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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९३ ) जकुट: (पुं०) 1. मलय पर्वत 2. कुत्ता। | जघन्य (वि.) [ जघने भवः यत् ] 1. सबसे पिछला, जश् (अदा० पर०-जक्षिति, जक्षित या जग्ध) खाना, | अन्तिम-भग० १४११८ मनु०८।२७० 2. सबसे बुरा खा लेना, नष्ट करना, उपभोग करना-भट्टि० ४।३९, अत्यन्त दुष्ट, कमीना, अधम, निंद्य 3. नीच कूल में १३।२८, १५।४६, १८११९ । उत्पन्न,--न्यः शूद्र। सम-जः 1. छोटा भाई लक्षणम्, जक्षिः [जश् + ल्युट, इन् वा ] खाना, उपभोग | 2. शूद्र। करना। जनिः [ हन्+किन्, द्वित्वम् ] (आक्रमणकारी) शस्त्र, जगत् (वि०) (स्त्री-ती) [गम् +क्विप् नि० द्वित्वं | हथियार। तुगागमः ] हिलने-जुलने वाला, जङ्गम - सूर्य आत्मा | जघ्नु (वि०) [हन्+कु, द्वित्वम् ] प्रहार करने वाला, जगतस्तस्थुषश्च-ऋक १।११५ । १, इदं विश्वं जगत्सर्व- वध करने वाला। मजगच्चापि यद्भवेत्-महा०, (पुं०), वायु, हवा (नपुं०) जङ्गम (वि.) [गम्+यह+अच, घातोद्वित्वं यङो लक संसार---जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरी-रषु० च] हिलने-जुलने वाला, जीवित, चर-चिताग्निरिव १०१। सम-अम्बा, -अम्बिका दुर्गा,-आत्मन् जङ्गमः-रघु०१५।१६, शोकाग्निरिव जनमः-महावी० (पुं०) परमात्मा, आदिजः शिव का विशेषण,-आधारः ५।२०, मनु० १२४९,- भम् चर या हिलने-डुलने 1. समय 2. वायु, हवा, आयुः,-आयुस् (पुं०) वाला पदार्थ-रघु० २।४४। सम०--इतर (वि०) हवा, ईशः,-पतिः विश्व का स्वामी, परमदेव,-उद्धारः अचर, स्थावर,-कुटी छाता, छतरी । संसार की मुक्ति,-कर्त,---धातु (पुं०) सष्टि का | | जङ्गलम् [गल+य+अच् पृषो०] 1. मरुस्थल, सुनसान बनाने वाला,--चक्षुस् (पुं०) सूर्य,-नाथः विश्व का "जगह, ऊसर भूमि 2. झुरमुट, वन 3. एकान्त निर्जन स्वामी,-निवासः 1. परमात्मा 2. विष्णु का विशे स्थान। षण-जगन्निवासो वसुदेवसनि-शि० १११ 3. सांसा जङ्गाल: [=जङ्गल, पृषो० साधुः ] मेढ़, बाँध, सीमा रिक अस्तित्व,-प्राणः, -बलः हवा,-योनिः 1. परम चिह्न । पुरुष 2. विष्ण का विशेषण 3. शिव की उपाधि जङगुलम् [ गम् +यङ् + डुल, धातोद्वित्वं यङो लुक् च ] 4. ब्रह्मा का विशेषण (नि:-स्त्री०) पृथ्वी,-यहा पृथ्वी, । विष, जहर। --साक्षिन् (पुं०) 1. परमात्मा 2. सूर्य। जडा [जङ्गन्यते कुटिलं गच्छति-हन+यह+अच, जगती [ गम् +अति नि० साधुः ] पृथ्वी, (समीहते) नयेन- यङो लुक पृषो०] जांघ, टखने से लेकर घुटने तक का जेतुं जगतीं सुयोधनः-कि० १७, समतीत्य भाति भाग, पिण्डली। सम-आरः,कारिकः पावक, जगती जगती---५।२० 2. लोग, मनुष्य 3. गाय हरकारा, दूत, सन्देशहर,--त्राणम् टांगों के लिए 4. छन्दो भेद (दे० परिशिष्ट)। सम०-अधीश्वरः, कवच। ईश्वरः राजा-नै० २११,-रह (पुं०) वृक्ष । | जङ्घाल (वि.) [ जवा+लच् [ शीघ्रधावक, प्रजवी, जगनुः (ः)=1. अग्नि 2. क्रीड़ा 3. जन्तु । -ल: 1. हरकारा 2. हरिण, बारहसिंघा। जगरः [जागर्ति युद्धेऽनेन-जागृ+अच पृषो० तारा०] कवच । जडिल (वि.) [जङ्का+इलच्] प्रधावक, प्रजवी, फुर्तीला। जगल (वि.) [जन् ड जः जातः सन् गलति गल+ । जज, जज (भ्वा० पर०-जजति, जजति) लड़ना, युद्ध अच् ] बदमाश, चालाक, धूर्त,-लम् 1. गोबर करना। 2. कवच 3. एक प्रकार की मदिरा (पुं०) (अन्तिम दो | जट् (भ्वा० पर० ---जतति) जुड़ जाना, (बालों का) पल अर्थों में भी)। खाकर जटाजूट होना। जग्ध (वि.) [अद्+क्त जग्धादेश: ] खाया हुआ। जटा [जट्+अच्+टाप्] 1. बटे हुए बाल, आपस में जग्धिः (स्त्री०) [अद् +क्तिन् जग्धादेशः] 1. खाना बल खाकर चिपके हुए बाल-अंसव्यापि शकुन्तनीड2. भोजन । निचितं बिभ्रज्जटामण्डलम्-श० ७।११, जटाश्च जग्मिः [गम्+कि, द्वित्वम् ] हवा । बिभृयान्नित्यम्-मनु० ६।६, मा० ११२ 2. तन्तुमय जधनम् [ हन्+अच्, द्वित्वम् ] 1. पुट्ठा, कूल्हा, चूतड़,- जड़ 3. सामान्य जड़ 4. शाखा 5. शतावरी का पौधा । घटय जघने काञ्चीमञ्च स्रजा कबरीभरम्-गीत० सम०-चीरः,-टः,-टीरः,-धरः शिव के विशेषण, १२ 2. स्त्रियों का पेड़ 3. सेना का पिछला भाग, सेना --जूट: 1. जटाओं के रूप में बटे हुए बालों का समूह का सुरक्षित भाग। सम-कूपको (द्वि० व०) किसी 2. शिव की जटाएँ - जटाजूटग्रन्थो यदसि विनिबद्धा सुन्दरी के कूल्हे के ऊपर के गड्ढे,--चपला व्यभि- पुरभिदा-गंगा० १४,-ज्वाल: दीप, लैंप,-घर (वि०) चारिणी स्त्री, कामुका-पत्युविदेशगमने परमसुखं जटाधारी। जघनचपलायाः-पञ्च० १।१७३। जटायुः [ जटं संहतमायुः यस्य ब० स०] श्येनी और अरुण ५० For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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