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( ३६४ ) दद्यात् संवत्सरं तु य:--महा० । सम०-कुन्वम्, | ३।२ । उद- उच्च स्वर से घोषणा करना, सार्व--स्थानम् चरागाह ।
जनिक रूप से घोषणा करना, ii (भ्वा०-आ०-घुषते) घु (भ्वा० आ०-धवते, घुत) शब्द करना, हल्ला मचाना । सुन्दर या उज्ज्वल होना। घुः [घु+क्लिप्] कबूतर की गुटर गूं।
घुसणम् [धष+ऋणक, पृषो०] केसर, जाफ़रान--यत्र धुढ़ (तुदा० पर० घुटति, घुटित) 1. फिर प्रहार करना, स्त्रीणां मसृणघुसृणालेपनोष्णा कुचश्रीः - विक्रम
बदला लेने के लिए प्रहार करना, मुक़ाबला करना १८।३१। 2. विरोध करना, ii (म्वा० आ०-घोटते)घकः [घू इत्यव्यक्तं कायति-घू+के+क] उल्लू । सम० 1. वापिस आना, लौटना 2. वस्तु विनिमय करना, -अरिः कौवा। अदला-बदली करना।
पूर्ण (भ्वा० आ० --तुदा० पर०-घूर्णते, घूर्णति, घृणित) घटः, घुटिः,-टी, (स्त्री०) धुटिकः,--का [घट+अच, । इधर-उधर लुढ़कना, इधर-उधर घूमना, चक्कर
इन् वा, घुटि+डीष, कन स्त्रियां टाप वा] टखना। काटना, मुड़ना, हिलाना, लिपटना, लड़खड़ाना घुणां (भ्वा० आ०, तुदा० पर--घोणते, धुणति, धुणित) ---योषितामतिमदेन जपूर्णविभ्रमातिशयषि वषि
लुढ़कना, चक्कर खाना, लड़खड़ाना, अटेरना, -शि० १०॥३२, भयात्केचिदणिपु:- भट्टि० १५।३२, ii (भ्वा० आ०) लेना, प्राप्त करना।
११८, शि० ११११८ अद्यापि तां सुरतजागरघुणः [धुण+क] लकड़ी में पाया जाने वाला विशेष प्रकार घूर्णमाना-चौर०५, प्रेर०-घूर्णति–ते हिलाना, का कीड़ा । सम०---अक्षरम,---लिपिः (स्त्री०) लकड़ी
अटेरना या लपेटना-नयनान्यरुणानि चूर्णयन्-कु० या पुस्तक के पत्रों में कीड़ों के द्वारा बनाई हई रेखाएँ
४।१२, शि०२।१६, भर्तृ० १२८९, (आ, तथा वि जो कुछ-कुछ अक्षरों जैसी प्रतीत होती है। न्याय
उपसर्ग के लग जाने पर भी धातु का वही अर्थ रहता दे० 'न्याय' के अन्तर्गत । घुण्टः, घुम्टकः, धुष्टिका [घुण्ट+क, घुण्ट+कन्, घुण्टक+ घूर्ण (वि.) [पूर्ण+अच्] हिलाने वाला, इधर-उधर टाप् इत्वम्] टखना।
चलने-फिरने वाला । सम०-वायु: बवण्डर । घुण्डः [घुण+ड, नि०] भौंरा।
घूर्णनम्,-ना घूर्ण-ल्युट]-हिलाना-डुलाना, लपेटना, घुर् (तुदा० पर०-घुरति, धुरित) 1. शब्द करना, | चक्कर खाना, मुड़ना, घूमना-मौलिघूर्णनचलत्
कोलाहल करना, खुर्राटे भरना, फुफकारना, (सूअर __-गीत० ९, घूर्णनामात्रपतनभ्रमणादर्शनादिकृत्कुत्ते आदि का) घुरघुराना----कः कः कुत्र न घुर्धरायित- सा० द०। धुरीघोरो घुरेच्छूकरः-का० ७ 2. डरावना बनना, घृ । (भ्वा० पर० घरति, घृत) छिड़कना । भयंकर होना 3. दुःख में चिल्लाना ।
ii (चुरा० उभ०---धारयति –ते, धारित) छिड़काव धुरी [धुर्-+कि+डोष्] नाथना, (विशेषकर सूअर की । करना, गीला करना, तर करना, अभि---, छिड़कना, थूथन) -घुर्घरायितघुरोघोरो धुरेच्छूकरः .. काव्य०
आ---, छिड़काव करना ।
घृण (तना० पर०-- -घृणोति, घृण्ण) चमकना, जलना । घुघुरीः [घुर् इत्यव्यक्तं धुरति-धुर+घुर+] 1. चोलर, | घृणा [ +न+टाप् ] दया, तरस, सुकुमारता--ता चिल्लड़ (एक प्रकार का कोड़ा) 2. खुर्राटे भरना,
विलोक्य वनितावधे घृणां पत्रिणा सह ममोच राघवः गुर्राना, सूअर आदि जानवर के गले से निकलने वाली
---रघु० ११११७, ९६८१, कि० १५॥१३ 2. ऊब, आवाज ।
अरुचि, घिन... तत्याज तोपं परपुष्टघुष्टे घृणां च घुर्धर [घुघुर-+-अच्-+-डीष] सूअर की आवाज़ ।
वीणाक्वणिते वितेने नै० ३।६०, ११२०, रघु. घुलघुलारयः ['घुलबुल' इत्यव्यक्तमारीति-घुलघुल+आ |
११।६५ 3. झिड़की, निन्दा । +-+अन् । एक प्रकार का कबूतर।
घृणाल (वि.) [ घृणा+आलुच् ] सकरुण, दयापूर्ण, घुष । (भ्वा०पर०, चुरा० उभ० -- घोषति घोषयति--ते, मद्-हृदय ।
घुषित, घुष्ट, घोषित) 1. शब्द करना, कोलाहल करना धुणिः [ +नि, नि.] 1. गर्मी, धूप 2. प्रकाश की 2. ऊँचे स्वर से चिल्लाना, सार्वजनिक रूप से घोषणा | किरण 3. सूर्य 4. लहर (नपं०) जल । सम---निधिः करना--स स पापादते तासां दुष्यन्त इति घुष्यताम् सूर्य। ----श० ६।२२, घोषयतु मन्मथनिदेशम्--गीत० १०, घतम् धक्त] 1. घी, ताया हुआ मक्खन--(सपिविलीनइति घोफ्यतीव डिडिमः करिणोहस्तिपकाहत: क्वणन् माज्यं स्यात् घनीभूतं घृतं भवेत्--सा०) 2. मक्खन --हि० २६८६, रघु० ९।१०, आ--, उच्च स्वर से 3. जल। सम०-अन्न:-अचिः (पु०) दहकती रोना, सार्वजनिक रूप से घोषणा करना-भट्टि हुई आग, -- आहुतिः (स्त्री०) घी को आहुति,--आह्वः
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