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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७ ) उभयत्र (अव्य०) उभय---बल 1. दोनों स्थानों पर, । उरभ्रः [उरु उत्कट भ्रमति इति- उर+भ्रम्-+-ड पृषो० 2. दोनों ओर 3. दोनों अबस्थाओं में---मन० ३।१२५, | उलोप: भेड़, मेष। उररी (अब्ब०) [उर्+अरीक बा०] 1. सहमति या उभयथा (अव्य०) उभय । थाल 1. दोनों रीतियों से स्वीकृति बोधक अव्यय (इस अर्थ में यह शब्द कृ, भू .. उभपयापि घटते-विक्रम ३ 2. दोनों दशाओं में।। और अस् धातुओं के साथ प्रयुक्त होता है--तथा उभय (ये) युः (अव्य०) उभय-- युस्, एधुस् वा । गतिसंज्ञक या उपसर्ग समझा जाता है, इसी लिए 'उर1. दोनों दिन 2. आगामी दोनों दिन । रीकृत्वा' न बनकर 'उररीकृत्य' बनता है, इस शब्द उम् (अम०) [उम् ' डुम् | (क) क्रोध (व) प्रश्नवाच- के रूपान्तर है-उरी, उरुरी, ऊरी और ऊरुरी) 2. कना (ग) प्रतिज्ञा या स्वीकृति और (घ) सौजन्य या विस्तार (उररीकृ तना० उभ०] सहमति देना, अनु सान्त्वना को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक मति देना, स्वीकार करना-गिरं न कां कामुररीचकार - अव्यय। .भामि०२।१३, शि०१०।१४) उमा ओ: शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उशिवं माति मयते स् (नपुं०. उरः) [ऋ+असुन्, उत्वं रपरश्च] छाती, पतित्लेन मानक वा तारा०1. हिमवान और मेना की वक्षःस्थल -- व्यूढोरस्को वृषस्कन्धः-रघु० १११३, कु० पुत्री, शिव की पनी, कालिदास नाम की व्यत्पत्ति इस ६।५१, उरसि कृ छाती से लगाना। सम० --क्षतम् प्रकार करता है--उगेति (ओह, बस अन तपस्या न छाती की चोट,---ग्रहः-घातः छाती का रोग, फेफड़े करें) मात्रा तपसो निषिद्धा पवादमाख्या सुमन्त्री की लिल्ली की सूजन, प्लरिसी,छदः चोली, अँगिया, जगाम--कू० ११२६, उमावृपाडी--- रघु० ३१२३ -~-त्राणम् कवच, सीनाबन्द --शि० १५।८०,-- जः, 2. प्रकाश, आभा 3. यश, ख्याति 4. शान्ति, प्रशान्तता -----भूः, उरसिजः,, उरसिरुहः स्त्री की छाती, स्तन, 5. रात 6. हल्दी, 7. लन ! सम० गरः जनकः ---- रेजाते रुचिरदृशामरोजकुम्भौ--शि०८५३, २५, हिमालय पर्वत (उना का पिता होने के नाते)..... पति ५९. -भूषणम् छाती का आभूषण,—सूत्रिका मोतियों शिव मुहरनुस्मरवन्तमनुक्ष त्रिपुराहम्मादतिरोधिनः का हार जो छाती के ऊपर लटक रहा हो,--स्थलम् -- कि० ५।१४, इसी प्रकार ईशः, 'वल्लभः, सहाय: छाती, वक्षःस्थल । आदि, · सुतः कार्तिकेय या गोश । डरसिल (दि.) । उरस्+इलच् ] विशाल वक्षःस्थल उम्ब (ब) रः उन-व-अब पधोतरंगा, द्वार वाला। - की चौखट की ऊपर वाली लकही। उस्य (वि०)| उरत्+यत ] 1. औरस सन्तान 2. एक उरः उर्क भेड़। ही वर्ण के विवाहित दम्पती का पुत्र या पुत्री 3. उतम, उरगः (स्त्री० गो) उस्ता गति, उरस । गम्-3, ----रयः पुत्र। सलोपरच. सर्प, साँग गली दोरगक्षता--र० उरस्वत् (वि०) [ उरस्- मनुप्, मस्य वः ] विशाल वक्षः१।२८, ११, ९१ . नाग या पराणों में वर्णित स्थल वाला, चौड़ी छाती वाला। मानव मुख वाला नियमाप-दे गन्धर्वमानपोरग-उरी स्वीकृतिबोधक अव्यय-दे० उररी (उरीक अनुमति राक्षसान-नल ० ११२८, मनु० ३११९६ 3. सीमा, गा देना, अनज्ञा देना, स्वीकृति देना-दक्षेणोरीकृतं त्वया एक नगर का ना -धु० ६९९ । रा ..... अरिः ---- भट्टि ८।११, रघु० १५१७० 2. अनुसरण करना, .... आनः, -शत्रु: 1. गरूड़ (साँपोकादा) 2. मोर, आश्रय लेगा. अयि- रोषमुरीकरोषि नोचेत्--भामि० ....इन्द्रः, -- राजः दामुकि या योधनाग,- प्रतिस(बि) १।४४। विवाह-मुद्रिका के स्थान में साँप रखने वाला, भूषणः उरु (वि.) (स्त्री० ---,-) तु० (वरीयस्, उ० अ० शिव (साँपों से सुपित),--सारचन्दनः, नम एक वरिष्ठ) 1. विस्तृत, प्रशस्त 2. महान्, बड़ा-रघु० प्रकार की चन्दन की लकड़ी,-स्थानन नागों का ७४ 3. अतिशय, अधिक, प्रचुर 4. श्रेष्ठ, मूल्यवान् आवासस्थान अर्थात् पाताल कीमती । सम०, ----कीर्ति (वि.) प्रख्यात, सुविख्यात उरङ्गः गमः । उरम् -।-गम्-'-खच्, सलोपः, गुभागमश्च --रघु० १४।७४,- क्रमः वामनावतार के रूप में साँप . विष्णु भगवान,---गाय (वि०) उत्तम व्यक्तियों द्वारा उरणः (स्त्री० णी) ऋ+क्य, लं, रपव 1. भेडा, जिराका स्तुतिगान किया गया हो-अस्व० ६१,-मार्गः भेड़...वकीवोरणमासांधरत्यरादाय गच्छति -महा० लंबी सड़क, विक्रम (वि०) पराक्रमी, बलशाली, 2. एक राक्षस जिस इन्द्र ने मार शिा था,---णी - स्तन (वि०) ऊँची आवाज वाला, अत्युच्च शब्दभेड़ी। कारी,--हारः मूल्यवान् हार । उरणकः [उरण - कन् 1. भेड़ा, मेव 2. बादल । | उररी-उररी २८ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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