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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (770 ) पर प्रकाश डालता है बीच में स्थापित किया जाता है, शास्त्रों में वर्णित एक नायिका, अपनी जवानी की उदा०-भट्रि० १०॥२४,-देश: 1. मध्यवर्ती स्थान या उम्र के बीच पहुँची हुई स्त्री,तू० सा० द०१००, प्रदेश, किसी चीज का मध्यवर्ती भाग 2. कमर --..मम् कमर / सम-----अङ्गलिः बीच की अंगुली, 3. पेट 4. याम्योत्तर रेखा 5. केन्द्रीय प्रदेश, हिमालय आहरणम् (बीज में) समीकरण म बीच की तथा विध्य पर्वत के बीच का भाग हिमवद्विन्ध्य- राशि का निरसन, -- कक्षा बीच का आंगन, जात योर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि, प्रत्यगेव प्रयागाच्च (वि.) दो के बीच में उत्पन्न, मझला,—पदम् मध्यदेश: स कीर्तितः --मनु० २।२१,—देहः शरीर (समास के) बीच का पद, लोपिन (पू०) तत्पुरुष का प्रमुख भाग, पेट, पदम् मध्यवर्ती पद, लोपिन समास का एक अवांतर भेद जिसमें कि रचना के बीच दे० मध्यमपदलोपिन्,-पातः सहधर्मचारिता, समागम, का शब्द लुप्त कर दिया जाता है, इसका सामान्य --भाग: 1. मध्य भाग 2. कमर,-भावः बीच की उदाहरण 'शाकपार्थिवः' है, इसका विग्रह है - शाकस्थिति, सामान्य स्थिति,---यवः पीली सरसों प्रियः पार्थिवः, यहाँ बीच के शब्द 'प्रिय' का लोप कर के छः दानों के बराबर का एक तोल,- रात्रः, दिया गया, इसी प्रकार छायातरुः व गुडधानाः आदि ---रात्रिः (स्त्री०) आधी रात, रात का बीच,-रेखा शब्द है, पाण्डवः अर्जुन का विशेषण, पुरुषः (व्या० केन्द्रीय या प्रथमयाम्योत्तर रेखा,-लोकः तीनों लोक के में) मध्यमपुरुष-बह पुरुष जिसको सम्बोधित किया बीच का लोक अर्थात मर्त्यलोक या संसार, जाय,- भूतकः किसान, खेतिहर (जो अपने लिए और °ईशः, ईश्वरः राजा,--वयस् अधेड़ उम्र- अपने स्वामी के लिए खेती का काम करता है), वाला, वतिन् (वि.) बीच में स्थित, केन्द्रवर्ती ----रात्रः आधी रात,-लोकः बीच का संसार, भूलोक, (पुं०) विवाचक, मध्यस्थ, -वृत्तम् नाभि,-सूत्रम्- °पालः राजा रघु०२।१६, ....वयस् (नपु०) प्रौढ़ा मध्यरेखा दे०,-स्थ (वि०).1. बीच में स्थित या विद्य- वस्था, बीच की उम्र, वयस्क (वि०) प्रौढ़, बीच की मान, केन्द्रीय 2. मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती 3. बीच का उम्र का, संग्रहः बीच के दर्जे का गुप्तप्रेम, जैसे कि 4. बीच-बचाव करने वाला, दो दलों के बीच मध्यस्थता गहने कपड़े, पुष्प आदि उपहार भेज कर परस्त्री को करने वाला 5. निष्पक्ष, तटस्थ 6. उदासीन, लगाव- फुसलाना, व्यास ने इसकी निम्नांकित परिभाषा की रहित-श० 5, (स्थः) निर्णायक, विवाचक, मध्यस्थ है-प्रेषणं गन्धमाल्यानां धूपभूषणवाससाम्, प्रलोभनं 2. शिव का विशेषण, स्थलम् 1. मध्य या केन्द्र चान्नपानमध्यमः संग्रहः स्मृतः, साहसः तीन प्रकार 2.मध्य स्थान या प्रदेश 3. कमर,-स्थानम् 1. बीच का के दण्डभेदों में द्वितीय प्रकार मनु०८।१३८, (सः पड़ाव 2. बीच का स्थान अर्थात बाय 3. तटस्थ प्रदेश, --सम) मध्यवर्ग के प्रति अपराध या अत्याचार,---स्थ ---स्थित (वि०) केन्द्रीय, अन्तर्वर्ती / (वि०) बीच में होने वाला। मध्यतः (अव्य०)[ मध्य+तसिल ] 1. बीच से, मध्य से, | मध्यमक (वि०) (स्त्री०-मिका) [मध्यम-कन बीच का, में से 2. में। बिलकुल बीचोंबीच का। मध्यम (वि०) [ मध्ये भव:-मध्य-म ] बीच में स्थित मध्यमिका | मध्ममकटाप, इत्वम] वयस्क कन्या, जो या वर्तमान, बीच का, केन्द्रीय पितु: पदं मध्य विवाह योग्य उम्र की हो गई हो। ममत्पतन्ती-विक्रम० 1119, इसी प्रकार 'मध्यमलोक मध्ये दे० 'मध्य' के अन्तर्गत / पाल: मध्यमपदम् मध्यमरेखा 2. मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती मध्वः एक प्रसिद्ध आचार्य तथा शास्त्रप्रणेता, वैष्णव 3. बीच का, बीच की स्थिति या विशेषता का, बीच संप्रदाय के प्रवर्तक तथा वेदान्तसूत्रों के भाष्यकर्ता। के दर्जे का यथा 'उत्तमाधममध्यम' में 4. बीच का, मध्वकः [मधु-- अक्-| अच्] भौंरा।। औसत दर्जे का तेन मध्यमशक्तीनि मित्राणि स्थापि-मध्विजा [मधु ईजते प्राप्नोति-मधु / ईज्/क--टाप, तान्यतः ---रघु० 1758 5. बीच के कद का 6. न पषो० ह्रस्वः] कोई भी मादक पेय, खींची हुई शराब / सबसे छोटा न सबसे बड़ा, (भाई) बीच में उत्पन्न | मन् / (म्वा० पर० मनति) 1. घमण्ड करना 2. पूजा -प्रणमति पितरौ वां मध्यमः पाण्डवोऽयम-वेणी० करना (चुरा० आ० मानयते) घमण्डी होना, 5 / 26 7. निष्पक्ष, तटस्थ,-मः 1. संगीत में पंचम Mi (दिवा० तना० आ० मन्यते, मनुते, मत) स्वर 2. विशेष संगीत पद्धति 3. मध्यवर्ती देश, दे० 1. सोचना, विश्वास करना, कल्पना करना, चिन्तन मध्यदेश 4. (व्या० में) मध्यम पुरुष 5. तटस्थ प्रभु--- करना, उत्प्रेक्षा करना, विचारना-अङ्घ केऽपि शशङ्किरे धर्मोत्तरं मध्यममाश्रयन्ते ----रघु० 1317 6. प्रान्त का जलनिधेः पङ्ख परे मेनिरे-सुभा०, वत्स मन्ये कुमारेराज्यपाल, -मा 1. बीच की अंगली 2. विवाह योग्य णान्येन जम्भकास्त्रमामन्त्रितम् ... उत्तर. 5, कथं कन्या, वयस्क कन्या 3. कमल का बीजकोष 4. काव्य- भवान्मन्यते 'आपकी क्या सम्मति है' 2. खयाल करना, 1758 छोटा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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