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( ३६३ )
अथवा ठोसपन, मूलम् (गणित में ) घन राशि का मूल अंक, रस: 1. गाढ़ा रस 2. अर्क गाढ़ा 3. कपूर 4. जल, – वर्गः घन का वर्ग, (गणित में ) छठा पात, - धर्मन् ( नपुं०) आकाश धनवत्मं सहस्रवेव कुर्वन् - कि० ५११७, वल्लिका, वल्ली बिजली, घासः एक प्रकार का कद्दू, कुम्हड़ा, वाहन: 1. शिव 2. इन्द्र, श्याम ( वि०) 'बादल' की भांति काला' गहरा काला, पक्का रंग, ( -मः ) 1. राम और कृष्ण का विशेषण, समयः वर्षाऋतु सारः 1. कपूर-धनसारनीहारहार- दश० १, (श्वेत पदार्थों में उल्लेख ) 2. पारा 3. जल, – स्वनः मेघगर्जन, – हस्तसंख्या (गणित में ) खुदाई की विट्टी आदि नापने की माप ( एक हाथ लंबा, एक हाथ मोटा या चौड़ा और एक हाथ ऊँचा ढेर ) ।
घनाघनः [हन् + अच्, हन्तेर्घत्वम् दित्वमभ्यासस्य आक् च ] 1. इन्द्र 2. चिड़चिड़ा, या मदमस्त हाथी 3. पानी से भरा हुआ या बरसाने वाला बादल ।
घरट्ट: [ घरं सेकम् अदृति अतिक्रामति- घर | अट्ट् + अणू, शक० पररूपम् ] खरांस, घराट, चक्की । घर (वि०) [घर्ष +रा+क] 1. अस्पष्ट, घर्घराट करने
वाला, गरगर शब्द करने वाला - घर्घररवा पारश्मशानं सरित मा० ५/१९ 2. कलकल ध्वनि करने वाला, (बादलों की भांति ) गड़गड़ शब्द करने वाला,
-र: 1. अस्पष्ट कलकल ध्वनि, मन्द बड़बड़ या गरगर की ध्वनि 2. कोलाहल, शोर 3. दरवाजा, द्वार 4. हंसी, अट्टहास 5. उल्लू 6. तुषाग्नि । घरा - [ धर+टाप्, ङोष वा] 1. घुंघरू जो आभूषण की भांति काम आयें 2. घुंघरुओं की गर्गर ध्वनि 3. गंगा 4. एक प्रकार को वीणा ।
घरिका [ घर + न् +- टाप् ] 1. आभूषण की भांति
प्रयुक्त होने वाले घुंघरू 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र । घरितम् [घर्धर + इतच् ] सूअर के घुरघुराने का शब्द । धर्मः [ घरति अङ्गात् घृ + मक् नि० गुणः ] 1. ताप, गर्मी
-- हि० ११९७ २. गर्मी को ऋतु, निदाघ — निःश्वासहार्याशुकमाजगाम धर्मः प्रियावेशमिवोपदेष्टुम् - रघु० १६।४३ 3. स्वेद, पसीना - शि० १।५८ 4. कड़ाह, उबालने का पात्र । सन० - अंशुः सूर्य ० ५।१४, ---अन्तः वर्षाऋतु - अम्बु, अम्भस् ( नपुं०) स्वेद, पसीना, श० १३०, मा० १।३७, चचिका धाम, पित्त, घमौरी (दबे हुए पसीने और गर्मी से शरीर पर पैदा होने वाले छोटे-छोटे दाने ), - दीधितिः सूर्य --- रघु० ११।६४, धुतिः सूर्य- कि० ५१४१, पयस् ( नपुं०) स्वेद, पसीना - शि० ९।३५ । घ, घर्षणम् [ष +घञ, ल्युट् वा] 1. रगड़, घिसर 2. पीसना, चूरा करना ।
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घस् (भ्वा० अदा० --- पर० - घसति, घस्ति, घस्त) खाना, निगलना, (यह अधूरी धातु है. 'अद्' धातु के कुछ लकारों में ही इसके रूप बनते हैं ) ।
घस्मर ( वि० ) [ घस् + कमरच्] 1 खाऊ, पेटू - दावानलो घस्मरः -- भामि० १।३४ 2. निगल जाने वाला, हड़प करने वाला -- दुपदसुतचमूघस्मसे द्रौणिरस्मि - वेणी० ५/३६ ।
(०) [घस् + रक्] पीड़ाकर, क्षतिकर, खः 1. दिन -घस्त्रो गमिष्यति भविष्यति सुप्रदोषम् - सुभा० 2. सूर्य महावी० ६६८, - स्त्रम् केसर, जाफरान । घाट: -टा [ घट् + अच्, स्त्रियां टाप्] गर्दन का पिछला
भाग ।
घाण्टिकः [घंटा + ठक् ] 1. घंटी बजाने वाला 2. भाट या चारण 3. धतूरे का पौधा ।
घातः [हन् + णिच्+घञ] 1. प्रहार, आघात, खरौच, चोट ज्याघात - श० ३।१३, नयनशरघात गीत० १०, इसी प्रकार पाणिघात, शिरोघात आदि 2. मार डालना, चोट पहुँचाना, संहार करना, वध करना -वियोगो मुग्धाक्ष्याः स खलु रिपुधात विधिरभूत् - उत्तर० ३।४४, पशुघातः - गीत० १, याज्ञ० २ १५९, ३।२५२ 3. बाण 4. गुणनफल । सम० - चन्द्रः अशुभ राशि पर स्थित चन्द्रमा – तिथिः अशुभ चान्द्र दिन, मक्षत्रम् अशुभ नक्षत्र, बार: अशुभ दिन,-स्थानम् बूचड़खाना, वधस्थान ।
घातक ( वि० ) [ हन् + ण्वुल् ] मारनेवाला, संहार करने
वाला, हत्यारा, संहारक, कातिल, बघ करने वाला । घातन ( वि० ) [ हन् + णिच् + ल्युट् ] हत्यारा, क़ातिल,
----नम् 1. प्रहार करना, मार डालना, हत्या करना, वध करना, ( यज्ञ में ) पशु बलि देना । घातिन् (वि०) (स्त्री० मी) [हन् + णिच् + णिनि ]
1. प्रहार करने वाला, मारने वाला 2. (पक्षियों को) पकड़ने वाला या मारने वाला 3. विनाशकारी । सम० -- पक्षिन्, -- विहंग: बाज, श्येन ।
धातुक (वि०) ( स्त्री० की) [हन् + णिच् + उकञ ]
1. मारने वाला, संहारकारी, अनिष्टकर, वोट पहुँचाने वाला 2. क्रूर, नृशंस, हिंस्र । घात्य ( वि० ) [ हन् + णिच् + ण्यत् ! मारे जाने के योग्य, वह व्यक्ति जिसे मार देना चाहिए । धार: घृ + घन् । छिड़कना, तर करना । धातिकः घृतेन निर्वृतः ठज्ञ ] घी में तले हुए पूड़े
(विशेषतः जिनमें छिद्र होते हैं ) ( इन्हीं को देखकर पंचतंत्र में मूर्ख पंडितों ने कहा था--छिद्रेष्वनर्था बहुलीभवन्ति ) ।
घासः [ घस् +घञ् ] 1. आहार 2. गोचर भूमि या चरागाह का घास — घासाभावात् - पंच० ५, घासमुष्टि परगवे
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