________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 589 ) परिवर्तक (वि.) [परि-वृत् +-णिच-+ण्वुल] 1. घुमाने दोषारोपण करने वाला, वादी, अभियोक्ता,---नी वाला, चक्कर देने वाला 2. बदला चुकाने वाला, | सात तारों की वीणा, शि०६।९, रघु० 8 / 35 / वापिस करने वाला। परि (री) वापः [ परि+व+घञ, पक्षे उपसर्गस्य परिवर्तनम् [परिवृत्+ल्युट्] 1. इधर उधर घूमना, दीर्घः] 1. मुंडन या हजामत करना, मूंडना या बाल इधर उवर मड़ना (बिस्तर आदि पर) करवटें बदलना काटना 2. बोना 3. जलाशय, पल्वल, पोखर, जोहड़ -कु० 5 / 12, रघु० 9 / 13, शि० 4 / 47 2. इधर 4. सामान (घरका) 5. नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग। उधर मुंह फिराना, चक्कर काटना, चकराना 3. | परिवापित (वि.) [परि-वणिच्+क्त मुंडा हआ क्रान्तिकाल, चक्र का अन्त 4. बदलना-वेपपरिवर्तनं जिसके बाल कटे हुए हो या जिसने हजामत करा ली हो। विधाय--पंच० 3 5. अदला-बदलो, विनिमय 6. | परि (री) वारः [ परिब्रियते अनेन / परि ---|-धा, पलटना, उलटना। पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः] 1. नौकर-चाकर, अनुचरवर्ग, परिवर्तिका [परि-| वत् +-अवल-टाप, इत्वम्] (आयु०) टहलए, अनुयायो - (यानं) अध्यास्य कन्या परिवार लिंग की अग्रत्वचा का सिकुड़ जाना / शोभि-रघु० 610, 12 / 16, ग्रहगणपरिवारो परिवतिन् (वि०) परि-1-वत णिनि | 1. इधर उधर राजमार्ग प्रदीपः----मच्छ० 1157 2. ढक्कन, चादर मड़ने वाला, घूमने वाला 2. सदा प्रत्यावी, वार 2 3. म्यान, कोष। आने वाला, परिवतिनि संसारे भृतः को वा न जायते | परिवारणम् [ परि + वृ- णिच् -ल्युट ] 1. ढक्कन, पंच० 1127 3. बदलने वाला 4. निकट रहने लिफाफ़ा 2. नौकर चाकर, अनुचर 3. दूर हटाना / वाला, इधर उधर पाने वाला प्रत्यावर्ती, पलायन परिवारित (भू० क०कृ० ) [ परि+-+गिच्+क्त ] शील 6. विनिमय गोल 7. क्षतिपूर्ति करने वाला, ___ 1. परिवेष्टित, लपेटा हुआ, घरा हुआ 2. व्याप्त, बदला देने वाला। फैलाया हुआ. शि० 3 / 34 कि० ५।४२,---तम् ब्रह्मा परिवर्धनम् [परि-+-वृथ् / ल्युट | 1. बढ़ना, विस्तृत होना | का धनष। 2. संवन, पालन-पोषण करना बड़ा होना, | परिवासः [ परि+वस्'--घन ] आवास स्थान, ठहरना, ला, विस्तृत होना, परिवासः / , प्रवास, बसे वृद्धि: परिवसथः [परितो बसन्ति अत्र ----परि बस् / अथ] गाँव। परि (री) वाहः [ परि+बह --- घन, पक्षे उपसर्गस्य परिवहः [परि+वह-अच्| वायु के सात मार्गों में एक दीर्घः / (तालाव का)। -----छठा मार्ग, इसी मार्ग से सप्ताष घूमते हैं तथा / परिवाहिन् (वि.) [परि+वह --णिनि छलकता हुआ, आकाश गंगा बहती है,-सप्तपिचक्र स्वर्गगां षष्ठः जैसा कि-आनन्दपरिवाहिणा चक्षुपा--०४। परिवहन्तथा-- वायु के दूसरे मार्गों के लिए दे० | परिविण्णः (नः), परिवित्तः, परिधित्तिः [परि--विद / 'वायु' के नीचे, तु० -कालिदास द्वारा दिये गये परि क्त, पक्षे नत्वणत्वयोरभावः, परि-|-विद्-+-क्तिच्] वह के वर्णन -त्रिस्त्रोतसं वहति यो गगनप्रतिष्ठा अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह ज्योतीषि वर्तयति च प्रविभक्तरश्मिः, तस्य द्वितीय हो गया हो दे० मनु० 31171, 'परिवेत' भी। हरिविक्रमनिस्तमस्कं वायोरिमं परिवहस्य वदंति परिविद्धः [परि+व्य-क्त कुबेर का विशेषण / मार्गम् ---श०७।६। परिधिदकः, परिविंवत् (पं०) परि---विद्... एवल, शत परि (री) पादः |परि-बदना , पक्षे उपसर्गस्य दीर्गः) वा] विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविकलंक, निन्दा, बदनामी, गाली ..अयमेव भयि प्रथम वाहित हो। परिवादरतः..--- मालवि० 1, याज० 15133 2. लोका- परिविहारः [परितो विहारः प्रा०स०] इधर उधर सैर पवाद, कलंक, दूपण, अपकीर्ति--मा भूत्परोवादन करना, घूमना, टहलना / वावतार:---रघु० 5 / 24, 14186, महावी० 5 / 28 | परिविह्वल (वि०) [प्रा०स०] अत्यन्त व्याकुल, क्षब्ध या 3. दोषी ठहराना, दोषारोपण करना-मृच्छ० 3 / 30 घबड़ाया हुआ। 4. सारंगी बजाने का उपकरण / परिवृढः परि+बुंह+क्त स्वामी, प्रभु, मालिक, प्रधान, परिवादकः परि+व+णि -- बुल] 1. वादी, अभि- मख्य (विशेषण की भांति भी प्रयुक्त)- कि भुवः योक्ता, दोषारोपक 2. सारंगी बजाने वाला। परिवढा न विवोढुं तत्रतामुपनता विवदंते-नै० 5 / 52, परिवादिन् (वि०) परि- बद्---णिनि खरीखोटी सुनाने कु०१२।५८, महावी० 6 / 25, 31,48 / वाला, निन्दा करने वाला, गाली देने वाला, बुरा-भला | परिवृत (भू०क००) [परि+-+क्त] 1. घिरा हुआ, कहने वाला 2. दोषारोपण करने वाला 3. चीखने / परिवेष्टित, सेवित 2. प्रच्छन्न, गुप्त 3. व्याप्त, फैला वाला, चिल्लाने वाला 4. निमिदत, कलंकित--(पं) हुआ 4. ज्ञात / For Private and Personal Use Only