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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४५९ प्रस्तुत करना, कहना, घोषणा करना, बतलाना, चेतावनी देना मनु० ८।५४ 3. ढोंग रचना, बहाना करना -- मित्रकृत्यमपदिश्य - रघु० १९३१, ३२, ५४, शिरः शूलस्पर्शनमपदिशन् -- दश० ५०, सिरदर्द के बहाने की युक्ति देते हुए 4. उल्लेख करना, निर्देश करना - रहसि भर्त्रा मद्गोत्रापदिष्टादश० १०२, आ-, 1. करना, दिखलाना 2. आदेश देना, आज्ञा देना, निर्देश देना -- पुनरप्यादिश तावदुत्थितः कु० ४/१६, आदिक्षादस्याभिगमं बनाय - भट्टि० ३1९, ७७२८, रघु० ११५४, २०६५, मनु० ११।१९३ 3. उद्दिष्ट करना, अलग करना, अधिन्यस्त करना -भट्टि० ३1३ 4. अध्यापन करना, उपदेश देना, शिक्षा देना, अङ्कित करना, निश्चित करना - रघु० १२।६८ 5. विशिष्ट करना, 6 आगे होने वाली बात बताना, उद्-, 1. संकेत करना ज्ञापन करना, द्योतित करना, उल्लेख करना - प्रथमोद्दिष्टमासनम् कु० ६।३५, यथोद्दिष्टव्यापारा - श० ३, अनेडमूक उद्दिष्टः शठे - मेदि० 2. उल्लेख करना, निर्देश करना, संकेत करना - स्मरमुद्दिश्य – कु० ४।३८ 3. अभिप्राय रखना, उद्देश्य रखना, निर्देश करना, अधिन्यस्त करना, अर्पित करना - फलमुद्दिश्य भग० १७।२१, उद्दिष्टामुपनिहितां भजस्व पूजाम् - मा० ५।२५, वयशिलामुद्दिश्य प्रस्थितः - पंच० १4. सिखाना, उपदेश देना सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम् - भर्तृ ० २।२८, उप, 1. अध्यापन करना, उपदेश देना, सिखाना - सुखमुपदिश्यते परस्य – का० १५६, मालवि० ११५, रघु० १६।४३, भग० ४।३४ 2. संकेत करना, इशारा करना, उल्लेख करना - गुणशषामुपदिश्य- रघु० ८.७३ 3. कथन करना, बतलाना, घोषणा करना- किं कुलेनोपदिष्टेन शीलमेवात्र कारणम् - मृच्छ० ९।७ 4. निर्दिष्ट करना, अङ्कित करना, स्वीकृति देना, निश्चित करना-न द्वितीयश्च साध्वीनां क्वचिद्भतपदिश्यते - मनु० ५ १६२, २।१९० 5. नाम लेना, पुकारना, निस्-, 1. संकेत करना, इशारा करना, दिखलाना - एकैकं निर्दिशन् -- श० ७, अङगुल्या निर्दिशति - आदि 2 अधिन्यस्त कर देना, दे देना -- निर्दिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य -- रघु० १।९५ 3. सुझाना, निर्देश करना, संकेत करना 4. भविष्यवाणी करना 5. उपदेश देना 6. बतलाना, समाचार देना, प्र- 1. संकेत करना, इशारा करना, दिखाना, निर्देश करना – तस्याधिकारपुरुषः प्रणतैः प्रविष्टाम् - रघु• ५२६३, २/३९ 2. बतलाना, कथन करना- भग० ८ २८, भट्टि० ४।५ 3. देना, स्वीकार करना, उपहार देना, प्रदान करना - विद्ययोः पथि मुनिप्रदिष्टयोः रघु० ११९, ७३५, निःशब्दोऽपि प्रदिशसि जलं याचितश्चात केभ्यः ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मेघ० ११४, मनु०८/२६५, प्रत्या-, (क) अस्वीकार करना, दूर फेंकना, कतराना - प्रत्यादिष्टविशेषमण्डनविधिः- ० ६।