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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1224 ) चना,-मन्तुरा अस्तबल, -- रिपुः भैसा--भा० प्र०, / प्रस्तर मूर्ति की स्थापना के लिए लेई या गारा बनाने -~-सधर्मन् घोड़ों की भांति आचरण करने वाला- में प्रयुक्त आठ सुगन्धित द्रव्य-चन्दन, अगर, देवदार, अश्वसघर्माणो हि मनुष्याः -कौ० अ० 219, सूत्रम् कोलिंजन, कुसुम, शैलज, जटामांसी और गोरोचन, 'घोड़ों को पालने' के विषय पर एक पुस्तक / तालम् मूर्तिकला में प्रयुक्त होने वाला गज जिसकी अश्वतरीरथः [रम्यतेऽनेन- रम+कथन] खच्चरी द्वारा लम्वाई उस मूर्ति के समान होती है जो अपने मुख से खींचा जाने वाला रथ / / आठ गुणा होती है,-देहाः स्थूल और सूक्ष्म शरीर अश्वत्यः [न श्वः तिष्ठति इति अश्व स्था+क]पीपल का | जो गिनती में आठ होते है... स्थूल, सूक्ष्म, कारण, पेड़ / सम०-नारायणः भगवान विष्णु जिनकी पीपल महाकारण, विराट्, हिरण्य, अव्याकृत और मूलप्रकृति, के वृक्ष के रूप में पूजा की जाती है,-पूजा सभी --नागाः 1. आठ साँप-अनन्त, वासुकि, तक्षक, देवता पीपल में रहते हैं' ऐसा समझ उसकी पूजा कर्कोटक, शंख, कुलिक, पम और महापद्म 2. आठ करना-मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णरूपिणे, अग्रतः दिग्गज-ऐरावत, पुंडरीक, वामन, कुमुद, अंजन, शिवरूपाय वृक्षराजाय ते नमः, -- प्रदक्षिणम् धार्मिक पुष्पदंत, सार्वभौम और सुप्रतीक, ' पक्ष (वि.) संस्क्रिया के रूप में पीपल की परिक्रमा करना। (ऐसा कमरा या घर जिसमें) एक ही ओर आठ अषडक्ष (वि.) [न+षट्+अक्षि] दे० 'अषडक्षीण'। स्तम्भ लगे हुए हों, प्रकृतयः पांच महाभूत (अग्नि, 'ईन' प्रत्यय स्वार्थ को ही प्रकट करता है। अतः जल, पृथ्वी, आकाश, वायु), मन, बुद्धि और अहंकार, 'अषडक्ष' और 'अषडक्षीण' दोनों शब्दों का एक ही -प्रधानाः राज्य के आठ प्रधान अधिकारी-वैद्य, अर्थ है। उपाध्याय, सचिव, मन्त्री, प्रतिनिधि, राजाध्यक्ष, अपडक्षीण (वि.) [न+षट्+अक्षि+ईन] जो छः आँखों प्रधान और अमात्य,--भैरवाः शिव के आठ गण से न देखा गया, अर्थात् केवल दो ही व्यक्तियों के -असिताङ्ग, संहार, रुरु, काल, क्रोध, ताम्रचूड, द्वारा निर्धारित तथा उन दो कोही ज्ञात (जिसमें चन्द्रचूड, और महाभैरव, भोगाः सुखमय जीवन के तीसरा व्यक्ति सम्मिलित न हो), आठ तत्त्व,--अन्न, उदक, ताम्बूल, पुष्प, चन्दन, वसन, रहस्य, गुप्त बात। शय्या और अलंकार, मङ्गलघृतम् आयुर्वेद की अष्टन् (वि.) [ अर व्याप्ती कनिन् तुट् च] आठ, आठ औषधियाँ मिला कर तैयार हुआ घी --प्रश्न: (समस्त शब्दों में 'अष्टन्' के न का लोप हो जाता ज्योतिष में प्रश्न विचार प्रणाली के लिए अपनाया है। सम० अङ्गम् (अष्टांग) 1. आयुर्वेद पद्धति गया एक ढंग,--मधु आठ प्रकार का शहद-माक्षिक, जिसमें निम्नांकित आठ अंग होते हैं - द्रध्याभिधान, भ्रामर, क्षौद्र, पोतिका, छात्रक, अर्ध्य, औदाल और गदनिश्चय, कायसौख्य, शल्यकर्म, भूतनिग्रह, विष दाल, महारसाः आयुर्वेद पद्धति के आठ रस निग्रह, बालवैद्य और रसायन 2. बुद्धि की आठ ---वैकान्तमणि, हिंगूल, पारा, हलाहल, कान्तलोह, क्रियायें-- शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारणा, चिन्तन, अभ्रक, स्वर्णमाक्षी और रौप्यमाक्षी, रोगाः आयुर्वेद ऊहापोह, अर्थविज्ञान और तत्त्वज्ञान 3. योगाभ्यास में वर्णित आठ प्रधान रोग-वातव्याधि, अश्मरी, के आठ अंग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, कुष्ठ, मेह, उदक, भगन्दर, अर्श और संग्रहणी, धारणा, ध्यान और समाधि,-अधिकाराः सामाजिक -मातृकाः पराशक्ति के आठ अवतार- ब्राह्मी, व्यवस्था में शक्ति की आठ स्थितियाँ-जल, स्थल, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, ग्राम, कुल, लेखन, ब्रह्मासन, दण्डविनियोग और कोनेरी और चामुण्डा, मर्तयः आठ प्रकार की पौरोहित्य, -- अध्यायी (अष्टाध्यायी) 1. पाणिनि मूर्तियाँ-शैली, दारुमयी, लोही, लेप्या, लेख्या, सैकती, का व्याकरण 2. शतपथ ब्राह्मण, अन्नानि भोजन के मनोमयी और मणिमयी,--- योगिन्यः आठ योगिनियाँ आठ प्रकार- भोज्य, पेय, चोष्य, लेह्य, खाद्य, चळ, जो पार्वती की सहेलियाँ थीं-मङ्गला, पिङ्गला, धन्या, निपेय, और भक्ष्य,-आपाद्य (वि.) आठगुणा भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा और सङ्कटा, - धर्गः अष्टापायं तु शुद्रस्य स्तेये भवति किल्विषम् ... मनु० एक प्रकार का रेखाचित्र जो किसी विशेष समय पर ८।३३७,-उपद्वीपानि छोटे-छोटे आठ द्वीप--स्वर्ण ग्रहों की यथार्थ स्थिति दर्शाता है,--सिद्धयः दे० प्रस्थ, चन्द्राशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मन्दरहरिण, अप्टमहासिद्धयः--अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, पाञ्चजन्य, सिंहल और लड्रा- कुलाचलाः आठ प्राकाम्य, ईशिता, वशिता और प्राकाम्य / मुख्य पर्वत-नील, निषध, माल्यवत, मलय, विन्ध्य, अष्टमराशिः[ष० त०] किसी व्यक्ति के नक्षत्र की राशि. गन्धमादन, हेमकूट और हिमालय, -- मर्यादागिरयः ! से आठवीं राशि जो प्रायः अशुभ मानी जाती है। आठ मुख्य पहाड़, दे० ऊपर,-गन्धा; मन्दिरों मे अष्टागव (वि०) [ब० स०] (गाड़ी) जिसमें आठ बैल For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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