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( ४६० ) 3. शिव का विशेषण 4. अंधेरा,-ईशः,-ईश्वरः दिशा | विष्टया (अव्य०) [दिष्टि का करण० ए०व०] भाग्य से, का अधिष्ठात्री देवता ...कु० ५।५३, दे० 'अष्टदिक्- सौभाग्य से, ईश्वर का धन्यवाद, मैं कितना प्रसन्न हूँ, पाल,--करः 1. युवा, जवान आदमी 2. शिव का कितना सौभाग्यशाली, शाबाश (हर्ष या बधाई का विशेषण,--कारिका-करी, जवान लड़की या स्त्री, उद्गार)-दिष्टया प्रतिहतं दुर्जातम्-मा०४, दिष्टया --करिन्,-गजः,-दन्तिन--वारणः (पुं०) वह हाथी सोयं महाबाहुरञ्जनानन्दवर्धनः-उत्तर० ११३७, वेणी० जो पृथ्वी को संभालने के लिए किसी दिशा में स्थित | २।१२, दिष्टचा वध बधाई देना,-दिष्ट्या धर्मपत्नी कहा जाता है (यह आठों दिशाओं में स्थित होने के । .. समागमेन पुत्रमुखदर्शनेन चायुष्मान्वर्धते-श०७। कारण अष्ट दिग्गज कहलाते हैं)-दिग्दन्तिशेषाः ककु
(अदा० उभ०-देग्धि, दिग्धे, दिग्ध---इच्छा० भश्चकार-विक्रम० ७१,-ग्रहणम् पृथ्वी की दिशाओं "दिधिक्षति) 1. लीपना, सानना, पोतना, बिछाना का अवलोकन,--चक्रम् 1. क्षितिज 2. समस्त विश्व,
-भट्टि० ३।२१, ७.५४ 2. मैला करना, भ्रष्ट करना, -जयः,--विजयः दिग्विजय, सब दिशाओं में भिन्न २
अपवित्र करना-रघु० १६।१५, सम्-, 1. सन्देह देशों को जीतना, विश्व का विजय करना . स दिग्वि
करना, अनिश्चित रहना--- याज्ञ० २।१६, संदिग्धो जयमव्याजवीरः स्मर इवाकरोत-विक्रमांक० ४।१,
विजयो युधि- पंच० ३।१२ 2. भूल करना, हतबुद्धि -दर्शनम् केवल दिशाएँ दिखाना, केवल सामान्य रूप,
होना (कर्मवा०)-पान्तु त्वामकठोरकेतकशिखासंदिग्धरेखा की ओर संकेत करना,-नागः 1. पृथ्वी की दिशा
मग्धेन्दवः (जटा:)-मा० ११२, या-धर्जालविनि:का हाथी, दे० दिग्गज 2. कालिदास का समसामयिक सतैबलभयः संदिग्धपारावता:--विक्रम० ३१२, कु० एक कवि (यह बात मेघ०१४ में मल्लि० की व्याख्या
६।४० 3. आक्षेप आरम्भ करना। पर जो बड़ी संदिग्ध है, आधारित है),---मण्डलम्
दी (दिवा० आ०-दीयते, दीन) नष्ट होना, मरना। =दिकचक्रम, मात्रन केदल दिशा या संकेत,--मुखम्
दीक्ष (भ्वा० आ० - दीक्षते, दीक्षित) 1. किसी धर्मआकाश की कोई सी दिशा या भाग-- हरति मे हरि
संस्कार के अनुष्ठान के लिए अपने आपको तैयार वाहनदिङमुखम्-विक्रम० ३१६, अमरु ५,--मोहः मार्ग
करना, दे० नी. दीक्षित' 2. अपने आपको समर्पित या दिशा भूल जाना,---वस्त्र (वि०) विल्कुल नंगा,
करना 3. शिष्य बनाना 4. उपनयन संस्कार करना विवस्त्र, (स्त्रः) 1. दिगम्बर संप्रदाय का जैन या बौद्ध
