________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्र आये हुए, मिर प्तिता, अचमानौचित्य ( 1075 ) समर्थकम् | सम् +अर्थ + बुल] अगर की लकड़ी। / समवायिन् (वि०)[समवाय+ इनि] 1. घनिष्ठ रूप से समर्थनम् [सम् !-अर्थ -ल्युट ] 1. संस्थापन, पुष्टि संबद्ध 2. समुच्चयवाचक, बहुसंख्यक / सम० - फरना, ताईद करना 2. रक्षा करना, सहारा देना, कारणम् अभेद कारण, उपादान कारण (वैशेषिक न्यायसंगत सिद्ध करना-स्थितेष्वेतत् समर्थनम्-काव्य 0 दर्शन में बणित तीन कारणों में से एक)। 7 3. वकालत करना, हिमायत करना 4. अनुमान समवेत (भू० क. कृ.) [सम्+अव+इ+क्त] लगाना, विचार करना, चिन्तन करना 5. विचार- 1. एकत्र आये हुए, मिले हुए, जुड़े हुए, सम्मिलित विमर्श, निर्धारण, किसी वस्तु के औचित्यानौचित्य 2. घनिष्ठता के साथ संबद्ध, अन्तर्भूत, अभेद्य रूप से का निर्णय करना 6. पर्याप्तता, अचूकता, बल, संयक्त 3. बड़ी संख्या में समाविष्ट या सम्मिलित / धारिता 7. ऊर्जा, धैर्य 8. भेदभाव दूर कर फिर समष्टिः (स्त्री०) [सम्+-अश्+क्तिन् ] समुच्चयात्मक समझोता करना, कलह दूर करना 9. आक्षेप / व्याप्ति, एक जैसे अंगों का समूह, अवयवी जो समसमर्धक (वि.) [सम्+ऋध्+ण्वुल] 1. वरदाता तत्त्वता से युक्त अवयवों का पुंज है (विप० व्यष्टि) 2. समृद्ध करने वाला। --- समष्टिरीशः सर्वेषां स्वात्मतादात्म्यवेदनात् / तदसमर्पणम् [ सम् + अर्प+ल्युट ] देना, हस्तांतरण करना, भावात्तदन्ये तु ज्ञायते व्यष्टिसंज्ञया / / पंच० / सौंपना, हवाले करना। समसनम् [ सम् +अस्+ल्युट ] 1. एक साथ मिलाना, समर्याद (वि.) [सह सर्यादया - ब. स.] 1. सीमित, सम्मिश्रण 2. संयुक्त करना, समस्त (समास युक्त) बंधा हुआ 2. निकटवर्ती, समीपवर्ती 3. शुद्धाचारी, शब्दों का निर्माण 3. संकुचित करना। औचित्य की सीमा के अन्दर रहने वाला 4. सम्मान- समस्त (50 क. कृ.) / सम्+अस+क्त ] 1. एक पूर्ण, शिष्ट / जगह डाला हुआ, सम्मिश्रित 2. संयुक्त 3. किसी समल (वि.) [मलेन सह --ब. स.] 1. मैला, गन्दा, पदार्थ में पूर्णतः व्याप्त 4. संक्षिप्त, संकुचित, संक्षेपित मलिन, अपवित्र 2. पापपूर्ण, लम् पुरीष, मल, 5. सारा, पूर्ण, पूरा। विष्ठा / समस्या [ सम्+अस्+क्या+टाप् ] 1. पूर्ण करने के समवकारः [ सम्+अव++घ ] नाटक का एक लिए दिया जाने वाला छंद का चरण, कविता का वह भेद (सा० द० 515 में निम्नांकित परिभाषा दी गई भाग जो पूर्ति के लिए प्रस्तुत किया जाय-कः श्रीपतिः है व्रतं समवकारे तु ख्यातं देवासुराश्रयम् / संश्रयो का विषमा समस्या--सुभा०। इस प्रकार 'वागर्थाविव निर्विमस्तुि त्रयोऽङ्काः / ) संपृक्तो' 'शतकोटिप्रविस्तरम' 'तुरासाहं पुरोधाय' समवतारः [सम् +अव+त+घञ्] 1. उतार 2. घाट- पंक्तियाँ 'नेमः सर्वे सुराः शिवो' से पूर्ण हो जाती हैं) जहाँ से किसी नदी या पुण्यस्नानतीर्थ में उतरा जाय 2. (अतः) अधूरे को पूरा करना-गौरीव पत्या सुभगा -~-समवतारसमरसमस्तट:--कि० 5 / 7 / / कदाचित्कीयमप्यर्थतनू समस्याम्-० 782, समवस्था[समा तुल्या अवस्था वा सम+अव+स्था+ (समस्या-संघटनम्)। अङ+टाप् ] 1. निश्चित अवस्था 2. समान दशा या | समा [सम् +अच्+टाप्] (प्रायः ब०व० में प्रयोग, परन्तु स्थिति श०४ 3. अवस्था या दशा -रघु० 19 / 50, पाणिनि द्वारा एक वचन में भी प्रयुक्त-उदा० समां मालवि० 4 / 7 / समाम्-पा० 5 / 2 / 12) वर्ष, तेनाष्टौ परिगमिताः समवस्थित (भू० क. कृ.) (सम्-|-अव-+-स्था+क्त ] समाः कथंचित् रघु० 8 / 92, तयोश्चतुर्दशैकेन राम 1. स्थिर रहता हुआ 2. स्थिर / प्रावाजयत्समा:--१२१६, 19 / 4, महावीर० 4 / 41, समवाप्तिः (स्त्री०) [ सम् +अव+आप+क्तिन् ] प्राप्ति, अव्य०-से, साथ मिला कर। अभिग्रहण। समांसमीना समां समां विजायते प्रसूते-ख प्रत्ययेन नि०1 समवायः [ सम्+अव+11-अच ] 1. सम्मिश्रण, मिलाप, वह गाय जो प्रतिवर्ष व्याती है और बछड़ा देती है। संयोग, समष्टि, संग्रह-सर्वाविनयानामेकैकमप्येषामा- समाकषिन् (वि.) (स्त्री० ---गी) [सम्+आ+कृष+ यतनं किमुत समवायः-का०, बहूनामप्यसाराणां णिनि] 1. आकर्षक 2. दूर तक गंध फैलाने वाला, या समवायो हि दुर्जयः-सुभा० 2. संख्या, समुच्चय, राशि प्रसार करने वाला, पुं० प्रसत गंध, दूर तक फैली गंध / 3. घनिष्ठ संबंध, संसक्ति 4. (वैशे० में) प्रगाढ़ समाकुल (वि.) [सम्यक् आकुल:--प्रा. स.] 1. भरा मिलाप, अविच्छिन्न तथा अविच्छेद्य संयोग, अभेद्य हुआ, आकीर्ण, भीड़-भाड़ से युक्त 2. संक्षुब्ध, घबराया संलग्नता या एक वस्तु का दूसरी में अस्तित्व (जैसे हुआ: उद्विग्न, हड़बड़ाया हुआ। पदार्थ और गुण, अंगी और अंग), वैशेषिकों के सात समाख्या |सम्+आ+ख्या+अ+टाप] 1. यश, कीर्ति, पदार्थों में से एक। ख्याति 2. नाम, अभिधान / For Private and Personal Use Only