५, (ख) पीछे ढकेलना - रघु० ६।२५ 2. पछाड़ देना; प्रत्याख्यान करना (व्यक्ति का ) - कामं प्रत्यादिष्टां स्मरामि न परिग्रहं मुनेस्तनयाम् -- श० ५/३१ 3. दुरूह बनाना, निस्तेज करना, परास्त करना, पृष्ठभूमि में फेंक देना- रघु० १०६१, १०१६८ 4. विपरीत आज्ञा देना, वापिस बुलाना, व्याप, 1. नाम लेना, पुकारना, — व्यपदिश्यते जगति विक्रमीत्यतः - शि० १५।२८ 2. मिथ्या नाम लेना, मिथ्या पुकारना - मित्रं च मां व्यपदिशस्यपरं च यासि - मुच्छ० ४1९ 3. बोलना, गर्व से कहना – जन्मेन्दोर्विमले कुले व्यपदिशसि - वेणी० ६।७ 4. बहाना करना, ढोंग रचना - महावी० २1११, सम्-, 1. देना, स्वीकृति देना, अधिन्यस्त करना, सौंपना - भट्टि० ६ १४१, याज्ञ० २।२३२ 2. आज्ञा देना, निर्देश देना, शिक्षा देना, उपदेश देना, सन्देश भेजना - किंनु खलु दुष्यन्तस्य युक्तरूपमस्माभिः सन्देष्टव्यम् - श० ४, शि० ९/५६, ६१ 3. सन्देश के रूप में भेजना, सन्देश सौंपना - अथ विश्वात्मने गौरी सन्दिदेश मिथः सखीम् - कु० ६ १ । दिश् (स्त्री० ) [ दिशति ददात्यवकाशम् दिशू + क्विप् ] ( कर्तृ० ए० व०- दिक्, -ग) 1. दिशा, दिग्बिन्दु, चार दिशाएँ, परिधि का बिन्दु, आकाश का चौथाई - दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखा: - रघु० ३।१४, दिशि दिशि किरति सजलकणजालम् —गीत० ४ 2. (क) वस्तु का केवल निर्देश, इंगित, ( सामान्य रूप रेखा का ) संकेत, इतिदिक् (भाष्यकारों द्वारा बहुल प्रयोग, (ख) ( अतः ) रीति, रूप, प्रणाली -- मुनेः पाठोक्तदिशा - सा० द०, दिगियं सूत्रकृता प्रदर्शिता, दासीसभं नृपसभं रक्षः सभमिमा दिश: अमर० 3. प्रदेश, अन्तराल, स्थान 4. विदेश या दूरस्थ प्रदेश 5. दृष्टिकोण, विषय को सोचने की रीति 6. उपदेश, आदेश 7. 'दस' की संख्या 8 पक्ष, दल 9. काटने का चिह्न (विशे० समास में स्वरादि, सघोष तथा ऊष्म व्यंजनादि शब्दों से पूर्व 'दिग्' तथा अघोष व्यंजनादि शब्दों से पूर्व 'दिक' हो जाता है उदा० दिगम्बर, दिग्गज, दिक्पथ, दिक्करिन् आदि) । सम० अन्तः दिशाओं का किनारा या क्षितिज, दूर का अंतर, दूरस्थ स्थान - भामि० १२, रघु० ३३४, ५/६७, १६८७ नानादिगन्तागता राजानः आदि, अन्तरम् 1. दूसरी दिशा 2. मध्यवर्ती स्थान, अन्तरिक्ष, अन्तराल 3. दूरवर्ती दिशा अन्य प्रदेश, विदेश, अम्बर (वि०) दिशाएं ही जिसका वस्त्र हों, बिल्कुल नग्न, विवस्त्र - दिगम्बरत्वेन निवेदितं वसु कु० ५/७२, ( : ) 1. नग्न भिक्षु (जैन या बौद्ध संप्रदाय का ) 2. साधु, संन्यासी For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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