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( ३८७ ) हिलना-डुलना, सक्रिय होना, जीवन के चिह्न दिखलाना +इन, चित्रा---ठक, इनि वा] चैत्रमास, चैत का --यदा स देवो जागर्ति तदेदं चेष्टते जगत्---मनु० महीना। १।५२ 2. प्रयल करना, कोशिश करना, प्रयास करना, मंत्री [चित्रा-+अण+की ] चैत्र मास की पूर्णिमा । संघर्ष करना 3. अनुष्ठान करना, (कुछ कार्य) करना चैधः [चेदिष्यों ] शिशुपाल, अभियं प्रतिष्ठासुः 4. व्यवहार करना-वि--, 1. हिलना-डुलना, चलना- शि० २।१। । फिरना, गतिशील होना, इधर-उधर फिरना 2. कार्य लम् [चेल+अण् ] कपड़े का टुकड़ा, वस्त्र। सम. करना, व्यवहार करना ।
। ---बाव: धोबी। चेष्टकः [चेष्ट् + वल ] संभोग का आसन विशेष, रतिबंध। चोक्ष (वि.) [चक्ष+घा, पूषो. साधुः] 1. पवित्र, वेष्टनम् [ चेष्ट् + ल्युट् ] 1. गति 2. प्रयत्न, प्रयास । स्वच्छ 2. ईमानदार 3. होशियार, दक्ष, कुशल चेष्टा [चेष्ट्+अ+टाप् ] 1. चाल, गति--किमस्माकं 4. सुखकर, रुचिकर, प्रसन्नता देने वाला।
स्वामिचेष्टानिरूपणेन-हि०३ 2. संकेत, कर्म-चेष्टया चोचम् [ कोचति आवृणोति-कुच+अच् पृषो. ] भाषणेन च नेत्रवक्त्रविकारश्च लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मन:-मनु०
| 1. वल्कल, छाल 2. चमड़ा, खाल 3. नारियल। ८५२६ 3. प्रयत्न, प्रयास 4. व्यवहार । सम-नाशः | चोटी--- [चुट-+अण्+डीप् ] छोटा लहंगा, साया पेटी. सृष्टि का नाश, प्रलय,-निरूपणम् किसी व्यक्ति की |
__ कोट । गतिविधि पर आँख रखना।।
चोड: [ चोडति संवृणोति शरीरम्-चुड़+अ+ोप्] चेष्टित (भू० क. कृ.) [चेष्ट्+क्त ] हिला, चला, __ चोली अंगिया।
हिला-डुला,--तम् 1. चाल, अंगभंगिमा, कर्म 2. क्रिया, चोदना |चुद् ।-ल्युट्, स्त्रियां टाप् च] 1. भेजना, निर्देश कर्म, व्यवहार-कपोलपाटलादेशि बभूव रघचेष्टितम देना, फेंकना 2. स्फूति देना, आगे हांकना 3. प्रोत्सा-रघ० ४।६८, तत्तत्कामस्य चेष्टितम्--मनु० २१४,
हन देना, उकसाना, उत्साह बढ़ाना, उत्तेजना प्रदान काम करना।
करना 4. उपदेश, पुनीत आदेश, वेदविहित विधि। चैतन्यम् [चेतन+ध्या ] 1. जीव, जीवन, प्रज्ञा, प्राण,
सम० --गुड खेलने के लिय गेंद ।
चोदित (भू० क. कृ०) [ चुद - णिच+क्त] 1. भेजा, संवेदन 2. (वेदान्त द० में) परमात्मा जो सभी प्रकार को संवेदनाओं का स्रोत और सब प्राणियों का मूल
निर्दिष्ट 2. स्फूर्ति दिया गया, हांका गया 3. उकसाया तत्व समझा जाता है।
गया, प्रोत्साहित किया गया, उत्तेजित किया गया बैत्तिक (वि.) [चित्त-ठक ] मानसिक, बौद्धिक ।
4. तर्क के रूप म सामने प्रस्तुत किया गया। चंत्यः,--त्यम् [चित्य+अण] 1. सीमा चिह्न बनानेवाला चोद्यम् [चुद्+ण्यत् ] 1. आक्षेप करना, प्रश्न पूछना पत्थरों का ढेर 2. स्मारक, समाधि-प्रस्तर 3. यज्ञ
2. आक्षेप 3. आश्चर्य। मण्डप 4. धामिक पूजा का स्थान, वेदी, वह स्थान | चो(चौ)रः [चु+णिच+अच, चुरा+ण] चोर, लटेरा जहाँ देवमूर्ति प्रस्थापित रहती है 5. देवालय 6. वौद्ध -सकलं चोर गतं त्वया गृहीतम् - विक्रम० ४१६, और जैन मन्दिर 7. गलर का वृक्ष, या सड़क के
___ इन्दीवरदलप्रभाचोरं चक्षुः-भर्तृ. ३१६७। किनारे उगने वाला गूलर का पेड़-मेघ० २३ (रथ्या
चो (चौ) रिका [चोर+ठन्+टाप्] चोरी, लूट । वृक्ष - मल्लि.)। सम०-तरुः, द्रमः,--वक्षः किसी | चोरित (वि.) [चु+णिच्+क्त ] चुराया गया, लूटा पवित्र स्थान पर उगा हआ उदुम्बर अर्थात् गूलर का
गया। पड़, -पाल: देवालय का संरक्षक,-मुखः साधु-संन्यासी | चोरितकम् [ चोरित+कन् ] 1. चोरी, चौर्य, स्तेय का जलपात्र या कमण्डल।
___2. चुराई हुई वस्तु। चंत्रः [चित्रा+अण् ] एक चान्द्र मास का नाम जिसमें कि | चोलः (पुं०, ब० व.) [चल+घा ] दक्षिण भारत में
चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र -पुंज में स्थित रहता है, (यह एक देश का नाम, वर्तमान तंजीर, -:--ली, महीना मार्च और अप्रैल के अंग्रेजी महीनों में आता | अंगिया चोली। है) 2. वौद्ध भिक्षु,-श्रम मन्दिर, मृतक की समाधि। चोलकः [चोल-+के+क] 1. वक्षस्त्राण 2. छाल या सम० --आवलिः (स्त्री०) चैत्र की पूर्णिमा, - सखः | वल्कल 3. चोली। कामदेव का विशेपण।।
चोलकिन् (पुं०) [चोलक+इनि ] 1. वक्षस्त्राण से सुसचैत्ररथम्,-चम् [ चित्ररथ +अण, प्य वा] कुबेर के ज्जित सैनिक 2. संतरे का पेड़ 3. कलाई।
उद्यान का नाम--एको ययौ चैत्ररथप्रदेशान् सौराज्य- | चोल (लो)ण्डमः [चोलस्य अ (उ) ण्डुक इव, प० त०, रम्यानपरो विदर्भान-रघु० ५।६०,५०।
शक. पर०] साफा, पगड़ी, किरीट, मकुट। वैत्रिः, पैत्रिकः, पैत्रिन् (पुं०) [चैत्री विद्यतेऽस्मिन्-मंत्री बोषः [ चुप् +घञ्] 1. चूसना, (आयु. में) सूजन ।
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