________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 978 ) घेराबन्दी करना,—अगुलिवेष्टनम्, 1. अंगूठी / वैकल्पम् [विकल्प + अण् ] 1. ऐच्छिकता 2. संशय, 2. कुंडलित होना, गोल मरोड़ी लेना,--रघु० 4 / 38. संदिग्धता 3. अनिश्चय, असमंजस / 3. लिफाफा, लपेटन 4. ओढ़नी, ढकना, संदूक 5. पगड़ी, | वैकल्पिक (वि.) (स्त्री० -की) [विकल्प+ठक ] विमाट-अस्पष्टालकवेष्टनौ --रघु० 1142, शिरसा 1. ऐच्छिक 2. संदिग्ध, ससंशय, अनिश्चित, अनिर्णीत। वेष्टनशोभिना-८1१२ 6. बाड़ा, घेर-क्रीडाशैल: | वैकल्यम् [विकल---ष्या] 1. त्रुटि, कमी, अधूरापन कनककदलीवेष्टनप्रेक्षणीय:-मेघ०७७ 7. तगडी, कमर- 2. अङ्गभङ्ग, विकलाङ्ग या पंग होना 3. अक्षमता बन्द 8. पट्टी 1. बाहरी कान 10. गुग्गुल 11. नृत्य 4. विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्तेजना, 5. अनस्तित्व। की विशेष मुद्रा। वंकारिक (वि०) (स्त्री०-की) [विकार+ठक] 1. विकारबेष्टनक: [ वेष्टन+कन् / संभोग के अवसर की विशेष | विषयक 2. विकारशील 3. विकृत। अंगस्थिति। वैकालः [विकाल+अण] तीसरा पहर, मध्याह्नोत्तर काल, बेष्ठित (भू० क० कृ०) [ वेष्ट्+क्स ] 1. घिरा हुआ, | सायंकाल / घेरा हुआ, चारों ओर से लपेटा हुआ, बन्द किया | वैकालिक ( वि० ) ( स्त्री०-को ) वैकालीन ( वि० ) हुआ 2. लिपटा हुआ, वस्त्रों से सुसज्जित किया हुआ विकाल+ठक, ख वा] सायंकालसम्बन्धी या सायं3. ठहराया हुआ, रोका हुआ, विघ्न डाला हुआ | काल के समय घटित होने वाला। 4. घेराबन्दी किया हुआ। ठः विकूण्ठायां मायायां भव:-- अण] 1. विष्णु का बेल्पः, वेष्यः [ विषेः प: ] जल, पानी। विशेषण 2. इन्द्र का विशेषण 3. तुलसी का पौधा, बेव्याः दे० 'वेश्या'। -ठम् 1. विष्णु का स्वर्ग 2. अभ्रक / सम०-चतुबेसर| वेस+अरन् ] खच्चर-शि० 12 / 19 / वंशी कार्तिकशुक्ला चौदस, लोकः विष्णु की दुनिया / बेस (श) बारः [ वेस्++अण् ] गर्म मसाला, (जीरा, वकृत (वि.) (स्त्री०----ती) [विकृत-अण्] 1. परि राई, मिर्च, अदरक आदि के योग से तैयार किया / वर्तित 2. बदला हुआ,-सम् 1. परिवर्तन, अदल-बदल, गया मसाला)। हेर-फेर 2. अरुचि, जगप्सा, घिनौनापन 3. अवस्था बेह, (म्या० आ. वेहते) दे० 'बेह'। या सूरत शक्ल में परिवर्तन, विरूपता आदि..-नै० बेहत् (स्त्री०) [ विशेषेण हन्ति गर्भम्-वि+हन्+ 4 / 5 4. अपशकुन, कोई भी अनिष्टसूचक घटना अति ] बांझ गौ। ....तत्प्रतीपपवनादि वैकृतं प्रेक्ष्य रघु० 11162 / बेहार-विहारः, पृषो०] एक देश का नाम, बिहार / सम० बिवर्तः दुर्दशा, दयनीय दशा, कष्टग्रस्त-कृतबेझ (भ्वा० पर० वेलते) जाना, हिलना-जुलना। विवर्तदारुणः-मा० 1139 / / (म्बा. पर० वायति) 1. सूखना, शुष्क होना | वैकृतिक (वि.) (स्त्री०-की) विकृति+ठक] 1. परि2. म्लान, निढाल, अवसन्न / . वर्तित, संशोधित 2. विकृति सम्बन्धी (सांख्य में)। (अव्य.) [वा+है ] स्वीकृति या निश्चयवाचक | वकृत्यम् [विकृत+ध्यम ] 1. परिवर्तन, अदल-बदल भव्यय (निःसन्देह, सचमुच, वस्तुतः) परन्तु केवल | 2. दुःखद स्थिति, दयनीय दशा 3. जगप्सा। पूरक के रूप में प्रयुक्त -आपो वै नरसूनवः --मनु० वकान्तम विक्रान्त्या दीव्यति--विक्रान्ति+अण] एक 1 / 10, 2 / 231, 9 / 49, 11177, यह कभी कभी प्रकार का रत्न / सम्बोधन के रूप में भी प्रयुक्त होता है तथा कभी कभी [क्लवं वैक्लव्यम [विक्लव---अण, व्या वा] 1. गड़बड़ी, अनुनय को प्रकट करता है। विक्षोभ, घबराहट 2. हुल्लड़, हलचल 3. कष्ट, दुःख, पातिक (वि.) (स्त्री० -की) [विंशतिक+अण् ] शोक, रंज श० 4 / 6, वेणी० 5, मृच्छ० 3 / बीस मैं मोल लिया हुआ। अंबरी [विशेषेण खं राति-रा+क-अण+कीप्] 1. स्पष्टकक्षम् [विशेषेण कक्षति व्याप्नोति-अण 1 1. एक उच्चारण, ध्वनि-उत्पादन, दे०कु०२।१७ पर मल्लि. माला जो यज्ञोपवीत की भांति एक कंधे के ऊपर से 2. वाशक्ति 3. वाणी, भाषण / तथा दूसरे कंधे के नीचे से धारण की जाती है | वैखानस (वि०) (स्त्री०-सी) [वैखानसस्य इवम्-अण्] 2. उत्तरीय वस्त्र, चोगा, ओढ़नी। किसी वानप्रस्थ, सन्यासी, या भिक्ष आदि से सम्बद्ध, कक्षकम, कक्षिकम [वैकक्ष+कन्, ठन् वा ] यज्ञोपवीत --वैखानसं किमनया वतमाप्रदानाद व्यापाररोधि की भाति बायें कन्धे के ऊपर तथा दायें कन्धे के नीचे मदनस्य निषेवितव्यम् श० श२७, सः वैरागी, से पहनी आने वाली माला। वानप्रस्थ, तीसरे आश्रम में वास करने वाला ब्राह्मण काटिकः (पुं०) जौहरी। -~-रघु० 14128, मट्टि० 3 / 49 / पर्सनः [ विकर्तनस्यापत्यम्-अण् ] कर्ण का नाम / वंगुष्यम् [विगुण+ष्य [ 1. गुण या विशेषण का अभाव For Private and Personal Use Only