रवण या पठन से) रसानुभव / स्वानन्दः अपमे, आप में आनन्द / स्वादुपिण्डा पिंडखजूर। स्वकर्मस्थ (वि.) अपने कर्म में लीन, अपने काम में व्यस्त। स्वादुललो मीठा नीबू / स्वकृतम् अपना किया हुआ कार्य। स्वापव्यसनम् निद्रालता। स्वगोचर (वि०) अपने कार्य तक ही सीमित / स्वामिन् (पुं०) 1. यज्ञ का यजमान 2. मन्दिर में स्थापित स्वबीजः आत्मा। देवमूति। स्वमनीषा अपना मत या विचार / स्वाम्यम् (शरीर और आत्मा की) स्वस्थ स्थिति। स्वयुतिः आधाररेखा जो कर्ण तथा लम्ब रेखा के सिरों को स्वायस (वि.) जो अपने ही अधिन हो, अपने ही मिलाती है। ___ अधिकार में हो। स्वतन्त्रता 1. स्वातन्त्रय, स्वाधीनता 2. मौलिकता। | स्विक्ति (वि.) 1. जिसे पसीना निकल आया हो, पसीने स्वप्नान्तिकम् स्वप्नकालिक चेतना / से तर 2. पिघला हुला पसीजा हुआ। स्वप्नज (वि.) नीद में उत्पन्न / स्विष्ट (वि०) वांछित, प्रिय, सुपूजित / स्वयमधिगत (वि.) 1. खुद प्राप्त किया हुआ 2. स्वयं स्वेदनयन्त्रम् जिससे बफारा दिया जाय, पसीना लाने वाला पढ़ा हुआ। __ यंत्र। स्वयमीश्वरः वह जो अपना पूर्ण प्रभु हो, परमेश्वर / स्वरकथा अबाधित वार्तालाप / स्वयमद्धत (वि.) स्वेच्छा से तैयार / स्वरविहारिन् इच्छानुसार भ्रमण करने वाला। स्वरतिक्रमः स्वर्ग को लांधकर वैकुण्ठ पहुँचना / स्वरिणी चमगादड़। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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