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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८६ ) 2. शरीर का ठीक हालत में न रहना 3. रोग, विशेष- मुकूट के ऊपर धारण किया जाने वाला आभूषण कर सामुद्रिक रोग। - उत्तंसानहरत वारि मूर्वजेभ्यः-शि० ८.५७ -तु० उत्क्षिप्त (भू० क. कृ.) [उद्+ क्षिप्+क्त ] | 'कत्तिंस' 2. कान का आभूषण-मा० ५.१८, 1. ऊपर को फेंका हुआ, उछाला हुआ, उठाया हुआ | भामि० २।५५। 2. पकड़ा हुआ, सहारा दिया हुआ, 3. ग्रस्त, अभिभूत, उत्तसित (वि.) [उत्तंस-+ इतच्] 1. कानों में आभूषण पहने आहत-विस्मय ----रत्ना०, 4. गिराया हुआ, ध्वस्त, हुए 2. शिखा में धारण किया हुआ---भर्त० ३।१२९ । -प्तः धतूरा, धतूरे का पौधा । उत्तट (वि०) [ उत्क्रान्तः तट-अत्या० स० ] किनारे उत्क्षिप्तिका [ उत्क्षिप्त+कन्+टाप् इत्वम् ] चन्द्रकला के बाहर निकल कर बहने वाला--रघु० ११।५८ । के आकार का कान का आभूषण । उत्तप्त (भू० क० कृ०) [ उद्+तप्+क्त ] जलाया उरक्षेपः [ उद्+क्षिप्+घम ] 1. फेंकना, उछालना हुआ, गरम किया हुआ, झुलसाया हुआ-..कनक -पक्ष्मोत्क्षेप-मेघ० ४९, 2. जो ऊपर फेंका या -का० ४३,--प्तम् सूखा माँस । उछाला जाय----बिन्दुत्क्षेपान् पिपासुः-मालवि० २।१३ | उत्तम (वि०) [ उद्+तमप् ] 1. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ (बहुधा 3. भेजना, प्रषित करना 4. वमन करना। समास में) द्विजोत्तम--इसी प्रकार सुर" आदि - प्रायेउत्क्षपक (वि.) [ उद्+क्षिप्+ण्वुल ] ऊपर फेंकने या णाधममध्यमोत्तमगुणः संसर्गतो जायते-भर्त० २।६७, उछालने वाला, उन्नत करने वाला या ऊपर उठाने 2. प्रमुख, सर्वोच्च, उच्चतम, 3. उन्नततम, मुख्य, वाला---याज्ञ० २।२७४,-क: 1. कपड़े आदि चुराने प्रधान 4. सबसे बड़ा, प्रथम, मनु० २०२४९, - मः बाला-वस्त्राद्युत्क्षिपत्यपहरतीत्युत्क्षेपक:-मिता० 2. 1. विष्णु 2. अन्तिम पुरुष (अंग्रेजी में इसी 'उत्तम भेजने वाला या आदेश देने वाला। पुरुष' को प्रथम पुरुष कहते हैं),----मा श्रेष्ठ महिला। उत्क्षेपणम् [ उद्+क्षिप् + ल्युट् ] 1. ऊपर फेंकना, उठाना सम०-- अङ्गम् शरीर का श्रेष्ठ अंग, सिर, या उछालना-अतिमात्रलोहिततलौ बाहू घटोत्क्षेपणात् -कश्चिद् द्विपत्पङ्गहतोलमाङ्ग:-रघु० ७।५१, मनु० -श० ११३० 2. वैशेषिकों के मतानुसार पाँच कर्मों में १२९३, ८।