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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रियालः [प्रिय-अल+अच्] पियाल नामक वृक्ष, दे० / - बच्चस् (नपुं०),-वचनम् मैत्री से भरी हुई या 'पियाल',-ला अंगूरों की बेल / कृपापूर्ण वाणी, वर्धन (वि.) प्रेम या हर्ष को बढ़ाने प्रो। (क्रया उभ० प्रीणाति, प्रोणीते प्रीत) 1. प्रसन्न करना, वाला (नः) विष्णु का विशेषण, वावः मित्रवत् खुश करना, सन्तुष्ट करना, आनन्दित करना-प्रीणाति विचारविमर्श,-विवाहः प्रीति या प्रेम के कारण होने यः सुचरितः पितरं स पुत्रः-भत० 2 / 68, सस्नुः वाला विवाह, प्रेम-संबंध, (जो केवल प्रेम पर आषापितन पिप्रियुरापगासु-भट्टि 3 / 38, 5 / 104, 7164 रित हो),- श्राहम पितरों के सम्मानार्थ किया जाने 2. प्रसन्न होना, खुश होना-कच्चिन्मनस्ते प्रीणाति बाला औंलदैहिक संस्कार या श्राद्ध। वनवासे-महा० 3. कृपामय बर्ताव करना, अनुग्रह घे (म्वा० आ०-प्रवते) 1. जाना, चलना-फिरना 2. कूदना, दर्शाना 4. प्रसन्न या हंसमुख रहना-प्रेर० (प्रीण- उछलना। यति-ते) प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना। प्रषi (म्वा० पर०-प्रोषति, प्रष्ट) 1. जलाना, खा पी Hi (दिवा० आ०) (प्रीयते-'प्री' क्रिया का कर्मवाच्य जाना 2. भस्म करना ii (क्रया. पर०-पुष्णाति) का रूप) सन्तुष्ट या प्रसन्न होना, तृप्त होना--प्रका- 1. आई या तर होना 2. उडेलना, छिड़कना 3. भरना / ममप्रीयत यज्वनां प्रिय:--शि० 1217, रघु० 15 / 30, पृष्ट (भू० क. कृ०) [पृष+क्त] जलाया हुआ, खाया१९।३० याज्ञ० 10245 2. स्नेह करना, प्रेम करना पोया हुआ, जला कर राख किया गया। 3. सहमति या मंजूरी देना, सन्तुष्ट होना। पुष्यः [अप् + क्वन्] 1. वर्षा ऋतु 2. सूर्य 3. पानी की प्रीण (वि०) प्री+क्त, तस्वनः] 1. प्रसन्न, सन्तुष्ट, बूंद - सिद्धा०। तृप्त 2. पुराना, प्राचीन 3. पहला / | प्रेक्षक: [प्र. ईक्ष +ण्वुल] दर्शक, तमाशबीन, देखने वाला, प्रोणनम् [प्रीण + ल्युट] 1. प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना दृश्य ---द्रष्टा / 2. जो प्रसन्न या सन्तुष्ट करता है। प्रेक्षणम् [प्र--ई-ल्युट] 1. देखना, दृष्टि डालना प्रीत (भू० क० कृ०) [प्री+क्त, नत्वाभावः! प्रसन्न, खुश, 2. दृश्य, दृष्टि, दर्शन 3. आँख -चकित हरिणी प्रेक्षणा प्रहृष्ट, आनन्दित --प्रीतास्मि से पुत्र वरं वृणीष्व -मेघ०८२ 4. तमाशा, सार्वजनिक दृश्य, दिखावा / ---रघु० 2 / 63, 1981, 12 / 94 2. आनंदयुक्त, सम-कटम् आंख का डेला / आह्लादित, हर्षपूर्ण --मेघ० 4 3. सन्तुष्ट . प्रिय, प्रेक्षणकम् [प्रेक्षण+कन् ] दिखावा, तमाशा। प्यारा 5. कृपाल, स्नेही। सम०--आत्मन,--चित् / प्रेक्षणिका [प्र+ईक्ष +-वल, इत्वम् ] तमाशा देखने की - मनस् (वि०) हृदय से खुश, मन से आनन्दित / / शौक़ीन स्त्री। प्रीतिः (स्त्री०) प्री+कितन। 1. प्रसन्नता, आह्लाद, प्रेक्षणीय (वि.) [प्र+ईक्ष+अनीयर 1 1. दर्शनीय, संतोष, खुशी, आनंद, हर्प, तृप्ति -भवनालोकनप्रीतिः विचारणीय, निगाह डालने के योग्य 2. देखने के लिए कु० 2 / 45, 6 / 21 रघु० 2 / 51 मेघ० 62 2. अनु उपयुक्त, मनोहर, सुन्दर-मेघ० 2, रधु० 1419 ग्रह, कृपालुता 3. प्रेम, स्नेह, आदर--मेघ० 4 / 16, 3. विचारणीय, ध्यान देने के योग्य / रघु० 1157, 12 / 54 4. पसन्द, चाह, खुशी, व्यसन प्रेक्षणीयकम् [प्रेक्षणीय+कन् ] दिखावा, दृश्य, तमाशा चूत मगया° 5. मित्रता, सौहार्द 6. कामदेव की -शि० 1083 / एक पत्नी का नाम, रति की सौत (सपत्नी संजाता प्रेक्षा [प्र+ई+अ+टाप् ] 1. दृष्टि डालना, देखना, रत्याः प्रीतिरिति श्रुता)। सम-कर (वि.) तमाशा देखना 2. अवलोकन, दृश्य, दृष्टि, दर्शन प्रेम या अनुराग उत्पन्न करने वाला, रुचिकर,-कर्मन् 3. तमाशवीन होना 4. कोई सार्वजनिक तमाशा, (नपुं०) मंत्री या प्रेम का बर्ताब, कृपापूर्ण कार्य,--दः दिखावा, दष्टि 5. विशेप कर थियेटर का तमाशा, नाटक में विदूषक या मसखरा,-- दत्त (वि०) स्नेह नाटकीय प्रदर्शन, अभिनय 6. बुद्धि, समझ 7. विमर्श, के कारण दिया हआ (त्तम) स्त्री को दी हुई संपत्ति, विचारणा, पर्यालोचन 8. वृक्ष की शाखा। सम० विशेषकर विवाह के अवसर पर सास या श्वसुर द्वारा, -अ (आ) गारः, - रम्, गृहम, स्थानम् 1. थिये-दानम्,-दायः प्रेमोपहार, मित्रता के नाते दिया गया टर, नाट्यशाला, रंगशाला 2. मन्त्रणा-भवन-समाजः उपहार --तदवसरोऽयं प्रीतिदायस्य–मा० 4, रघु० श्रोता. दर्शकों की भीड़, सभा। 15168, --धनम् प्रेम या सौहार्द के कारण दिया प्रेमावत् (वि.) [प्रेक्षा+मतुप् ] विचारशील, बुद्धिमान, हुआ धन,-पात्रम् प्रेम की वस्तु, कोई प्रिय व्यक्ति, / विद्वान् (पुरुष)। या वग्न, --पूर्वम, - पूर्वकम (अव्य.) कृपा के साथ, प्रेक्षित (भू० क० कृ०) [प्र.1-ईक्ष् +क्त देखा हुआ, विचार स्नेहपूर्वक, मनस् (वि०) मन में खुश, प्रसन्न, आनं- किया हुआ, नजर डाला हुआ, निगाह में से निकाला दित, –यु(वि०) प्रिय, स्नेही, प्यारा-कि० 1 / 10, हुआ, अवलोकन किया हुआ,-तम्, रूप, छवि, झलक / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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