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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५९ ) पदं न घोरा:-भर्तृ० २१८३, भग० १८११५, मनु० । न्यासिन् (पु.) [न्यास+इनि ] जिसने अपने समस्त २।१५२, ९।२०२, रघु० २।५५, कि० १४१७, कु० सांसारिक बंधनों को काट डाला है, संन्यासी। ६६८७ 2. सामान्य, प्रचलित। | न्यु (न्यू) ख (वि०) ] नि+उङख्+घञ्] 1. मनोहर, न्यासः [नि+अस् । धा ] 1. रखना, स्थापित करना, | सुन्दर, प्रियं 2. उचित, ठीक । आरोपण करना-तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसु-रधु० | न्यग्ज (वि.) । नि--उब्ज+अच ] 1. नीचे की ओर २१२, कु. ६५०, चरणन्यास, अंगन्यास आदि 2. झुका हुआ, या मुड़ा हुआ, मह के बल लेटा हुआ अतः कोई भी छाप, चिह्न, मोहर, ठप्पा, अतिशस्त्र -ऊॉर्पित न्युजकटाहकल्पे (व्योम्नि)--नै नखन्यासः-रघु० १२०७३, 'जहाँ नखचिह्न, शस्त्र २२१३२ 2. झुका हुआ, टेड़ा 3. उन्नतोदर 4. कुबड़ा, चिह्नों से,भी बढ़ गये, दंतन्यास: 3. जमा करना 4. ---उजः बड़ या बरगद का पेड़। सम-खङ्गः खांडा, धरोहर, अमानत प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा-श० बक्र खड्ग। ४।२१, रघु० १२१८, याज्ञ० २०६७ 5. सौंपना, बचन न्यून (वि.) [नि+ऊन्+अच् ] 1. कम किया हुआ, बद्ध होना, सिपुर्द करना, हवाले करना 6. चित्रित घटाया हुआ, छोटा किया हआ 2. सदोष, घटिया, करना, लिख रखना 7. छोड़ना, उत्सर्ग करना, त्यागना, तिलांजलि देना---शस्त्र', भग० १८।२ 8. हीन, अभावग्रस्त, रहित या विहीन-जसा कि अर्थ न्यून में 3. कम (विप० अधिक)--याज्ञ० २१११६ सम्मख रखना, घटाना 9. खोद कर निकालना, ६. सदोष (किसी अंग से) पाद 5. नीच, दुष्ट, (पंजे आदि से) पकडना 10. शरीर के भिन्न भिन्न अंगों में भिन्न भिन्न देवताओं का ध्यान जो सामान्य दुर्वत, निद्य,-नम् (अव्य.) कम, कम मात्रा में। सम०-अंग (वि०) अपांग, विकलांग,-अधिक रूप से मंत्र पाठ के साथ २ तदन रूप हावभाव सहित सम्पन्न किया जाता है। सम०-~-अपह्नवः किसी (वि०) कम या ज्यादह, असमान,-धी निर्बुद्धि, अज्ञानी, मूर्ख। धरोहर का प्रत्याख्यान करना,-धारिन् (पुं०) धरोहर रखने वाला, रहन रखने वाला। | न्यूनयति (ना० धा० पर०) घटना, कम करना । प (वि.) [पा+क] (समास के अन्त में प्रयुक्त ] 1. 1 भूना हुआ, उबाला हुआ-जैसा कि 'पक्वान्न' में पीने वाला, जैसा कि 'द्विप' 'अनेकप' में 2. चौकसी। 2. पचा हुआ 3. सेका हुआ, गरम किया हुआ, तपाया करने वाला, रक्षा करने वाला, हकमत करने वाला। हुआ (विप० आम) पक्वेष्टकानामाकर्षम्-मृच्छ । जैसा कि 'गोप' 'नप' और 'क्षितिप' में-पः 1. वायु ३ 4. परिपक्व, पक्का, पक्वबिम्बाधरोष्ठी मेघ० हवा. पत्ता 3. अंडा । ८२ 5. सुविकसित, सुपूरित, परिपक्व जैसा कि पक्कणः [पचति श्वादिनिकृष्ट मांसमिति—पच+क्विप 'पक्वधी' में 6. अनुभवशील, बुद्धिमान् 7. (फोड़े को) =-पक्=शवरः तस्य कणः कोलाहलशब्दो यत्र ] 1. भांति) पका हुआ चिसमें पोप पड़ने वाली हो 8. चांडाल का घर बर्बर या जंगली आदमी का घर । सफेद (बाल) 9. नष्ट, क्षीयमाण विनाश के अन्त पक्तिः (स्त्री०) [ पच-+क्तिन् ] 1. पकाना 2. पचना, पर, अपनी मृत्यु का स्वागत करने के लिए पक्का । हाजमा या पाचन शक्ति 3. पक जाना, परिपक्व सम-अतिसारः पुरानी पेचिश,-अन्नम् मसाला होना, परिराक्वावस्था विकास 4. प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा । आदि डालकर बनाया गया भोचन,-आशयः पेट, सम० -शुलम् अजीर्ण के कारण पेट में होने वाला उदर,-इष्टका पकी हुई ईंट,ष्टकचितम् पक्की दर्द, उदर पीड़ा। ईंटों से निर्मित भवन, कृत् (वि.) 1. पकाने वाला, पक्त (वि.) [ पच्+तुच् ] 1. रसोइया पाचक 2. पकाने 2. परिपक्व होने वाला, रसः शराब, मदिरा-वारि वाला 3. उद्दीपक, पचाने वाला--(पुं०) जठराग्नि । (नपुं०) कांजी का पानी। पक्तम् [ प +ष्ट्रन् ] 1. यज्ञाग्नि को स्थापित रखने वाले परवशः (पुं०) एक बर्बर जाति का नाम, चाण्डाल। गृहस्य की दशा 2. इस प्रकार स्थापित यज्ञाग्नि । (भ्वा० पर०, चुरा० उभ, पक्षति, पक्षयति-ते) 1. पक्तिम् (वि०) [ पच्+क्ति-मम् ] 1. पक्का, पका लेना, ग्रहण करन 2. स्वीकार करना 3. पक्ष लेना, हआ 2. परिपक्व, 3. पकाया. हुआ। तरफदारी करना। पक्व (वि.) [ पच्+क्त, तस्य वः ] 1. पकाया हुआ, | पक्षः [ पश् +अच् ] बाजू, भुजा, अद्यापि पक्षावपि नोद्भि For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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