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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 771 ) आदर करना, मानना, देखना, समझना, मान लेना / अव-, घृणा करना, हेय समझना, अवज्ञा करना, .--समीभूता दृष्टिस्त्रिभवनमपि ब्रह्म मनते-भर्त० नीच समझना, तुच्छ समझना-चतुर्दिगीशानवमत्य 3684, अमस्तचानेन पराय॑जन्मना स्थितेरभेत्ता मानिनी-कु० 5 / 53, मनु० 4 / 135, विक्रम०२।११ स्थितिमन्तमन्वयम्-रघु० 3227, 1132, 6 / 84, भग० प्रति-, सोचना, विचारना-प्रेर० 1. सम्मान करना, 2126, 35, भट्टि० 9 / 117, स्तनविनिहितमपि सम्मानित समझना, आदर करना 2. अनुमोदन करना, हारमदारं सा मनुते कृशतनुरिव भारम् - गीत०४ प्रशंसा करना 3. अनुज्ञा देना, अनुमति देना, वि --, 3. सम्मान करना, आदर करना, मान करना, मूल्यवान् (प्रेर०) अनादर करना, तुच्छ समझना, अवज्ञा करना, समझना, बड़ा मानना, वरेण्य समझना-यस्याङ्गिण नीच समझना---स्त्रीभिर्विमानितानां कापूरुषाणां विवइमे भवनाधिपत्य भोगादयः कृपणलोकमता भवन्ति र्धते मदन:-मच्छ० 8 / 9, सम्-, 1. सहमत होना, - भ० 376 4. जानना, समझना, प्रत्यक्ष करना, एकमत होना, एक मन का होना 2. हामी भरना, पर्यवेक्षण करना, लिहाज करना---मत्वा देवं धनपति स्वीकृति देना, अनुमोदन करना, पसंद करना 3. सोचना, सखं पत्र साक्षाद्वसन्तम् --- मेघ० 73 5. स्वीकृति खयाल करना, मानना 4. स्वीकृति देना, अधिकार देना देना, हामी भरना, अमल करना तन्मन्यस्व 5. मान करना, सम्मान करना, महत्वपूर्ण समझेना, मम वचनम् -मृच्छ०८ 6. सोचना, विचार विमर्श --- कच्चिदग्निमिवानाय्यं काले संमन्यसेऽतिथिम् करना 7. इरादा करना, कामना करना, आशा करना -भट्टि० 6/65, समस्त बन्धून् 112 6. अनुज्ञा 8. मन लगाना, 'मन्' धातु के अर्थ उस शब्द के देना, अनुमति देना (प्रेर०) सम्मान करना, आदर अनुसार जिसके साथ इसका प्रयोग होता है, विविध करना, प्रतिष्ठा करना।। प्रकार से बदलते रहते हैं . उदा० बहु मन् बहुत | मननम् [मन् / ल्युट्] 1. सोचना, विचार विमर्श करना, मानना, बड़ा समझना, बहुत मूल्य आंकना, बरेण्य गहनचिन्तन करना, अवधारणा करना--मननान्मनिसमझना, पूज्य मानना बहु मनुते ननु ते तनुसंगत- रेवासि-हरि० 2. प्रज्ञा, समझ 3. तर्कसंगत अनुमान सवनचलितमपि रेणुम्---गीत०५, 'बहु' के अन्तर्गत 4. अटकल, अंदाजा। भी दे०; लघु मन् तुच्छ समझना, घृणा करना, अपमान | मनस् (नपुं०) [मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन्] 1. मन, करना-श०७।१; अन्यथा मन और तरह सोचना, हृदय, समझ, प्रत्यक्षज्ञान, प्रज्ञा, जैसा कि सुमनस, संदेह करना, साधु मन् भला सोचना, अनुमोदन दुर्मनस् आदि में 2. (दर्शन में) संज्ञान और प्रत्यक्षकरना, संतोषजनक समझना, श० 112, असाधु मन् ज्ञान का आन्तरिक अंग या मन, वह उपकरण जिसके नापसंद करना, तृणाय मन् या तृणवत् मन् तिनके द्वारा ज्ञेय पदार्थ आत्मा को प्रभावित करते हैं, (न्या० जैसा समझना, हलका मूल्य लगाना, तुच्छ समझना द० में मन एक द्रव्य या पदार्थ माना गया है जो आत्मा -हरिमप्यमंसत तृणाय---शि० 15 / 61, न मन् से सर्वथा भिन्न है)-तदेव सुखदुःखाद्युपलब्धिसाधनअवज्ञा करना, अवहेलना करना, प्रेर० (मानयति-ते) / मिन्द्रियं प्रतिजीवं भिन्नमण नित्यं च-त. को० सम्मान करना, श्रद्धा दिखाना, आदर करना, अभि- 3. चेतना, निर्णय या विवेचन की शक्ति 4. सोच, वादन करना, मूल्यवान् समझना --मान्यान्मानय विचार, उत्प्रेक्षा, कल्पना, प्रत्यय, पश्यन्नदूरान्मनसाप्य-भर्तृ० 2177, इच्छा० (मीमांसते) 1. विचार विमर्श धृष्यम्-- कु. 3151, रघु० 2 / 27, कायेन वाचा करना, परीक्षण करना, अन्वेषण करना, पूछताछ मनसाऽपि शश्वत्-५.५ 5. योजना, प्रयोजन, अभिकरना 2. संदेह करना, पूछताछ के लिए बुलाना, प्राय 6. संकल्प, कामना, इच्छा, रुचि; इस अर्थ में (अधि० के साथ), अनु-स्वीकृति देना, हामी 'मनस्' शब्द का प्रयोग बहुधा धातु के तुमुन्नत रूप के भरना, अनुमोदन करना, स्वीकार करना, अनुमति साथ (तुम् के अन्तिम 'म्' का लोप करके) होता है, देना, अनुज्ञा देना, मंजूरी देना-राजन्यान्स्वपुरनि- और विशेषण शब्द बनते हैं-अयं जनः प्रष्ट्रमनावृत्तयेऽनुमेने रघु० 4 / 87, 14 / 20, तत्र नामनु- स्तपोनिधे---कु. 5 / 40, तु. काम 7. विचारविमर्श मन्तुमुत्सहे मोघवृत्ति कलभस्य चेष्टितम्-रघु०११।३९, 8.स्वभाव,प्रकृति,मिजाज 9.तेज,ओज,सत्त्व 10. मानस कु. 1159, 3160, 5168, भर्तृ० 3 / 22, रघु० नामक सरोवर (मनसा गम सोचना, चिन्तन करना, 16385, प्रेर०-छुट्टी मांगना, अनुमति मांगना, स्वीकृति याद करना--कु० 2 / 63, मनः कृ मन को स्थिर मांगना-अनुमान्यतां महाराजः-विक्रम० 2, अभि-, करना, विचारों को निर्दिष्ट करना, (संप्र० या अधिक 1. कामना करना, इच्छा करना, लालायित होना के साथ), मनः बन्ध मन लगाना, स्नेह हो जाना --मनु० 90195 2. अनुमोदन करना, हामी भरना -अभिलाषे मनो बबन्घान्यरसान् विलंध्य सा-रघु० 3. सोचना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना, मानना, 3.4, मनः समाधा अपने आपको स्वस्थ करना, मनसि For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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