३०० कु० ७१४१, भग०११२७,---अधम से एक कर्म 'उत्क्षेपण' 3. वमन करना 4. भेजना, प्रेषित (वि०) ऊँचा-नीचा 'मध्यम, अच्छा, वीच के दर्जे करना 5. (अनाज साफ करने के लिए) छाज 6. पंखा । का, और बुरा,---अर्धः 1. बढ़िया आधा 2. अन्तिम उत्खचित (वि०) [ उद्---खच--क्त ] मिलाकर गुंथा आधा,—अहः अंतिम या बाद का दिन, अच्छा दिन, हुआ, बुना हुआ या जड़ा हुआ-कुसुमोत्खचितान् भाग्यशाली दिन, ऋणः,--ऋणिकः (उत्तमर्णः) वलीभूतः--रघु० ८।५३, १३।५४।। उधार देने वाला, साहूकार (विप० 'अधमर्ण'),--पदम् उत्खला [उद्-+ खल+अच-+टाप्] एक प्रकार का सुगन्ध । ऊँचा पद,--पु(पू) रष: 1. क्रिया के रूपों में अन्तिम उत्खात (भू० क० कृ०) [उद्+खन्+क्त] 1. खोदा हुआ, पुरुष (अंग्रेजी वाक्यरचना के अनुसार प्रथम पुरुष) 2. खोद कर निकाला हुआ 2. उद्धत, वाहर निकाला परमात्मा 3. घेष्ठ पुरुष,-श्लोक (वि.) उत्तम ख्याति हुआ-उत्तर० ३ 3. जड़ से उखाड़ा हुआ, जड़ समेत का, श्रीमान्, यशस्वी, सुविख्यात,-संग्रहः (स्त्री) तोड़ा हुआ (शा०),-लीला'-.-उत्तर० ३।१६ 4. पर-स्त्री के साथ सांठ-गांठ अर्थात् प्रेम संबंधी बातें (आलं.) (क) उन्मलित, बिल्कुल नष्ट किया हुआ, करना,-साहसः, सम् उच्चतम आर्थिक दण्ड, १००० ध्वस्त-किमुत्खातं नन्दवंशस्य ---मुद्रा० १, लवणो मधु- पण का दण्ड (कुछ औरों के मतानुसार ८००००)। रेश्वरः प्राप्तः-उत्तर० ७, (ख) पदच्युत, अधिकार उत्तमीय (वि.)[ उत्तम छ | सर्वोच्च, उच्चतम, सर्वया शक्ति से वंचित किया हुआ-फल: संवर्धयामासु श्रेष्ठ, प्रधान। रुत्खातप्रतिरोपिता:-रघु० ४१३७ (यहाँ 'उत्खात' उत्तम्भः, भनम् [ उद्+स्तम्भ--घन, ल्युट वा] 1. का अर्थ 'उन्मूलित' भी है),-तम् एक गर्त, रन्ध्र, संभालना, थामे रखना, सहारा देना . भुवनोत्तम्भनस्तऊबड़-खाबड़ भूमि । सम-केलिः (स्त्री० ) खेल म्भान्का०२६०, 2. धूनी, टेक, सहारा 3. रोकना, खेल में सींग या दांत से धरती खोदना-उत्खातोल: गिरफ्तार करना। शृंगाद्यैर्वप्रकीड़ा निगद्यते । उत्तर (वि.) [उद्+तरप्] 1. उत्तर दिशा में पैदा होने उत्खातिन् (वि०) [ उत्खात+इनि ] विषम, ऊँची-नीची, बाला, उत्तरीय (सर्व० की भांति रूप रचना) विषम (विप० 'सम')-उत्खातिनी भूमिरिति मया | 2. उच्चतर, अपेक्षाकृत ऊँचा (विप० 'अधर')-अवनरश्मिसंयमनाथस्य मन्दीकृतो वेग:-श० १ । तोतर कायम---रघु० ९।६० 3. (क) बाद का, उत्त (वि.) [ उन्+क्त ] आर्द्र, गीला । दूसरा, अनुवर्ती, उत्तरवर्ती (विप० पूर्व) पूर्व मेघः उत्तंसः [ उद्+तंस+अच् ] 1. शिखा, मोर का चूड़ा, ! --उत्तर मेघः--°मीमांसा, उत्तरार्धः आदि-राम For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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