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चुका है, मः खण्डित वृक्ष, द्वेष (वि०) जिसका सन्देह मिट गया है, नासिक (वि०) जिसकी नाक कट गई है, भिझ ( वि० ) जो पूरी तरह काट दिया गया है, जिसका अंग भंग हो गया है, क्षतविक्षत, काटा हुआ, मस्त, मस्तक ( वि०) कटे हुए सिर वाला, - मूल (वि० ) जिसे जड़ से काट दिया गया है- रघु० ७१४३, श्वासः एक प्रकार का दमा, संशय (वि० ) जिसके सन्देह दूर हो गये हैं, सन्देहमुक्त, पुष्ट । छछुन्दरः (स्त्री० री) [ छुछुम् इत्यव्यक्तशब्दो दीयंते निर्गच्छति अस्मात् छुछुम्+दृ + अप्] छछुन्दर नाम का जन्तु, गन्धाखु-याश० ३।२१३, मनु० १२२६५ । छप् (तुदा० पर०-छुपति) स्पर्श करना, छूना । छप: [ छुप+क ] 1. स्पर्श 2. झाड़ी, शंखाड़ 3. संघर्ष, युद्ध ।
छुट्ट (भ्वा० पर० - छोरति, छुरित) 1. काटना, विभक्त करना 2. उत्कीर्ण करना, ii ( तुदा० पर० छुरति, छुरित) 1. ढांपना, सानना, लीपना, जड़ना, पोतना, rajठित करना 2. मिलाना, वि, सानना, लीपना, ढकना, पोतना -- मनः शिलाविच्छुरिता निषेदुः कु० ११५५, चौर० ११, विक्रम ० ४।४५ । छुरणम् [ छुर्+युट् ] सानना, लीपना – ज्योत्स्नाभस्मच्छुरणधवला रात्रिकापालिकीयम् - काव्य० १० । छुरा [ छुर् + क+टाप् ] चुना । छुरिका [छुर् + क् +टाप्, इत्वम् ] चाकू, छूरी । छुरित (भू० क० कृ० ) [ छुर् + क्ते ] 1. खचित, जडि
2. ऊपर फैलाया हुआ, पोता हुआ, आच्छादित किया हुआ - अनेकधातुच्छुरिताश्मराशेः - शि० ३१४, ७, इन्दुकिरणच्छुरितमुखीम् - काव्य० १० 3. समामिश्रित अन्तमिश्रित - परस्परेण छुरितामलच्छवी - शि० १।२२ । छुरी, छुरिका, छूरी [ छुर + ङीप्, छूरी + कन् + टापू,
ह्रस्वः, छुरी पृषो० दीर्घः ] चाकू, छुरी । छड् i (म्बा० पर०, चुरा० उभ० छर्दति, छर्दयति ते) जलाना ii (रुषा० उभ० छृणत्ति, छन्न) 1. खेलना 2. चमकना 3. वमन करना ।
छेक (वि० ) [ छो+ डेकन् बा० तारा० ] 1. पालतू, घरेलू ( जैसे कि हिस्रजन्तु) 2. नागरिक, शहरी 3. बुद्धिमान्, नागर । सम० - अनुप्रासः अनुगस के पाँच भेदों में
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(वि० ) [ जि-जन् जु+ड ] ( समास के अन्त में) से या में उत्पन्न, पैदा हुआ, वंशज, अवतीर्ण, उद्भूत, आदि - अत्रिनेत्रज, कुलज, जलज, क्षत्रियज, अण्डज,
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एक, 'एक बार वर्णावृत्ति' जो कि व्यंजन समूहों में अनेक प्रकार से तथा एक ही बार घटने वाली समानता है -- उदा० - मादाय बकुलगन्धनन्धीकुर्वन्पदे पदे भ्रमरान्, अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः-सा० द० ६३४, - अपह्नुतिः (स्त्री० ) अपह्नुति अलंकार का एक भेद चन्द्रालोक सोदाहरण निरूपण करता है - छेकापह्नुतिरन्यस्य शङ्कातस्तस्य निह्नवे, प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः कान्तः किं न हि नूपुर :- ५/२७, उक्ति: ( स्त्री०) वक्रोक्ति, व्यंग्यात्मक वक्रोक्ति, द्वघर्थक मुहावरा ।
छेः [ छिद्+घञ ] 1. काटना, गिराना, तोड़ डालना, खण्ड-खण्ड करना -- अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियन्ते नन्दनद्रुमाः -- कु० २१४१, छेदो दंशस्य दाहो वा मालवि० ४/४, रघु० १४१, मनु० ८ २७०, ३७०, याज्ञ० २।२२३२४० 2. निराकरण करना, हटाना, छिन्नभिन्न करना, सौंफ करना, जैसा कि 'संशयच्छेद' में 3. नाश, बाधा - निद्राच्छेदाभिताम्रा मुद्रा० ३।२१ 4. विराम, अवसान, समाप्ति, लोप होना जैसा कि 'धर्मच्छेद' में 5. टुकड़ा, ग्रास, कटौती, खण्ड, अनुभाग - बिस किसलयच्छेदपाथेयवन्तः --- मेघ० ११, ५९, अभिनवकरिदन्तच्छेदपाण्डुः कपोल: -- मा० ११२२, कु० १४ श० ३।७, रघु० १२ १००, 6. (गणित में ) भाजक, हर ( भिन्नराशि का ) ।
छेदनम् [ छिद् + ल्युट् ] 1. काटना, फाड़ना, काट डालना,
टुकड़े २ करना, खण्ड-खण्ड विभक्त करना - मनु ८ २८०, २९२, ३२२ 2. अनुभाग, अंश, टुकड़ा, भाग 3. नाश, हटाना। छविः [ छिद् +इन् ] बढ़ई ।
छेमण्ड [ छम् + अण्डन्, एत्वम् ] मातृपितृहीन, अनाथ । छलकः [ छो+डेलक ] बकरा । [छवि: [ छेद + ठक् ] बेत ।
छो (दिवा० पर ० - उघति, छात या छित-प्रेर० छापयति ) काटना, काट कर टुकड़े टुकड़े करना, कटाई करना, लवनी करना, भट्टि० १४/१०१,१५/४० ॥ छोटिका [ छुट् + ण्वुल +टाप्, इत्वम् ] चुटकी । छोरणम् [ छुर् + ल्युट् ] त्याग करना, छोड़ देना ।
उद्भिज आदि, --ज: 1. पिता 2. उत्पत्ति, जन्म 3. विष 4. भूतना, प्रेर या पिशाच 5. विजेता 6. कान्ति, प्रभा 7. विष्णु ।
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