5. यज्ञ करना 6. आत्म संयम करना। भिक्षु 2. शिव का विशेषण,--विभावित (वि.) विश्रुत,
वित (वि०) विधुत) | दीक्षकः [दीक्ष+ण्वल आध्यात्मिक मार्ग-दर्शक । विख्यात या सब दिशाओं में प्रसिद्ध।
दीक्षणम् [दीक्ष् + ल्युट्] दीक्षा देना, धर्मार्पण । विशा [दिश् +अ+टाप् ] पृथ्वी का चौथाई, ओर, | दीक्षा दीक्षअ+टाप] 1. किसी धर्म-संस्कार के लिए
तरफ, प्रदेश । सम-गजः,--पालः, दे० दिग्गज, समर्पण, पवित्रीकरण--रघु० ३१४४, ६५ 2. यज्ञ से दिकपाल।
पूर्व किया जाने वाला प्रारम्भिक संस्कार 3. धर्मसंस्कार विश्य (वि.) [दिशि भवः --दिश्य त् ] पृथ्वी की
----विवाह दीक्षा-रघ० ३।३३, कु० ७।१, ८।२४ किसी दिशा से सम्बन्ध रखने वाला, या किसी दिशा
4. यज्ञोपवीत संस्कार करना, किसी विशेष उद्देश्य के में स्थित ।
लिए अपने आपको समर्पण करना। सम... अन्तः दिष्ट (वि.) [दिश् + क्त] 1. दिखलाया हुआ, संकेतित, पूर्वकृत यज्ञादि कर्म की त्रुटियों की शान्ति के लिए
निर्देश किया हुआ, इशारे से बताया हुआ 2. वणित, किया जाने वाला पूरक-यज्ञ । उल्लिखित 3. स्थिर, निश्चित 4. निदेशित, आदेश दीक्षित (भू० क० कृ०) [दीक्ष+क्त] संस्कारित, (किसी दिया हुआ,-ष्टम् 1. अधिन्यास, नियतीकरण 2. भाग्य, धर्म-संस्कार के अनुष्ठान के लिए) दीक्षा-प्राप्त-- एते नियति, सौभाग्य या दुर्भाग्य -भो दिष्टम् --श०२ विवाहदीक्षिता यूयं-उत्तर० १, आपन्नाभयसत्रेषु 3. आदेश, निदेश 4. उद्देश्य, ध्येय। सम-अन्तः दीक्षिताः खलु पौरवा:-श० २।१६, रघु० ८।७५, नियत किय हुए समय को समाप्ति, मृत्यु -दिष्टान्त- १११२४, वेणी० १२१५ 2. यज्ञ के लिए तैयार 3. व्रत
माप्स्यति भवानपि पुत्रशोकात् --रघु० ९६७९।। लेकर (किसी पुण्य कार्य के लिए) तैयार-रघु० दिष्टिः (स्त्री०) [दिश् +-क्तिन् | 1. अधिन्यास, नियती- १०६७4. अभिषिक्त--रघु० ४।५, -तः 1. दीक्षा
करण 2. निदेश, आज्ञा, शिक्षा, नियम, उपदेश कार्य में व्यस्त पुरोहित 2. शिष्य 3. वह पुरुप जिसने 3. भाग्य, किस्मत, नियति 4. अच्छी किस्मत, प्रसन्नता, या जिसके पूर्व-पुरुषों ने ज्योतिष्टोम जैसे वृहद् यज्ञों शुभ कार्य (जैसा कि पुत्रजन्म)-दिष्टिवृद्धिमिव शुधाव का अनुष्ठान किया हो। --का० ५५, दिष्टिवृद्धसम्भ्रमो महानभूत्-का० | दीदिविः [दिव-क्विन् , द्वित्वं, दीर्घश्च]1. उबले हुए चावल ७३।
2. स्वर्ग ।
से बताया हुआ
दीक्षित (भू०
ठान के लिए)
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