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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रल (वि.)। पट्टकिल: पटना या मुकुट बाँधना, बन्धनम् सिरप पञ्चीकरणम् [पञ्च+च्चि++ल्यूट] पाँचों तत्त्वों , पताका [ पत्+आक+टाप् ] प्रचार, प्रसार-रम्या का मेल जिससे फिर नाना प्रकार के पदार्थों का इति प्राप्तवती: पताकाः--शि० 3153 / सम० निर्माण होता है। --दण्डः ध्वजयष्टिका, झंडे का डंडा। पट:-दम् [पट्+क] कपड़ा, वस्त्र / सम०-- अञ्चलः | पताकिन् (वि०) पिताक+इनि ] झंडाघारी, पुं० रथ / वस्त्र की गोट, झालर,-उसरीयम् चुनी, चादर, पतितगर्भा (स्त्री०) [ब० स०] वह स्त्री जिसका गर्भओढ़ने का वस्त्र,-वाद्यम् भजीरा, करताल, झांझ, पात हो गया हो। -वासकः सुगन्धित चूर्ण। पतितक्त (वि.) [ब० स०] लम्पटता का जीवन पटलकः,कम् [ पट+कलच्, स्वार्थे कन् च] 1. पर्दा, बिताने वाला, अय्याश। ___ चूंघट 2. पैकट। पत्काषिन् (0) पदाति, पैदल सिपाही। पटलिका (स्त्री०) राशि, समुच्चय जैसा कि 'धूलिपट- पत्त्यध्यक्षः [पत्ति+अध्यक्ष ] पैदल सेना का दलनायक, लिका' में / ब्रिगेडियर, उपचमपति / पटहवेला [ष० त०] वह समय जब कि ढोल बजाया | पत्रम् [ पत्+ष्ट्रन्] 1. पत्ता (वृक्ष का) 2. (फूल की) जाता है। पत्ती 3. पत्र, चिट्ठी 4. पक्षी का बाजू 5. तलवार या पटुकरण (वि०) [ब० स०] जिसके अंग स्वस्थ है चाकू का फल। सम-तण्डुला स्त्री, महिला, -सन्देशार्थाः क्व पटुकरणः प्राणिभिः प्रापणीया : -दारकः आरा, लकड़ी आदि चीरने का यन्त्र, --मेघ०५। -न्यासः बाण में तीर लगाना,-पिशाचिका पत्तों पट्टः,--दृम् [पट्+क्त, इडभावः] 1. (लिखने के लिए) की बनी टोपी। तरुती 2. राजकीय प्रशस्ति 3. रेशम / सम पत्रल (वि.) [ पत्र+लच ] पत्तों से समृद्ध / ---- अंशुक: रेशमी वस्त्र, बन्धः, -- बन्धनम् सिर पर | पथिकः [पथिन--कन् ] मार्ग चलने वाला, यात्री। सम०--जनः एक यात्री, या यात्रियों का समूह / पट्टकिल: [ पट्ट+कन्+इलच ] एक भुखण्ड को किराये | पथिन् (पुं०) [पथ्+इनि] 1. मार्ग 2. यात्रा 3. परास पर जोतने वाला, पट्टेदार / सम० अज्ञानम् मार्ग में खाने के लिए भोज्य पणः [पण+अप्] 1. पासे से खेलना, दांव लगाकर पदार्थ। खेलना 2. दांव लगा कर, या होड़ बद कर खेलना ! पदम [ पद्-+-अच् ] 1. पैर 2. पग 3. पदचिह्न 4. सिक्का 3. दांव पर लगाई हुई वस्तु 4. शर्त 5. पैसा। - अष्टापद पदस्थाने दक्षमदेव लक्ष्यते महा० 12 // सम० ... अयः लाभ ग्रहण करना,-क्रिया 1. दांव 298 / 40 / सम-कमलम् चरण कमल, पैर रूपी पर रखना 2. संघर्ष करना, मुकाबला करना। कमल, जातम् शब्द समूह,... रचना 1. साहित्यिक पण्य (वि.) [पण-+ यत् ] 1. बेचने के योग्य, विक्रयार्थ कृति 2. शब्द विन्यास,--सन्धिः शब्दों का श्रुति पदार्थ 2. व्यापार, वाणिज्य 3. मल्य। सम० मधुर मेल / --जनः व्यापारी,-वासी भाड़े की सेविका, पदातिलव (वि०) अतिनन, अत्यन्त विनीत / ---परिणीता रखैल स्त्री,-- संस्था बर्तनों की पदीकृ (तना० उभ०) वर्गमूल निकालना / दुकान। पनम् [पद्+मन् ] 1. कमल 2. शरीर की विशेषस्थिति, पणफरम् (नपुं०) जन्मकुंडली में लग्न से दूसरा, आठवां, पद्मासन लगा कर बैठना 3. इन्द्रजाल से संबद्ध आठ पांचवां और ग्यारहवां स्थान / प्रकार के कोषों में से 'पधिनी' नामक कोष। सम. पण्डिती (स्त्री) विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता। ...प्रिया 1. लक्ष्मी का विशेषण 2. जरत्कार की पण्डः,--क: (पुं०) हीजड़ा, क्लीव / पत्नी मनसा देवी,-मुद्रा तन्यशास्त्र का प्रतीक / पतङ्गः [पतन गच्छतीति गम+ड नि.] 1. घोड़ा पद्मशः (अ.) [पन+शस ] अरबों की संख्या में। 2. सूर्य 3. गेंद 4. पारा 5. टिड्डा। सम० शाषः | पद्मिनीकण्टकः (पुं०) एक प्रकार का कोढ़। पक्षी का वच्चा। पद्रः (पुं०) [पद्+रक ] ग्राम मार्ग / पतगिका [पतङ्ग+कन्+टाप्, इत्वम् ] (स्त्री०) पनस्यु (वि०) प्रशंसा के योग्य बात प्रकट करने वाला, ___1. धनुष की डोरी 2. छोटा पक्षी 3. मधुमक्षिका। यशस्वी। पतत्प्रकर्ष (वि.) 1. जो तर्कसंगत न हो 2. काव्य | पपी (पुं०) [पा+ई, द्वित्वं किच्च ] 1. सूर्य 2. चन्द्रमा। सौन्दर्य से रहित / पयोरयः [ष० त०] नदी की धारा। पताकः [ पत्+आक] बाण का निशान लगाते समय पर (वि.) [+अप्, अच् वा] 1. दूसरा 2. दूर का अंगुलियों की विशेष मुद्रा। 3. इसके बाद का 4. उच्चतर श्रेष्ठ 5. उन्धतम, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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