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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२५ ) हरिण। सम०-अंकः, केतनः,-केतुः अनिरुद्ध,-मूक:पंपा बुलाया, और अपनी पुत्री शान्ता (यह दत्तक पुत्री सरोवर के निकट स्थित एक पर्वत जहां कुछ दिनों तक थी, इसके वास्तविक पिता राजा दशरथ थे) का राम वानरराज सुग्रीव के साथ रहे थे— ऋष्यमूकस्तु विवाह इनसे कर दिया। ऋष्यशृंग ने इस बात पम्पायाः पुरस्तात्पुष्पितद्रुमः,-शृङ्गः एक मुनि का से प्रसन्न होकर उसके राज्य में पर्याप्त वर्षा नाम (यह विभाण्डक का पुत्र था, इसके पिता ने कराई। यही वह ऋषि था जिसने राजा दशरथ जंगल में ही इसका पालन-पोषण किया, जब तक यह के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसके वयस्क न हुआ तव तक इसने किसी दूसरे मनुष्य को फलस्वरूप राम और उनके तीन भाइयों का जन्म नहीं देखा। जब अनावृष्टि के कारण अंगदेश बर्बाद हुआ)। सा हो गया तो उसके राजा लोमपाद ने, ब्राह्मणों के | ऋष्यक: [ ऋष्य+कन] चित्तीदार सफेद पैरों वाला परामर्शानुसार ऋष्यशृंग को कुछ कन्याओं द्वारा । बारहसिंघा हरिण । ऋ (अव्य०) (क) त्रास (ख) दुरदुराना (ग) भर्त्सना, निन्दा ' द्योतक अव्यय (पुं०-३ः) 1. भैरव 2. एक राक्षस । (घ) करुणा तथा (ङ) स्मृति का व्यंजक विस्मयादि- ऋ (क्या० पर०-ऋणाति, ईर्ण) जाना, हिलना-डुलना। एः (पं.) [इ-विच विष्णु, (अव्य.) (क) स्मरण ! (ख) ईर्ष्या (ग) करुणा (घ) आमन्त्रण और (ङ) घणा तथा निन्दा व्यंजक (विस्मयादि द्योतक) अव्यय ।। एक (सर्व वि०) [+कन्] 1. एक, अकेला, एकाकी, केवल मात्र 2. जिसके साथ कोई और न हो 3. वही, विल्कुल वही, समरूप --मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येक महात्मनाम---हि० १११०१ 4. स्थिर, अपरिवर्तित 5. अपनी प्रकार का अकेला, अद्वितीय, एक वचन 6. मुख्य, सर्वोपरि, प्रमुख, अनन्य-एको रागिषु राजते -भर्तृ० ३.१२१ 7. अनुपम, बेजोड़ 8. दो या बहुत में से एक--मेघ० ३०१७८ १. वहुधा अंग्रेजो के अनिश्चयवाचक निपात (a या an) को भांति प्रयुक्त --ज्योतिरेक-श० ५.३०, एक, दूसरा; 'कुछ' अर्थ को प्रकट करने के लिए बहुवचनांत प्रयोग; अन्ये, अपरे इसके सहसम्बन्धी शब्द हैं। सम०-- अक्ष (वि०) 1. एक धरी वाला 2, एक आँख वाला (--क्षः) 1. कौवा 2. शिव,----अक्षर (वि.) एक अक्षर वाला (-रम्) 1. एक अक्षर वाला 2. पावन अक्षर 'ओन्' ----अन (वि.) 1. केवल एक पदार्थ या बिन्दु पर स्थिर 2. एक ही ओर ध्यान में मग्न, एकाग्रचित्त, तुला हुआ,-रघु० १५/६६, मनुमेकाग्रमासीनम्-मनु० । २९ ११ 3. अव्यग्र, अचंचल, अध्य= अग्र (-प्रयम्) एकाग्रता,- अंग: 1. शरीर रक्षक 2. मंगलग्रह या बुध ग्रह,-अनुदिष्टम् अन्त्येष्टि संस्कार जो केवल एक ही पूर्वज (सद्यो मत) को उद्देश्य करके किया गया हो, —अंत (वि०) 1. अकेला 2. एक ओर, पाश्र्व में 3. जो केवल एक ही पदार्थ या बिन्दु की ओर निर्दिष्ट हो 4. अत्यधिक, बहुत-कु० ११३६ 5. निरपेक्ष, अचल, सतत-स्वायत्तमेकान्तगुणम्-भर्तृ० २१७, मेघ०१०९, (-तः) एकमात्र आश्रय, निश्चित नियम-तेजः क्षमा वा नैकान्तं कालज्ञस्य महीपतेः-शि० २।८३, (-तम्, तेन, ततः, ते) (अव्य.) 1. केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत 2. अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा-वयमप्येकान्ततो निःस्पृहा:-भर्त० ३।२४, दुःखमेकान्ततो वा-मेघ० १०९,-अन्तर (वि.) अगला, जिसमें केवल एक का ही अन्तर रहे, एक के बाद एक को छोड़ कर-श०७।२७, अंतिक (वि०) अन्तिम निर्णायक,-अयन (वि.) 1. जहां से केवल एक ही जा सके, (जैसे कि पगडंडी या बटिया) 2. नितान्त ध्यानमग्न, तुला हुआ दे० एकाग्र (-नम्) 1. एकान्त स्थल या विश्राम स्थली 2. मिलने का स्थान, संकेत-स्थल 3. अद्वैतवाद 4. केवलमात्र For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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